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जमीन के तंदरुस्त होने पर ही खेतों में होगी बम्पर पैदावार, आत्मा कार्यालय परिसर में आयोजित किसान गोष्ठी में बोले कृषि वैज्ञानिक

locationहनुमानगढ़Published: Jan 07, 2021 10:07:03 am

Submitted by:

Purushottam Jha

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हनुमानगढ़. भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने को लेकर कृषि विभाग के आत्मा प्रोजेक्ट के तहत मुहिम चलाने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत मृदा जैविक कार्बन अभियान का शुभारंभ बुधवार को आत्मा कार्यालय परिसर में किया गया।
 

जमीन के तंदरुस्त होने पर ही खेतों में होगी बम्पर पैदावार, आत्मा कार्यालय परिसर में आयोजित किसान गोष्ठी में बोले कृषि वैज्ञानिक

जमीन के तंदरुस्त होने पर ही खेतों में होगी बम्पर पैदावार, आत्मा कार्यालय परिसर में आयोजित किसान गोष्ठी में बोले कृषि वैज्ञानिक

जमीन के तंदरुस्त होने पर ही खेतों में होगी बम्पर पैदावार, आत्मा कार्यालय परिसर में आयोजित किसान गोष्ठी में बोले कृषि वैज्ञानिक
हनुमानगढ़. भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने को लेकर कृषि विभाग के आत्मा प्रोजेक्ट के तहत मुहिम चलाने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत मृदा जैविक कार्बन अभियान का शुभारंभ बुधवार को आत्मा कार्यालय परिसर में किया गया। कलक्टर जाकिर हुसैन मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। उप निदेशक कृषि एवं पदेन परियोजना निदेशक आत्मा जयनारायण बेनीवाल ने जैविक खेती के बारे में किसानों को जागरूक किया। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति किस तरह से बढ़ाई जा सकती है, इसके तरीके भी बताए। वक्ताओं ने कहाकि जमीन के तंदरुस्त होने पर ही खेतों में बम्पर पैदावार हो सकती है। कृषि वैज्ञानिक जीएस तूर ने कहा कि जैविक कार्बन की कमी के कारण ही दिनोंदिन खेती में लागत बढ़ रही है। इसलिए किसानों को सचेत होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि गांवों में गोबर खाद की कमी आ रही है। क्योंकि लोगों ने पशु रखने कम कर दिए हैं। खेती के लिए 17 पोषक तत्व जरूरी हैं। सभी के अनुपात में रहने पर ही अच्छी खेती हो सकेगी। खेतों में पराली जलाने वाले किसानों को सतर्क करते हुए कहा कि यदि वह ऐसा करते हैं तो उनके खेत में जैविक कार्बन की स्थिति और विकट होगी। क्योंकि मित्र कीटों व सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है। इसलिए जैविक खेती परंपरा का अनुसरण भी करने की सलाह दी। अन्य वक्ताओं ने कहा कि अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग, फसल अवशेष जलाने तथा जैविक खादों का बहुत कम उपयोग करने के कारण जमीन का जैविक अंश कम होता जा रहा है। मृदा में जैविक कार्बन की स्थिति ठीक उस बैंक खाते की तरह है जिसमें हम प्रत्येक वर्ष 1200 रुपए निकाल रहे हैं तथा 900 रुपए जमा कर रहे हैं। जो कि अंतत: निश्चित रूप से घाटे में जाना है। यदि समय रहते जमीनों का जैविक कार्बन बढ़ाने के उपाय नहीं किए गए तो उपज को स्थिर रखने के लिए अधिक उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई तथा मशीनरी का उपयोग करना होगा। परंतु फिर भी उपज अधिक समय तक स्थिर नहीं रहेगी।
यह रहे मौजूद
मृदा जैविक कार्बन अभियान को लेकर आत्मा कार्यालय में बुधवार को आयोजित किसान गोष्ठी में प्रगतिशील किसान, कृषि व उद्यानिकी विभाग के अधिकारी व वैज्ञानिक शामिल हुए। गोष्ठी में पीआरओ सुरेश बिश्नोई, पंचायत समिति के पूर्व प्रधान दयाराम जाखड़, कृषि अधिकारी बलकरण सिंह, कृषि पर्यवेक्षक जगदीश दूधवाल, संयुक्त निदेशक कृषि श्रीगंगानगर डॉ. जीआर मटोरिया, कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरए मीणा, मृदा वैज्ञानिक डॉ.जीएस तूर, सहायक निदेशक कृषि विस्तार मोहनलाल गोदारा, केवीके नोहर के अक्षय घींटाला, कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. रंगपाल डांगी, पेस्टीसाइड एसोसिएशन के बालकिशन गोल्याण, आत्मा परियोजना के उप निदेशक साहबराम गोदारा, वैज्ञानिक डॉ. अमर सिंह पूनियां, किसान जसवंत भादू, भानीराम मूंड, हकीकत संस्था के ओमप्रकाश मांझू सहित अन्य मौजूद रहे।
कम पानी में पकती थी फसलें
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि परंपरागत या जैविक खेती करने पर खेतों में सिंचाई पानी की खपत भी काफी कम होती है। कुछ वर्ष पूर्व की खेती का का जिक्र करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा कि पहले तीन-चार बारी पानी में गेहूं की फसल पक जाती थी। लेकिन अब नौ बारी पानी में फसल पक रही है। किसानों को जागरूक होकर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने को लेकर गंभीर होने की जरूरत है। किसानों के लिए समय रहते खेती के नियमों को समझने की जरूरत बताई।
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