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पंजाब में कपास की फसल में मची थी तबाही, राजस्थान को बचाने का प्रयास

locationहनुमानगढ़Published: Aug 11, 2019 11:14:02 am

Submitted by:

Purushottam Jha

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हनुमानगढ़. इस वक्त कपास की फसल में फूल निकलने की प्रक्रिया चल रही है। अगेती फसल में तो टिंडे निकलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस दौरान अचानक नमी बढऩे से खरीफ की इस प्रमुख फसल में कीट तथा अन्य मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढऩे की आशंका भी बढ़ गई है।
 

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पंजाब में कपास की फसल में मची थी तबाही, राजस्थान को बचाने का प्रयास

पंजाब में कपास की फसल में मची थी तबाही, राजस्थान को बचाने का प्रयास
हनुमानगढ़. इस वक्त कपास की फसल में फूल निकलने की प्रक्रिया चल रही है। अगेती फसल में तो टिंडे निकलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस दौरान अचानक नमी बढऩे से खरीफ की इस प्रमुख फसल में कीट तथा अन्य मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढऩे की आशंका भी बढ़ गई है।
कृषि अधिकारियों का कहना है कि गत दो-तीन वर्ष पहले पंजाब में किसानों की ओर से कपास की फसल में ओबेरोन रसायन का अत्याधिक प्रयोग करने से खेतों में तबाही मच गई थी। वहीं अबकी बार बाजार में उलाला रसायन की भरमार है। उलाला पनामा के नाम से जिले में तकरीबन हर कीटनाशक विक्रेता के पास यह उपलब्ध है। पंजाब की तरह कहीं राजस्थान में भी कीटनाशक रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से फसल को नुकसान नहीं पहुंचे। इसे लेकर कृषि विभाग के उप निदेशक दानाराम गोदारा ने विभाग के सभी निरीक्षकों को नमूने लेने को लेकर लक्ष्य आवंटित किए हैं।
इसके बाद तय लक्ष्यों के अनुसार सभी निरीक्षक उक्त रसायनों के नमूने लेकर विभाग की ओर से अधिकृत प्रयोगशालाओं में भेज रहे हैं। केवल अगस्त २०१९ में ही महज सात दिनों में ११० नमूने लिए जा चुके हैं। इतने ही नमूने अगले पखवाड़े तक और लिए जाने को लेकर निर्देशित किया गया है। रसायनों के अवैध कारोबार को रोकने तथा किसानों को गुणवत्ता युक्त रसायन मिल सके, इसे देखते हुए कृषि विभागके उप निदेशक ने ब्लॉक स्तर टीमें गठित करके नमूने लेने के निर्देश दिए हैं। इसमें सभी निरीक्षक को कम से कम दस नमूने लेने का लक्ष्य दिया गया है। कृषि अधिकारी बीआर बाकोलिया के अनुसार कपास फसल में एक ही कीटनाशी फ्लोनिकामिड ५० प्रतिशत तथा डब्ल्यू जी, जो उलाला पनामा के नाम से स्थानीय मंडियों में बिक रहा है।
विभागीय पैकेज के अनुसार कीटनाशी का प्रयोग नहीं करके एक ही रसायन का बार-बार उपयोग करने से बीटी कपास फसल में नुकसान की आशंका रहती है। एक ही रसायन के अधिक उपयोग से पंजाब में भारी नुकसान कपास को हो चुका है। इसी से सबक लेते हुए स्थानीय अधिकारियों ने मंडीवार लक्ष्य आवंटित करके अगस्त माह में रसायनों के नमूने लेकर इसकी गुणवत्ता जांचने का निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि जिले में अगस्त माह में कीटनाशक रसायनों का अधिक उपयोग होता है। अनुमान के मुताबिक करोड़ों रुपए के रसायन का कारोबार जिले में होता है। इस स्थिति में फसल को संभावित नुकसान से बचाने के लिए अफसर मुस्तैदी बरत रहे हैं। जिले में इस बार पौने दो लाख हेक्टेयर में नरमा-कपास की बिजाई हुई है।
हो चुका नुकसान
बीते बरसों में सफेद मक्खी सहित अन्य कीटों के प्रकोप से हनुमानगढ़ जिले में भी कपास की फसल को काफी नुकसान हो चुका है। इसे देखते हुए अफसर अब समय पर सर्तकता बरत रहे हैं। वर्ष २०१५-१६ में सफेद मक्खी का प्रकोप आने के कारण बीते एक दशक में सबसे कम उत्पादन हुआ था। उस वक्त प्रति हेक्टेयर महज १४.७५ क्विंटल उत्पादन हुआ था। जबकि २०१८-१९ में समय पर प्रबंधन करने के कारण औसत उत्पादन २४ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के करीब हुआ। इस बार भी अफसर रसायनों की उचित निगरानी कर फसलों को बीमारियों से बचाने में कामयाब हो जाते हैं तो निश्चित तौर पर बम्पर पैदावार होगी।
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