ऐसी स्थिति आई थी सामने
राजस्थान पत्रिका के स्टिंग ऑपरेशन के दौरान शहर के कई अल्ट्रासाउंड केन्द्रों की पड़ताल की गई। भीषण गर्मी में गर्भवतियों को एक से दूसरे सेंटर पर जांच के लिए टरकाया गया। उनको फ्री जांच वाले कहकर संबोधित किया गया। सभी केन्द्रों ने अपनी मर्जी के हिसाब से नियम-कायदे बनाकर जांच नहीं करने को लेकर उनकी आड़ ली। कई केन्द्रों पर चार से पांच घंटे बाद जांच की गई। इस बीच प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना के अलावा जो रोगी या गर्भवती आ रही थी कि उनकी जांच शीघ्रता से होती रही। सरकारी अस्पताल की पर्ची पर चिकित्सक के जांच के लिए लिखने के बावजूद उस पर प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना की मोहर नहीं लगी होने का कहकर जांच से मना किया गया। कई को नौवें तथा छठे माह में जांच नहीं करने का नियम बताकर टरकाया गया। जबकि इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता। जबकि कुछ केन्द्रों ने तो यह कहकर जांच से मना कर दिया कि उनका कोटा खत्म हो गया है। जबकि ऐसा कोई योजना के तहत मापदंड नहीं है।
वर्ष में सिर्फ 12 दिन
गौरतलब है कि सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड जांच का अभाव है। ऐसे में सरकार ने यह योजना शुरू की। इसके तहत निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर से बात कर उनको योजना में शामिल किया गया। साल में केवल 12 दिन ही निजी अल्ट्रासाउंड सेंटर को सरकारी अस्पताल में चिकित्सक को दिखाने वाली गर्भवती की नि:शुल्क जांच करनी होती है। मतलब हर माह की नौ तारीख को यह जांच होती है। इसके एवज में प्रति जांच 200 रुपए भी सरकार अल्ट्रासाउंड सेंटर संचालकों को भुगतान करती है। इस सेवा कार्य के लिए आंशिक भुगतान भी सेंटर संचालकों को किया जाता है। इसके बावजूद वर्ष में मात्र 12 दिन जांच करने में कई केन्द्र आनाकानी करते हैं।