कैसे हो कड़ी निगरानी, ठंडे बस्ते में निजी अस्पतालों की कुंडली
हनुमानगढ़Published: Jan 24, 2019 12:09:20 pm
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कैसे हो कड़ी निगरानी, ठंडे बस्ते में निजी अस्पतालों की कुंडली
कैसे हो कड़ी निगरानी, ठंडे बस्ते में निजी अस्पतालों की कुंडली
– निजी चिकित्सालयों में अप्रशिक्षित व अयोग्य स्टाफ की जांच करना भूले
– सूचना प्रपत्रों का राग छेड़ निदेशालय ने ओढ़ी चुप्पी
हनुमानगढ़. मुंह मांगे दाम वसूल गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा उपलब्ध कराने के दावे करने वाले निजी अस्पतालों के इलाज पर निदेशालय ने चुप्पी ओढ़ ली है। पिछली सरकार में चिकित्सा मंत्री के आदेश पर निदेशालय ने सभी सीएमएचओ से निजी अस्पतालों में कार्यरत स्टाफ की सूचनाएं मांगी थी। इसकी पालना में ही अस्पतालों के पसीने छूट गए थे। चिकित्सा महकमे ने भी पहली बार निजी अस्पतालों से उनके नर्सिंग स्टाफ आदि के संबंध में ऐसी सूचना मांगी थी। जिले की हालत यह रही कि मुश्किल से दो दर्जन चिकित्सालयों ने सूचना प्रपत्र भरकर भिजवाए और उनमें भी ढेरों कमियां थी।
इसके बाद ‘अज्ञात कारणों’ से प्रक्रिया एकदम से ठप हो गई। न तो बकाया अस्पतालों से सूचना मांगी गई और न रही प्राप्त सूचना प्रपत्रों के आधार पर पड़ताल करवाई गई। जबकि निजी अस्पतालों के निरीक्षण या पड़ताल के लिए पहले से ही कोई सुचारू व्यवस्था नहीं है। सरकार और निदेशालय के इस कदम से अस्पतालों की मनमर्जी पर लगाम की उम्मीद जगी थी, जो परवान चढऩे पहले समाप्त हो गई। मजे की बात तो यह है कि कचौरी-समोसे बेचने वालों को खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम के तहत पंजीयन व लाइसेंस बनाना जरूरी है। उनका जब चाहे खाद्य सुरक्षा अधिकारी निरीक्षण कर सकता है। लेकिन निजी अस्पतालों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
योग्य को नहीं मिलता मौका
जानकारी के अनुसार निजी अस्पतालों में नौसिखिए व अयोग्य नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति संबंधी शिकायतों के बाद चिकित्सा मंत्री के आदेश पर चिकित्सा निदेशालय ने वर्ष 2015 में अस्पतालों से उनके यहां कार्यरत नर्सिंग स्टाफ की तय प्रपत्र में सूचना मांगी थी। इसकी पालना में चिकित्सा विभाग ने आवश्यक सूचना निर्धारित प्रपत्र में मांगी। मगर जिले में करीब दो दर्जन चिकित्सालयों ने ही सूचना जमा कराई। जबकि जिले में मोटे तौर पर 100 से अधिक अस्पताल व क्लिनिक हैं। इनमें पचास से ज्यादा तो ऐसे हैं, जहां दस से अधिक बैड संचालित किए जा रहे हैं। इस आनाकानी का सीधा सा अर्थ है कि महंगे और कथित गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा वाले ज्यादातर निजी अस्पतालों में प्रशिक्षित व डिग्री-डिप्लोमाधारी नर्सिंग स्टाफ का टोटा है। चार-पांच हजार रुपए देकर बिना डिग्री-डिप्लोमा वालों से ही काम चलाया जा रहा है।
तो बनती कुंडली
प्रपत्र में अस्पताल संचालक को उनके यहां कार्यरत नर्सिंग कर्मियों की संख्या, उनके डिप्लोमा व डिग्री तथा अन्य शैक्षणिक दस्तावेजों की जानकारी देनी थी। इसके अलावा दस्तावेजों की प्रमाणित कॉपी भी प्रपत्र के साथ सलंग्न कर के देनी थी। निदेशालय की ओर से नर्सिंग डिग्री व डिप्लोमा की राजस्थान नर्सिंग काउंसिल से जांच करवाई जानी थी। इसमें त्रुटि या फर्जीवाड़ा पाए जाने पर संबंधित कार्मिक तथा अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई होती।
नीयत पर शक
विडम्बना है कि सूचना जमा नहीं कराने वाले चिकित्सालयों के खिलाफ जिला स्तर पर चिकित्सा विभाग सीधे कोई कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है। इस मामले में निदेशालय के मार्गदर्शन के बाद कोई एक्शन लिया जा सकता है। क्योंकि अस्पताल संचालन के लिए किसी तरह के पंजीकरण, लाइसेंस आदि की अब तक कोई व्यवस्था ही नहीं है। ‘क्लिनिकल स्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010’ में ऐसे प्रावधान हैं। लेकिन उसे अब तक राज्य सरकार ने लागू ही नहीं किया है। यह कानून लागू होने पर निजी अस्पतालों को संचालक चिकित्सक की डिग्री व पैथी, बैड संख्या, चिकित्सा सेवा व व्यवस्थाओं, अस्पताल की वार्षिक आय, कार्यरत चिकित्सक व नर्सिंग स्टाफ, लाइसेंस की स्थिति आदि की जानकारी आवश्यक रूप से सीएमएचओ कार्यालय में देनी होगी। नियमों का उल्लंघन करने पर लाइसेंस रद्द व पांच लाख रुपए तक के जुर्माने की कार्रवाई की जा सकेगी। मगर यह बिल फिलहाल ठंडे बस्ते में है।