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बेरोजगारों के भत्ते व मजदूरों से भी कम पगार, सरकारी का ख्वाब दिखाकर सरकार ले रही बेगार

locationहनुमानगढ़Published: Aug 02, 2019 12:26:23 pm

Submitted by:

adrish khan

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हनुमानगढ़. सरकारी नौकरी की चाह में युवाओं के सपने स्वाह हो रहे हैं। सरकार सपना दिखाकर टाळा ले रही है। स्थिति ऐसी हो गई है कि सामंती दौर में ली जाने वाली बेगार लोकतंत्र में भी धड़ल्ले से जारी है। फर्क बस इतना है कि अब जबरन नहीं बल्कि ‘झांसाÓ देकर बेगार ली जा रही है। सरकारी होने के इंतजार में बरसों से हजारों संविदा कार्मिक अद्र्धकुशल मजदूरों से भी कम मानदेय पर जिंदगी काट रहे हैं।

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बेरोजगारों के भत्ते व मजदूरों से भी कम पगार, सरकारी का ख्वाब दिखाकर सरकार ले रही बेगार

बेरोजगारों के भत्ते व मजदूरों से भी कम पगार, सरकारी का ख्वाब दिखाकर सरकार ले रही बेगार
– बरसों से न्यूनतम मजदूरी व अद्र्धकुशल मजदूरों से भी कम मानदेय पर कराया जा रहा काम
– स्थाईकरण का चुनावी वादा नहीं हुआ पूरा
– सरकारी नौकरी की चाह में बेगारी का झेल रहे दंश
हनुमानगढ़. सरकारी नौकरी की चाह में युवाओं के सपने स्वाह हो रहे हैं। सरकार सपना दिखाकर टाळा ले रही है। स्थिति ऐसी हो गई है कि सामंती दौर में ली जाने वाली बेगार लोकतंत्र में भी धड़ल्ले से जारी है। फर्क बस इतना है कि अब जबरन नहीं बल्कि ‘झांसाÓ देकर बेगार ली जा रही है। सरकारी होने के इंतजार में बरसों से हजारों संविदा कार्मिक अद्र्धकुशल मजदूरों से भी कम मानदेय पर जिंदगी काट रहे हैं। विडम्बना यह कि सरकार बेरोजगारों को भत्ता देकर तो खूब गाल बजा रही है। मगर विभिन्न विभागों में बरसों से लगे संविदा कर्मियों को तीस दिन हाजिरी भरने के बाद भी बेरोजगार भत्ते और अकुशल मजदूरों से कम पैसे मिल रहे हैं। हर साल मानदेय में दस प्रतिशत की बढ़ोतरी सरीखा नियम तो यहां कभी लागू ही नहीं होता।
ऐसे में कई संविदा कार्मिक सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं तो कई तैयारी में हैं। इसकी वजह भी सरकार के चुनावी वादे हैं। चुनाव के दौरान सभी विभागों के संविदाकर्मियों के स्थाईकरण को लेकर वादे भी किए गए थे। लेकिन सरकार बनने के आठ माह बाद भी इस दिशा में सिवाए कमेटी गठित करने के कुछ नहीं हुआ। विधानसभा चुनाव के बाद व लोकसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने सौ दिन की कार्ययोजना बनाई थी। इस सौ दिन की प्लानिंग संविदाकर्मियों के स्थाईकरण के मुद्दे को शामिल नहीं किया गया था। ऐसे में अब धरना-प्रदर्शन और आंदोलन का दौर शुरू हो चुका है।

काम में कुशल, मजदूरी में नहीं
डेढ़ दशक से मिड डे मील योजना के तहत हेल्पर कम कूकर विद्यालयों में रसोई संभाल रहे हैं। यह सैकड़ों बच्चों का खाना बनाने से लेकर परोसने तथा रसोई में झाडू-पोंछा करने का जिम्मा संभालते हैं। अपने कार्य में कुशल हैं। मगर सरकार इनको अद्र्धकुशल मजदूर के समान भी मानदेय नहीं दे रही है। हेल्पर कम कूकर को 1320 रुपए मानदेय दिया जा रहा है। विद्यालयों में 50 विद्यार्थियों पर एक, 100 पर दो तथा 150 पर तीन हेल्पर कम कूकर रखने का प्रावधान है।
कार्य में सहयोग, पगार में असहयोग
आशा सहयोगिन सरकार के चिकित्सा तथा महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यों में सहयोग करती हैं। कई योजनाओं की सफलता का जिम्मा उन पर है। मगर फिल्ड में धक्के खाने के बाद भी वे महिला बेरोजगार भत्ते से भी 800 रुपए कम मानदेय पा रही हैं। उनको 2500 रुपए मानदेय दिया जा रहा था, जिसमें सरकार ने 200 रुपए की बढ़ोतरी कर खूब वाहवाही लूटने की कोशिश की। इसी तरह साथिन को 3350 रुपए मानदेय दिया जाता है। आशा सहयोगिन व साथिन मानदेय में बढ़ोतरी को लेकर निरंतर धरना-प्रदर्शन कर रही हैं।
कभी स्कूल, कभी पंचायत
पूर्ण कुशल मजदूर की 257 रुपए दिहाड़ी सरकार ने तय कर रखी है। मगर पिछले ढाई साल से दक्षता से कार्य कर रहे पंचायत सहायकों को अकुशल मजदूर की तरह 213 रुपए दिहाड़ी भी नहीं दी जा रही है। कभी ग्राम पंचायत तो कभी पीईईओ के अधीन स्कूल में ड्यूटी बजाने वाले पंचायत सहायकों को महज 6000 रुपए मासिक दिए जा रहे हैं। किसी तरह का भत्ता वगैरह नहीं मिलता। बस का किराया या बाइक का पेट्रोल खर्च जोड़ दें तो मुश्किल से पांच हजार रुपए उनके हाथ में आते हैं। जवाबदेही ग्राम विकास अधिकारी से लेकर पीईईओ तक के प्रति है।
मनरेगा मजदूर से बदतर हाल
केन्द्र सरकार ने वर्ष 2012-13 में ग्राम पंचायतों तथा पंचायत समिति मुख्यालयों पर सेवा केन्द्रों की सुरक्षा के लिए आऊट सोर्सिंग बेसिस के आधार पर प्रहरी नियुक्ति कर उनका मासिक 3822 रुपए मानदेय तय किया। इस राशि में से एक हजार से पन्द्रह सौ रुपए तक संबंधित फर्म काट लेती है। कई बार इससे भी अधिक कटौती कर दी जाती है। ऐसे में प्रहरी के हाथ में मुश्किल से 2500 से 3000 रुपए आ पाते हैं। अधिकारी उनसे दिन में भी ड्यूटी करवाते हैं और रात को उनको सेवा केन्द्र पर सुरक्षा के लिहाज से सोना पड़ता है। मनरेगा में न्यूनतम मजदूरी 193 रुपए निर्धारित है। यदि सेवा केन्द्रों के सुरक्षाकर्मियों को पूरा मानदेय 3822 रुपए भी मिले तो केवल 127 रुपए ही प्रतिदिन मजदूरी होती है जो मनरेगा मजदूर से 36 रुपए कम होती है।
डिग्रीधारी शिक्षक कुशल मजदूर नहीं
सरकार डिग्रीधारी शिक्षकों को भी कुशल मजदूर नहीं मानती है। कुशल व पूर्ण कुशल मजदूर की तीस दिन की दिहाड़ी के हिसाब से क्रमश: 7050 व 7710 रुपए होते हैं। मगर मदरसा पैराटीचर्स की बात करें तो साढ़े पांच साल पहले नियुक्त छठे बैच वालों को महज 7202 रुपए मानदेय दिया जा रहा है जो पूर्ण कुशल मजदूर से 500 रुपए कम है। जबकि लगभग 18 साल पहले लगे प्रथम बैच के मदरसा पैराटीचर्स को इतने बरसों के बाद भी केवल 9250 रुपए दिए जा रहे हैं। स्थाईकरण की चाह में प्रशिक्षित युवा न्यूनतम मजदूरी से भी कम में कार्य कर रहे हैं।
फैक्ट फाइल
हेल्पर कम कूकर – 1320 रुपए।
आशा सहयोगिनी – 2700 रुपए।
साथिन – 3350 रुपए।
सुरक्षा प्रहरी – 3822 रुपए।
पंचायत सहायक – 6000 रुपए।
मदरसा पैराटीचर्स – 7202 रुपए।
बेरोजगार भत्ता पुरुष – 3000 रुपए।
बेरोजगार भत्ता महिला – 3500 रुपए।
मजदूरी के सरकारी मापदंड
श्रेणी दिहाड़ी 30 दिन के
अकुशल 213 6390
अद्र्ध कुशल 227 6810
कुशल 235 7050
पूर्ण कुशल 257 7710
मनरेगा मजदूर 193 19300 (सौ दिन)
सपनों पर कुठाराघात
अद्र्ध कुशल मजदूरों से भी कम पगार पर प्रशिक्षित बेरोजगारों से सरकार वर्षों से काम करा रही है। वेतन बढ़ोतरी व स्थाईकरण नहीं कर उनके साथ धोखा किया जा रहा है। यह पूर्णत: युवाओं के सपनों पर कुठाराघात है। – रघुवीर वर्मा, सचिव माकपा।
बैठे चुप्पी मारे
सरकार ने चुनाव के दौरान स्थाईकरण का वादा किया था। मगर अब तक इस दिशा में कुछ नहीं किया गया है। जन प्रतिनिधि भी चुप्पी मारे बैठे हैं। बेरोजगार युवा सब देख रहे हैं। अगर वादे पूरे नहीं किए गए तो समय आने पर करारा जवाब देंगे। – सिकंदर खान, मदरसा पैराटीचर्स।
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