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बेटियां बोझ नहीं,कैशलेस शादी, दुल्हन ही सबसे बड़ा दहेज

locationहनुमानगढ़Published: Mar 29, 2019 05:34:04 pm

Submitted by:

Rajaender pal nikka

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marriage without dowry

बेटियां बोझ नहीं,कैशलेस शादी, दुल्हन ही सबसे बड़ा दहेज

-बेटियां बोझ नहीं उन्हें बोझ बनाया जा रहा है

-दहेज में होने वाले खर्चो से अपनी बेटियों को गुण्वत्ता पूर्ण शिक्षा दीक्षा दिलाई जा सकती है। फिर बेटी बोझ नहीं रहेगी।

पल्लू. विहाह शादियों में दहेज की परंपरा, मृत्युभोज, बालविवाह जैसी परम्पराएं हमारे समाज में कथित रूप से कुप्रथा ही मानी जाती है। इन प्रथाओं को समाज से दूर करने की सोचते तो अमुमन लोग है मगर करने वाले चंद लोग ही है जो इन परंपराओं को कोसों दूर छोडक़र समाजहित का कार्य करते है। सामाजिक तानों-बानों को नजर अंदाज कर महत्वपूर्ण उदाहरण पेश करते है। ऐसे उदाहरण बिरले ही देखने को मिलते है।
हाल ही में पल्लू के पूर्व सरपंच व भाजपा जिला उपाध्यक्ष धर्मपाल सिहाग ने अपने पुत्र मुकेश सिहाग की शादी में ऐसा ही उदाहरण पेश कर समाज को अच्छा संदेश दिया है। उनके पुत्र मुकेश की शादी बीकानेर के रामलाल भादू की पुत्री अरूणा से हुई। उनका मानना है कि दुसरों को बदलने की सोच रखने वालों को सर्वप्रथम स्वयं को बदलना जरूरी है।
इस सोच के आधार पर उन्होंने खुद इन प्रथाओं को रोकने के लिए अपने पुत्र की शादी में यह फैसला लेना उचित समझा। उन्होंने बताया कि शादियों में दुल्हा-दुल्हन ही सबसे बड़ा दहेज है। बेटी बोझ नहीं होती है बाप के मगर इन कुप्रथाओं ने बोझ बना दिया है। एक पिता अपनी बेटी को पालपोशकर बड़ी करता है। उसकी पढ़ाई लिखाई पर खर्च करता है।
और उसके बाद उसकी शादी में अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उसे दहेज के रूप में देता है। इन कुप्रथाओं के चलते गरीब परिवारों में सबसे बड़ी समस्या होती है। एक पिता अपने पर कर्ज करके भी अपनी पुत्री का विवाह धूूम-धाम से करना चाहता है ताकि समाज के तानों-बानों का सामना ना करना पड़े।
-शगुन का रूपया और शादी संपन्न

पूर्व सरपंच धर्मपाल सिहाग ने बताया कि उनका बेटा राजकीय सेवा में प्रोफेशर के पद कार्यरत है। उनकी इच्छा भी उनके अनुरूप ही रही है। उन्होंने शादी में फेरे होने के बाद सुमटणी में रखे सामान व नगदी, गहनों को सख्त रूप से लेने से मना कर दिया। उन्होंने वहां से शगुन का एक रूपया व नारियल से ही शादी सं्रपन्न करने की इच्छा जाहिर की। वहां मौजूद बारातियों व घरातियों ने इस पहल का तालियों से स्वागत किया।
आंखे खुशी के आंसुओं से भर आई। सबके जुबान पर एक ही नाम था शादी हो तो ऐसी। सिहाग की इस पहल से प्रेरणा लेकर उस मंडप में दुल्हन की छोटी बहन की शादी भी इस अंदाज से ही हुई। यानि बीकानेर के इस परिवार ने अच्छे संबधियों की वजह से अपनी दो बेटियों के विवाह में इस कुप्रथाओं को कोई जगह नहीं दी।
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-फिर बेटी बोझ नहीं रहेगी
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अगर पूर्व सरपंच की ये पहल समाज में रंग लाती है तो इससे गरीब तबके के पिताओं को राहत मिलेगी। उनके दहेज में होने वाले खर्चो से अपनी बेटियों को गुण्वत्ता पूर्ण शिक्षा दीक्षा दिलाई जा सकती है। फिर बेटी बोझ नहीं रहेगी।
-लेखराम भांभू, सरपंच ग्राम पंचायत पल्लू
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