एमएसडीपी के तहत राउमावि जंक्शन में 16 कक्ष निर्माण कराने को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है। पहले तो कई लोगों ने एमएसडीपी में यहां कक्ष निर्माण पर ही आपत्ति जताई। क्योंकि इस योजना के तहत शैक्षणिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यक इलाके में निर्माण करवाना होता है। बाद में जब निर्माण हो गया तो कक्षों में दरारें आ गई। कई संगठनों ने इसकी शिकायत की। मगर ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई।
जमे बैठे अधिकारी
महत्वपूर्ण यह है कि रमसा (अब समसा) में सीधे तौर पर तो कोई सिविल इंजीनियर है ही नहीं। स्कूलों में लगे प्रयोगशाला सहायकों को डिप्लोमा के आधार पर ही एसएसए व रमसा में प्रतिनियुक्त किया जाता रहा है। अब समसा में भी कमोबेश यही स्थिति है। बड़ी बात यह है कि समसा में अभियंता बने बैठे कई कार्मिक तो यहां से जाना ही नहीं चाहते। एक अधिकारी को तो विभाग ने सेवा विस्तार भी नहीं दिया था। ऐसे में उसको करीब एक साल तक पगार भी नहीं मिली थी। इसके बावजूद वो बिना पगार ही ‘सेवा’ करते रहे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि ठेकेदारों से उनकी कितनी सांठ-गांठ रही होगी जो बिना वेतन ही काम करने पर तैयार हो जाते हैं। आज भी कई कार्मिक कई बरसों से प्रतिनियुक्ति पर समसा में जमे हैं। जबकि प्रतिनियुक्ति पर नौकरी के लिए एक अवधि तय है। इन हालात में गुणवत्तापूर्ण निर्माण की उम्मीद करना मजाक ही लगेगा।