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जिला अस्पताल में एक यूनिट ब्लड आएगा कई जनों के काम

locationहनुमानगढ़Published: Sep 24, 2018 11:03:23 am

Submitted by:

Rajaender pal nikka

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जिला अस्पताल में एक यूनिट ब्लड आएगा कई जनों के काम

आठ वर्षों से हनुमानगढ़ को था रक्त विभाजक तत्व इकाई का इंतजार…

हनुमानगढ़. जिला अस्पताल में एक यूनिट ब्लड अब कई रोगियों के काम आ सकेगा। रोगियों को प्लेटलेट्स व प्लाजमा चढ़ाने के लिए आसपास के जिलों में नहीं जाना पड़ेगा। जिला अस्पताल के ब्लड कंपोनेंट यूनिट शुरू होने से यह सुविधा यहां भी हो गई। हालांकि इस यूनिट का ट्रायल शुरू हुए काफी दिन हो चुके है। इसका विधिवत रूप से उद्घाटन सोमवार को दोपहर सवा 12 बजे जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप करेंगे।
गौरतलब है कि आठ वर्ष पहले इस यूनिट को खोलने की घोषणा की थी जो कि अब जाकर ब्लड बैंक के प्रथम तल पर शुरू की गई।
नाको (नेशनल एड्स कंट्रोल सोसायटी) की पहल पर कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने जुलाई २०१० में हनुमानगढ़ सहित सात ब्लड बैंकों में सेपरेटर यूनिट या ‘ब्लड कंपोनेट प्रिपे्रशन यूनिट’ (तत्व विभाजक) स्थापित करने की स्वीकृति दी थी।
जिला अस्पताल के ब्लड बैंक में इसके लिए भवन भी कई साल पहले बना दिया गया। लेकिन सरकार को मशीनें व चिकित्सकीय स्टाफ उपलब्ध करवाना याद नहीं रहा।
उस समय यूनिट के उपकरणों आदि पर ३० लाख रुपए से अधिक खर्च आ रहा था। इसके बाद चुनाव हुए और कांग्रेस निपट गई। भाजपा ने नए लिफाफे में पुराने माल की कहावत को चरितार्थ करते हुए वर्ष २०१५ में प्रदेश के नौ अस्पतालों में तत्व विभाजक यूनिट स्थापित की घोषणा कर फिर प्रशंसा बटोर ली। इस घोषणा को भी तीन वर्ष हो चुके हैं। अब जाकर इसे शुरू किया गया है।
यह देना होगा शुल्क
पीएमओ डॉ. दीपक सैनी ने बताया कि राजकीय अस्पताल में भर्ती के मरीजों के लिए सुविधा निशुल्क रहेगी। सिंगल डोनर प्लैटलेट्स के लिए ७५०० रुपए देने होंगे। जबकि बीकानेर व जयुपर जैसे शहरों इसके लिए दस से पंद्रह हजार रुपए का शुल्क लिया जाता है। इसी तरह निजी अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजन को हॉल ह्यूमन ब्लड के लिए १२५०, पैक्ड रेड सेल्स के लिए भी१२५०, प्लाजमा के लिए ४०० व प्लेटलेट्स कंसनट्रेट के लिए भी ४०० रुपए शुल्क देना होगा। डॉ. सैनी ने बताया कि यूनिट का शुरू होना जिले के लिए बड़ी उपलब्धि है, इसका लाभ हनुमानगढ़ जिले को मिलेगा। अब डेंगू रोगियों का इलाज, प्लेटलेट्स व प्लाजमा आदि की सुविधा होने से इलाज यहां संभव हो सकेगा।
यूनिट की जरूरत क्यों
ब्लड कंपोनेट प्रिपे्रशन यूनिट में ब्लड से आरबीसी, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा, फ्रोजन प्लाज्मा, डब्ल्यूबीसी आदि तत्व अलग कर लिए जाते हैं। फिर रोगी को आवश्यकतानुसार इनमें से कोई तत्व चढ़ाया जाता है। तत्व विभाजन के दौरान खून से प्लाज्मा प्रोटीन भी अलग कर लिया जाता है। इसके बाद किसी भी रोगी पर उस ब्लड का रिएक्शन होने की आशंका खत्म हो जाती है। इसी तरह एमरजेंसी में ब्लड ग्रुप की जांच किए बिना ही रोगी को ‘ओ पॉजीटिव’ ब्लड के आरबीसी दिए जा सकते हैं। इसमें एंटीजन व एंटीबॉडी नहीं होने से शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। एक यूनिट खून कई रोगियों के काम आ जाता है।
***** ब्लड खतरनाक
चिकित्सकों के अनुसार थैलेसीमिया पीडि़तों को सिर्फ रक्त में लाल कणिकाओं मतलब पैकसेल की ही आवश्यकता होती है। लेकिन तत्व विभाजन के अभाव में थैलेसीमिया रोगियों को ***** ब्लड ही चढ़ाया जाता है। इसमें आरबीसी के साथ-साथ प्लेटलेट्स, प्लाज्मा, डब्ल्यूबीसी आदि भी होते हैं। जबकि इन तत्वों की उन्हें कतई जरूरत नहीं होती। प्लाज्मा प्रोटीन थैलेसीमिया पीडि़तों के लिए खतरनाक है। जबकि उन्हें तो हर माह खून चढ़ाना पड़ता है। निरंतर प्लाज्मा प्रोटीन चढ़ाने व कम उम्र होने के कारण रोगियों के शरीर पर कई दुष्प्रभाव पडऩे लगते हैं। पैथोलॉजिस्ट हार्ट सर्जरी में रोगी को केवल प्लाज्मा की जरूरत होती है। एनीमिया व ह्रदय रोगी को सिर्फ आरबीसी की आवश्यकता होती है। ५०० एमएल खून में २०० एमएल लौह तत्व होता है, जो रोगी की मांसपेशियों में जमा हो जाता है। आवश्यकता नहीं होने पर यह बहुत घातक है। यदि लौह तत्व पेनक्रियाज में जमा हो जाए तो मरीज मधुमेह की चपेट में आ सकता है।
पत्रिका अभियान का असर
इस यूनिट में धूंक फांक रहे उपकरण व मशीनों की निकल रही गारंटी अवधि, रोगियों को इसकी जरूरत को लेकर पत्रिका ने पिछले दस माह में सैंकड़ों खबरों को प्रकाशित कर चिकित्सा विभाग के अधिकारियों को जगाने का काम किया। पत्रिका के लगातार अभियान के बाद गाजियाबाद की टीम ने यूनिट का निरीक्षण कर लाइसेंस की प्रक्रिया शुरू की। गत माह में चिकित्सा विभाग ने लाइसेंस जारी करते हुए यूनिट को शुरू करने की हरी झंडी दी थी।
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