जबकि योजनाओं की चमक-धमक के बीच चंद पैसों और रोटी के लिए कुछ जिंदगियां आज भी तड़प रही है। स्थिति यह है कि जंक्शन में सैक्टर बारह मेें शिव कुटिया के पीछे निवास करने वाली 70 वर्षीय संतोष पत्नी बलवंत सिंह की दास्तां सुनकर तो पत्थर दिल भी पसीज जाए। लेकिन सरकारी तंत्र है कि वह लकीर का फकीर बनकर उसकी जिंदगी का तमाशा बीते चार बरसों से चुपचाप देख रहा है। सरकारी योजनाओं के हालात ऐसे हैं कि टूटे कुल्हे के सहारे दो-तीन बरसों से दफ्तरों का चक्कर काट रही इस वृद्धा को आज तक किसी योजना का लाभ नहीं मिला है। आखिरी बार गुरुवार को वह किसी तरह लाठियों के सहारे लंबी सीढिय़ां चढक़र कलक्टर से मिलने के लिए कलक्ट्रेट पहुंची।
लेकिन व्यस्तता के चलते न तो कलक्टर मिले और ना ही पेंशन स्वीकृत करने वाले एसडीएम। जिससे अब वह पूरी तरह से मायूस हो गई है। इससे पहले वह कई ई-मित्र केंद्रों और सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग के एनालिस्टकम प्रोग्रामर योगेंद्र कुमार से भी मिली। तकनीकी रूप से जांचने के बाद योगेंद्र कुमार ने भी उक्त महिला का आधार कार्ड बनवाने में खुद को असमर्थ बताया।
उन्होंने पत्रिका को बताया कि संतोष देवी के आंख की पुतली और हाथ के अंगूठे काम नहीं कर रहे। इसके कारण इसके आधार कार्ड बनाने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने बताया कि एसडीएम कार्यालय से मैंने संपर्क किया है, आवेदन के बाद तय नियमों के तहत उक्त महिला की विधवा पेंशन स्वीकृत हो गई है, समन्वय करके उसे भुगतान दिलाने का प्रयास रहेगा। पूर्व में जितने दिनों की पेंशन बकाया है, महिला को दिलाने का प्रयास रहेगा। उनके इस प्रयास के बावजूद भी जब तक उक्त महिला का आधार कार्ड नहीं बनेगा, तब तक उसे सरकार की अन्य योजनाओं का लाभ निरंतर मिलता रहेगा, इस पर संशय है। वृद्धा संतोष देवी की छोटी बहन सरोज बताती है कि संतोष काफी खुश रहती थी। लेकिन करीब 15 वर्ष पहले बीमारी के चलते उसके पति बलवंत सिंह की मौत हो गई। बलवंत रिक्शा चलाकर परिवार पालते थे। लेकिन उनके मरने के बाद संतोष की जिंदगी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
औलाद नहीं होने के कारण उसे संभालने वाला कोई नहीं बचा। हालत यह है कि सरोज जैसे-तैसे रोटी का जुगाड़ करती है तो संतोष का पेट भरता है। सरोज ने बताया कि संतोष के पति की मौत के बाद वह काम करते समय गिर गई। इससे उसका कुल्हा पूरी तरह टूट गया। सिर भी उसका काफी नीचे हो गया है। नस में खिंचाव आने से हर सांस के साथ वह दर्द को महसूस करती है।
इलाज के अभाव में आज तक वह बिस्तर पर पड़ी हुई है। पैरों में इतनी सूजन है कि वह हर वक्त कराहती रहती है। सरोज बताती हैं कि संतोष के पति के मरने के बाद पड़ौसियों ने मिलकर उसकी विधवा पेंशन डाकघर में बंधवा दी और उसके पास हर महीने ५०० रुपए पेंशन के आने लगे। कुछ पैसे आने लगे तो संतोष की वीरान जिंदगी में कुछ चमक फिर से आ गई। लेकिन चार वर्ष पहले आधार से लिंक बैंक खाते में पेंशन जमा करवाने की अनिवार्यता के चलते उसकी जिंदगी फिर अंधेरों से घिर गई।
चार बरस से वह सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही है। लेकिन उसे राहत नहीं मिल रही। क्योंकि उसका अब तक कहीं बैंक खाता नहीं। पहचान के नाम पर उसका आधार कार्ड तक नहीं है। आज भी बैंकों में जाने पर बैंक वाले जाते ही आधार कार्ड नंबर पूछते थे, जो उसके पास नहीं है। जिसके कारण उसके हिस्से की पेंशन से वह अब तक वंचित हो रही है।
७० वर्षीय वृद्ध महिला भोग रही सिस्टम की वेदना सरकार की सारी योजनाएं बिना आधार के साबित हो रही बेकार पावर पर भारी अंगूठा
बेसहारा लोगों के जीवन-यापन के लिए केंद्र व राज्य सरकार दर्जन भर योजनाएं चला रही है। पालनहार, विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, खाद्य सुरक्षा, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, अन्नपूर्णा रसोई वगैरह-वगैरह पता नहीं कितनी सारी योजनाएं चल रही है। लेकिन हाथ का अंगूठा सरकार की सारी योजनाओं को ‘अंगूठा’ दिखा रहा है। विडंबना है कि सिस्टम के इतने सारे मजबूत हाथों पर महज एक अंगूठा भारी पड़ रहा है। सरकारी दफ्तर और बैंकिंग योजनाओं का लाभ बेसहारों को इसलिए नहीं मिल रहा, क्योंकि इन बुजुर्गों के हाथ के अंगूठे जवाब दे चुके हैं। किराए के मकान में जिंदगी की सांसें गिन रही संतोष को यह भी नहीं पता कि सरकार बिना छत वालों के लिए आवास योजनाएं भी चला रही है।
बेसहारा लोगों के जीवन-यापन के लिए केंद्र व राज्य सरकार दर्जन भर योजनाएं चला रही है। पालनहार, विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, खाद्य सुरक्षा, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, अन्नपूर्णा रसोई वगैरह-वगैरह पता नहीं कितनी सारी योजनाएं चल रही है। लेकिन हाथ का अंगूठा सरकार की सारी योजनाओं को ‘अंगूठा’ दिखा रहा है। विडंबना है कि सिस्टम के इतने सारे मजबूत हाथों पर महज एक अंगूठा भारी पड़ रहा है। सरकारी दफ्तर और बैंकिंग योजनाओं का लाभ बेसहारों को इसलिए नहीं मिल रहा, क्योंकि इन बुजुर्गों के हाथ के अंगूठे जवाब दे चुके हैं। किराए के मकान में जिंदगी की सांसें गिन रही संतोष को यह भी नहीं पता कि सरकार बिना छत वालों के लिए आवास योजनाएं भी चला रही है।
इन्होंने किया सामाजिक दायित्व का निर्वहन
वृद्धा संतोष देवी का आधार कार्ड बने बगैर बैंक में खाता खोलना संभव नहीं। एसबीआई कलक्ट्रेट ब्रांच के मैनेजर लखविंदर सिंह ने बताया कि करंट एड्रेस के आधार पर बेसिक सेविंग अकाउंट खोलने के बावजूद ग्राहक को एक वर्ष के भीतर आरबीआई की ओर से जारी नियमों के तहत छह दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, मनरेगा कार्ड आदि में से कोई एक जमा करवाना जरूरी होता है। इसके बिना खाता बंद करने का नियम है।
वृद्धा संतोष देवी का आधार कार्ड बने बगैर बैंक में खाता खोलना संभव नहीं। एसबीआई कलक्ट्रेट ब्रांच के मैनेजर लखविंदर सिंह ने बताया कि करंट एड्रेस के आधार पर बेसिक सेविंग अकाउंट खोलने के बावजूद ग्राहक को एक वर्ष के भीतर आरबीआई की ओर से जारी नियमों के तहत छह दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, मनरेगा कार्ड आदि में से कोई एक जमा करवाना जरूरी होता है। इसके बिना खाता बंद करने का नियम है।
हालांकि एसबीआई रीजन-५ के एजीएम दिनेश वर्मा के निजी प्रयासों से पीडि़त वृद्धा के बैंक खाते खोलने की प्रक्रिया हमने शुरू कर दी है। सोमवार को उसके घर जाकर हम बैंक पासबुक्स देने का प्रयास करेंगे। साथ ही उच्चाधिकारियों से पत्राचार कर हम इस तरह के मामलों में क्या किया जाए, इसका मार्गदर्शन भी प्राप्त करेंगे। संतोष देवी की पेंशन स्वीकृत होने तक एजीएम दिनेश वर्मा ने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने निजी खाते से हर माह ७०० रुपए वृद्धा के घर जाकर देने की बात कही। वर्मा ने बताया कि सरकारी योजनाएं की कुछ सीमाएं होती है, लेकिन इससे अलग व्यक्तिगत प्रयासों से भी हम किसी की जिंदगी में खुशहाली ला सकते हैं। उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के वृद्धा को नकद राशि सौंपी।