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लोक संसद में बोले वक्ता, अंगे्रजों के जमाने के कानून अब तक हैं लागू

locationहनुमानगढ़Published: Feb 02, 2021 08:57:12 am

Submitted by:

Purushottam Jha

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हनुमानगढ़. जिला मुख्यालय पर स्वदेशी कानूनी सोसायटी की ओर से लोक संसद का आयोजन किया गया। इसमें व्यापार मंडल गोलूवाला के अध्यक्ष राकेश ढाका, व्यापार मंडल हनुमानगढ़ के अध्यक्ष प्यारेलाल बंसल, वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर सोनी, राजपाल गोदारा, सुखदेव जाखड़, जसवंत गोदारा ने विचार रखे।
 

लोक संसद में बोले वक्ता, अंगे्रजों के जमाने के कानून अब तक हैं लागू

लोक संसद में बोले वक्ता, अंगे्रजों के जमाने के कानून अब तक हैं लागू

लोक संसद में बोले वक्ता, अंगे्रजों के जमाने के कानून अब तक हैं लागू
-जिला मुख्यालय पर लोक संसद का आयोजन
हनुमानगढ़. जिला मुख्यालय पर स्वदेशी कानूनी सोसायटी की ओर से लोक संसद का आयोजन किया गया। इसमें व्यापार मंडल गोलूवाला के अध्यक्ष राकेश ढाका, व्यापार मंडल हनुमानगढ़ के अध्यक्ष प्यारेलाल बंसल, वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर सोनी, राजपाल गोदारा, सुखदेव जाखड़, जसवंत गोदारा ने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व आईपीएस अधिकारी दलीप जाखड़ ने की। दलीप जाखड़ ने बताया कि पुलिस अधिनियम से लेकर आईपीसी, सीपीसी, साक्ष्य अधिनियम, विदेशी कानून, वन कानून, प्रेस व पुस्तक कानून, दिल्ली विशेष पुलिस अधिनियम आदि ऐसे कानून हैं जो अंग्रेजों के शासनकाल में बने। इनका मुख्य लक्ष्य अंग्रेजीराज और उनके हितों को संरक्षित करना था। जनता का हित इन कानूनों का ध्येय बिल्कुल नहीं था। आजादी के बाद थोड़े-बहुत परिवर्तन कर इन कानूनों को ज्यों का त्यों अपना लिया गया। सोसायटी अध्यक्ष जाखड़ ने बताया कि विधि आयोग, सेंटर फोर सिविल सोसायटी और स्वदेशी कानून सोसायटी ने एक हजार से ज्यादा ऐसे कानून छांटे हैं जो वर्तमान में लोकतंत्र, मानवाधिकार एवं अंतरराष्ट्रीय कानून के विरोधी हैं। इसके बावजूद हम उनको ढो रहे हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने बताया कि ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषक कानून व्यवस्था हूबहू जारी है और इसका पालन भी किया जा रहा है। हमारा भारत देश आज भी ब्रिटिश कॉमन वैल्थ से बंधा है और ब्रिटेन के राजा रानी प्रभुत्व रखते है। जबकि अनेक देश जैसे अमेरिका, इजिप्ट और तुर्की पूरी तरह से आजादी ले चुके है। ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 में भारत को स्वाधीन राष्ट्र की बजाय डोमिनियन स्टेट यानी अधीन राज्य का दर्जा दिया है। उन्होने बताया कि विधि आयोग, सेंटर फॉर सिविल सोसायटी और स्वदेशी कानून सोसायटी ने हजार से ज्यादा ऐसे कानून छांटे है जो आज के लोकतंत्र, मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय कानून के विरोधी है। हाल ही में बनाए गए तीन कृषि कानून इसी अंग्रेजी शोषक कानूनी व्यवस्था की तर्ज पर है, इसीलिये इनका विरोध हो रहा है। इस मौके पर एडवोकेट विजयसिंह चौहान, एडवोकेट सुशील भाकर, नवनीत निवाद, एडवोकेट संयोग शर्मा, मनफूल भादू, सुधीर गोदारा सहित अन्य अधिवक्ता मौजूद थे। वरिष्ठ अधिवक्ता शंकर सोनी ने कहा कि देश में इतने कानून हैं कि उनकी सही संख्या तो अर्टोनी जनरल और जज भी नहीं बता सकते। कानूनों का लक्ष्य जनता के हितों का संरक्षण होना चाहिए।

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