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हनुमानगढ़

जहां लगते थे श्रद्धालुओं के मेले, वहां अब छाई है विरानगी

हनुमानगढ़ जिले के ऐतिहासिक पल्लू के मां ब्रह्माणी मंदिर और भद्रकाली के मां भद्रकाली मंदिर में नहीं लगा इस बार मेला
कोरोना वायरस के चलते मंदिरों में हो रही है सिर्फ पूजा अर्चना
पुजारी और परिवार के चुनिंदा लोग कर रहे हैं मां की आराधना
आठ दिनों में दोनों स्थानों पर जुटते थे लाखों श्रद्धालु

हनुमानगढ़Mar 30, 2020 / 12:47 pm

Manoj

जहां लगते थे श्रद्धालुओं के मेले, वहां अब छाई है विरानगी

जहां लगते थे श्रद्धालुओं के मेले, वहां अब छाई है विरानगी

हनुमानगढ़. सनातन धर्म की परम्परा के अनुसार नवरात्रा पर्व का विशिष्ट महत्व है। इन नौ दिनों में घरों में घट स्थापना की जाती है और देवी पूजन होता है। अष्टमी और नवमीं को कन्याओं की पूजा करके उन्हें भोजन करवाया जाता है। नवरात्रों के दौरान मंदिरों में विशेष पूजा होती है, सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। मंदिरों में विशेष आरती और भजन कार्यक्रम एवं भजन संध्याएं होती हैं। जिले के पल्लू स्थित ऐतिहासिक मां ब्रह्माणी के मंदिर और भद्रकाली स्थित ऐतिहासिक मां भद्रकाली के मंदिर में तो नौ दिवसीय विशाल मेले भरते हैं, जिनमें लाखों श्रद्धालु शीश नवाते हैं। मेलों में दूसरे राज्यों से भी हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते स्थितियां अलग हैं। मंदिरों के कपाट बंद हैं, पल्लू और भद्रकाली में पुजारी परिवार के अलावा कोई नहीं है। पल्लू और भद्रकाली में लगने वाले विशाल अस्थाई बाजार इस बार गायब हैं। मेलों में लगने वाले झूल्ले दोनों जगहों पर विरान पड़े हैं। जिले में पल्लू और भद्रकाली के अलावा भी कई प्रमुख मंदिर हैं, जहां नवरात्रों में श्रद्धालु पहुंचते थे। इनमें रावतसर स्थित बाबा खेतरपाल मंदिर भी शामिल है। बाबा खेतरपाल मंदिर में तो हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते थे लेकिन अब वहां भी विरानगी है। हालांकि घरों में घट स्थापना हुई है और पूजा अर्चना भी हो रही है। जिले के प्रमुख धार्मिक स्थलों को लेकर प्रस्तुत है विशेष रिपोर्ट:-

घर बैठकर श्रद्धालु कर रहे नवरात्र पूजा
हनुमानगढ़. जहां नवरात्र में करीब ढाई लाख श्रद्धालु भद्रकाली मंदिर में माथा टेक मन्नत मांगते है। आज वो मंदिर सुनसान पड़ा रहा है। सुबह व शाम को पुजारी आरती कर कपाट पर ताला लगा देता हैं। लॉक डाउन के चलते श्रद्धालुओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध है। नवरात्र के दूसरे दिन गुरुवार को मंदिर परिसर में सुबह सवा छह बजे आरती के समय ही कपाट खुले। आरती में पुजारी समेत केवल पांच व्यक्ति ही मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश हुए। कोरोना वायरस के बचाव के चलते सौ साल में ऐसा पहली दफा निर्णय लिया गया है। जब नवरात्रों के दिनों मेंं मंदिर परिसर सुनसान हो। आमतौर पर नवरात्र के दौरान जंक्शन व टाउन के भद्रकाली मार्ग पर काफी चहल पहल रहती है। श्रद्धालु ऑटो से, दोपहिया, चौपहिया या फिर पैदल जाते हुए दिखाई देते थे। लेकिन इस बार पूरा मार्ग ही सुनसान पड़ा है। मुख्य मेले के दिन एक लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करते हैं और नौ दिन के मेले के दौरान अनुमानित ढाई लाख श्रद्धालु मंदिर में माथा टेकने आते हैं। इस बार भद्रकाली में मेला २५ मार्च से दो अप्रेल तक लगना था।

कोरोना वायरस के प्रभाव के चलते देवी मन्दिरों में नहीं आ रहे श्रद्धालु
भादरा. कोरोना वायरस के प्रभाव को लेकर स्थानीय कस्बे में प्राचीन सिद्धशक्ति पीठ करणी माता मन्दिर, जीणभवानी मन्न्दिर, समाध भवन व बाजार के मुख्य श्रीहनुमान मन्दिर व अन्य मन्दिरों के मुख्य द्वार नवरात्रा होने के बाद भी बन्द देखने को मिले है। नवरात्रा के चलते जिन मन्दिरों में सैंकड़ों नर-नारी प्रतिदिन धोक लगाते थे वह अपने घरों में ही पूजा-पाठ कर रहे हैं। मन्दिरों में मुख्य पुजारी अपनी सुबह-शाम की आरती व पूजन अकेले ही बैठ कर रहे हैं। वहीं पर कुछ मन्दिर परिसर में रह रहे पूजारियों के लिए एक-दो वक्त का भोजन व फल पहुंचाने का काम कर रहे हैं। कोरोना वायरस का प्रभाव गणगोर पूजा पर भी पड़ा है। जहां प्रतिवर्ष नगरपालिका की ओर से मुख्य बाजार व आबादी क्षेत्र में गणगौर की सवारी निकाली जाती थी वह इस बार नहीं निकाली जाएगी।

फतेहगढ करणी माता मंदिर के कपाट बंद
डबलीराठान. कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन ने नवरात्रों के दिनों में माता के मंदिरों से श्रद्धालुओं की भीड़ गायब कर दी है। इलाके के फतेहगढ़ गांव की थेहड़ पर बने प्रसिद्ध एतिहासिक करणी माता मंदिर के कपाट इन दिनों श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं। पुजारी रजेन्द्र शास्त्री के अनुसार नववर्ष चैत्र मास में चल रहे नवरात्रों के मौके पर मंदिर में सुबह मंगल आरती पूजा पाठ होने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस महामारी के चलते श्रद्धालुओं का आवागमन नहीं है। केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देशों की पालना की जा रही है तथा श्रद्धालुओं को घर पर रहकर मां की अराधना करने का संदेश प्रसारित किया है। यहां बता दें कि गांव फतेहगढ़ के समीप घग्गर नदी के तट पर यह पुरातन विशाल करणी माता मंदिर लगभग 150 साल पुराना है। बताया जाता है कि यहां मुगलों का शासन था, चारों ओर अशांति के कारण लोग परेशान थे। बीकोनर रियासत के महाराज गंगासिंह जी ने मुगलों पर हमला कर उन्हें यहां से भागने को मजबूर किया और इसे फतेह कर गांव का नाम फतेहगढ़ रखा। पंडित राजेंद्र शास्त्री के अनुसार करणी माता की मूर्ति स्थापना महाराज गंगा सिंह ने करवाई थी। यह पुरातन मूर्ति इस मंदिर में विराजमान है। बीकानेर राजघराने द्वारा स्थापित इस एतिहासिक मंदिर पर नवरात्रों में रोजाना सैंकड़ों श्रद्धालुओं द्वारा धोक लगायी जाती है। वहीं मंदिर मार्ग पर बड़ी संख्या में अस्थायी दुकानें सजती हैं। परिसर में अष्टमी एवं रामनवमी पर कंजक पूजन, हवन यज्ञ एवं भंडारे का आयोजन होता है। लेकिन इस वर्ष यहां कोरोना महामारी के कारण सब कुछ सूना सूना है।

सूना पड़ा ऐतिहासिक खेतरपाल मंदिर
रावतसर. लॉकडाउन के चलते धार्मिक स्थल भी पूर्ण रूप से बंद कर दिए गए हैं। कस्बा स्थित प्राचीन बाबा खेतरपाल मंदिर के कपाट भी बंद हैं।
चैत्र मास में लगने वाले नवरात्रा पर हर वर्ष पल्लू मां ब्रह्माणी के जाने वाले यात्री बाबा खेतरपाल मंदिर में मत्था टेकते हैं। इस कारण नवरात्रा में बाबा के मङ्क्षदर पर भारी भीड़ रहती है। श्रद्धालुओं की लम्बी कतारें लग जाती हैं। मगर अब कोरोना वायरस संक्रमण के चलते खेतरपाल मंदिर परिसर पूर्ण रूप से सुनसान पड़ा है। मंदिर कमेटी के सदस्यों ने बताया कि कोरोना संक्रमण के चलते इस बार बाबा खेतरपाल के आगे सात दरवाजों पर सात ताले लगे हुए हैं। बाबा को श्रद्धालु अपने घरों में ही रहकर याद करें।

नवरात्र पर भरने वाला मेला भी निरस्त, सिर्फ पुजारी कर रहे सेवा अर्चना
पल्लू. हनुमानगढ़ जिले के पल्लू कस्बे में स्थित ऐतिहासिक मां ब्रह्माणी मंदिर जो पूरे वर्ष श्रद्धालुओं से गुलजार रहा करता था और नवरात्र लगते ही मानों पूरा कस्बा मां ब्रह्माणी की भक्ति में सराबोर हो जाया करता था, नवरात्रा पर तो श्रद्धालुओं को मां के दर्शन करने के लिए लंबी कतारें लग जाती थी। बेरिकैट्स लगते, श्रद्धालुओं की सेवा के लिए भंडारे लगते, कोई पानी की सेवा देते तो कोई यात्रियों की छाया पानी के लिए व्यवस्था में जुटे रहने वाले पल्लू के नागरिक घरों में दुबके बैठे है। वहीं मां ब्रह्माणी के मेले की तीसरी आंख से निगरानी करने वाले पुलिस कर्मियों को सीसीटीवी कैमरों में सिर्फ सुनसान गलियां दिखाई दे रही हैं। ना कोई जेबकतरा मंडरा रहा है तो ना कोई आपारिधक घटनाएं हो रही है। पैदल यात्रियों से गुलजार रहने वाला मेगा हाईवे इन दिनों इक्के दुक्के वाहनों की आवाजाही तक ही सीमित रह गया है। पुलिस कर्मी समझाने में जुटे है कि घरों में रहिए और अपने घर परिवार सहित देश बचानें में योगदान दें। इसका प्रभाव पूरे कस्बे सहित पल्लू उप तहसील के सभी गांवों में देखने का मिल रहा है। स्थानीय प्रशासन भी कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव से बचने के लिए प्रयासरत है। मंदिर के पुजारियों ने बताया कि मंदिर में सुबह-शाम पुजारियों द्वारा आरती की जाती है एवं देश में चल रही इस महामारी की रोकथाम के लिए दुआएं मांगी जाती है। बाकि अन्य दर्शनार्थियों के लिए मंदिर पूरी तरह से बंद है। मंदिर के बाहर मंदिर प्रशासन ने एक नोटिस भी चस्पा कर रखा है। जिसे मंदिर बंद में सहयोग की अपील की गई है।

थेहड़ के बाद गुलजार हुआ था कस्बा
इतिहासकार बताते है कि अब जहां मां ब्रह्माणी का विशाल मंदिर है, वहां पहले किला हुआ करता था। जो किसी लड़ाई में ध्वस्त हो गया। राजा कुलर अपने चार द्वारपालों सहित किले में विराजित थे। ध्वस्त के बाद ये जगह विरान थेहड़ बन गई थी।
कई वर्षो सें विरान पड़े रहे इस थेहड़ में सन 1308 में गीगासर (बीकानेर) के निवासी भोजराज अपना घोड़ा खोजते-खोजते यहां पल्लू कोट कलूर में थक हार कर विश्राम के लिए एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे रूके थे, उस दौर में इतिहासकार बताते है कि सादुला नामक राक्षस रहा करता था जो यहां पहुंचने वाले सभी जीव-जंतुओं व मनुष्य को अपना आहार बना लेता था। ये राक्षस जब भोजराज के पास पहुंचा तो उसी समय मां ब्रह्माणी ने दर्शन देकर सादुला राक्षस को दैवीय गति प्रदान की थी। इसलिए ऐसी मान्यता है कि मां ब्रह्माणी ने खुद से पहले सादुला जी को पूजे जाने की बात कही थी जो अब भी मान्यता चली आ रही है। उसके बाद मां ब्रह्माणी ने भोजराज को वहीं पर पूजा करने तथा विरान ईलाके को सुझबूझ से सुरमयी बनाने की बात कही, उस समय भोजराज ने माता से कहा कि मां यह क्षेत्र रेगिस्तान की विरान जगह है यहां पीने के लिये पानी नहीं है, खाने को अन्न नहीं है, रहने को आश्रम नहीं है और देखने को मानस नहीं है। ऐसे में ये कैसे संभव होगा, तभी माता ने उनके पीछे पड़े पत्थर हटाने को कहा तो उसमें साफ और मीठा पानी निकला। यह कुआं वर्तमान में माताजी के कुएं के नाम से मेला मैदान में मौजूद है। कुएं से भी भक्तों की आस्था जुड़ी है। अगली सुबह यहां पर एक मूर्ति बनाकर भोजराज ने मां ब्रह्माणी की पूजा अर्चना शुरू कर दी। इसके बाद माता ने कई पर्चे दिए तो मां ब्रह्माणी की आस्था लगातार बढ़ती गई। तब से भोजराज ने वहां पर सच्ची श्रद्धा से माता की सेवा शुरू कर दी और वहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। उसके बाद माता की आस्था दूर-दूर तक फैल गई। करीब दो सौ साल पहले इस मंदिर में दो मूर्ति मां काली व सरस्वती की की प्रतिमा जमीन से निकली थी। इस कारण भी इस मंदिर की प्रसिद्धि दिनों दिन बढ़ती गई। आज पूरे राजस्थान सहित मां की प्रसिद्धि अन्य राज्यों में भी फैल चुकी है। ये मां की भक्ति ही श्रद्धालुओं में आस्था का प्रतीक है। (पसं/नसं)

वर्षो पुराने दुर्गा मंदिर के कपाट बंद
पीलीबंगा. मंदिर में घंटों के बजने की आवाज, श्रद्धालुओं की मां के दर्शनों के लिए लगी लम्बी कतार, मां दुर्गा के भजनों का दिन भर गुणगान, कथा वाचन, मां की आरती। ये सब दृश्य नवरात्रों में मां के मंदिर में देखने को मिलते थे लेकिन इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण ने ऐसा कहर ढाया कि मां के मंदिर के कपाट बंद करने पड़े। करीब पचास वर्ष पूर्व वार्ड सात में बने श्री दुर्गा मंदिर में हर वर्ष नवरात्रों पर देवी मां के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती थी। इस बार कोरोना वायरस के चलते कपाट बंद होने से नवरात्रों में श्रद्धालु घर पर ही घट स्थापना कर मां की पूजा अर्चना व संकीर्तन आदि कर रहे हैं। मंदिर के कपाट बंद होने तथा श्रद्धालुओं के मंदिर में दर्शनों के लिए नहीं जाने के चलते मंदिर परिसर में सन्नाटा सा पसरा हुआ है।
पुजारी निरंजन शर्मा ने बताया कि प्रत्येक नवरात्रों में श्रद्धालुओं की भीड़ से मंदिर में मेले का सा माहौल बना रहता है लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते मंदिर के कपाट बंद करने पड़े हैं। उन्होंने बताया कि नवरात्रों में श्रद्धालु मंदिर के बाहर मुख्यद्वार पर आकर शीश झुका रहे हैं एवं मां दुर्गा से देश व समाज की मंगल कामना व शांति को लेकर अराधना कर रहे हैं।
पुजारी ने बताया कि सरकार के लॉकडाउन के आदेश के चलते मंदिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। केवल उनके द्वारा अलसुबह मंदिर के कपाट खोलकर मां की पूजा अर्चना कर कपाट पुन: बंद कर दिए जाते हैं। शाम को करीब सात बजे कपाट खोलकर मां दुर्गा की आरती आदि कर कपाट बंद कर दिए जाते हंै। दुर्गा मंदिर के अलावा शहर के वर्षो पुराने श्री सत्यनारायण मंदिर, सालासर हनुमान मंदिर, डिग्गीवाला बाबा हनुमान मंदिर, श्रीराधाकृष्ण गौशाला मंदिर, रामदेव बाबा मंदिर आदि के कपाट भी बंद है। इन मंदिरों में भी कोरोना वायरस के चलते श्रद्धालुओं के लिए देवी देवताओं के दर्शनों को लेकर आवागमन पर रोक है। (पसं)

श्रद्धालुओं के जमघट की जगह छायी है वीरानगी
संगरिया. चैत्र नवरात्र के अवसर पर आमतौर पर यहां के माता मंदिरों में श्रद्धालुओं की दर्शन के लिए भारी संख्या में भीड़ देखने को मिलती थी। इस बार कैविड-19 के प्रभाव के चलते मंदिर परिसरों में वीराना छाया हुआ है। यहां करीब पांच दशक पूर्व स्थापित श्रीदुर्गा पंचायती मंदिर में यह स्थापना के बाद पहला अवसर है जब इस प्रकार की स्थिति देखनी पड़ रही है। इसी प्रकार डेढ दशक से अधिक प्राचीन श्रीकरणी माता मंदिर व रामबाग स्थित मां काली मंदिर की भी कमोबेश यहीं स्थिति बनी हुई है जब मंदिर में पुजारी परिवार के अलावा कोई दिखाई नहीं दे रहा है।(नसं.)
श्रीदुर्गा पंचायती मंदिर
1970 में स्थापित श्रीदुर्गा पंचायती मंदिर क्षेत्र के सबसे प्राचीन माता के मंदिर के रुप में जाना जाता है। पूर्व पार्षद दीवान चंद बंसल ने बताया कि मंदिर की स्थापना उस समय श्रद्धालू गोपीराम गोयल दलाल, हरी प्रसाद गर्ग, बाबू राम बंसल, पूनम चंद गोयल, फूसाराम अग्रवाल, लाल चंद खारीवाल, तेजभान गुप्ता, शिवदयाल गुप्ता, रामप्रताप वर्मा, पंडित दामोदर शर्मा आदि के दल द्वारा की गई। मंदिर से पूर्व यहां करीब 12-12 फीट के गहरे गढ्ढे थे जिन्हे भर्ती करवाकर जयपुर से लाकर सफेद संगमरमर की आकर्षक मां की प्रतिमा इसमें स्थापित की गई। एडवोकेट हनुमान गुप्ता ने बताया कि स्थापना के बाद आपातकाल, आतंकवाद सहित अनेक घटनाओं के समय क्षेत्र में बंद की स्थिति रही है परंतु मंदिर दर्शन में इन घटनाओं का प्रभाव कभी नहीं रहा था। ऐसा पहली बार हुआ है जब मंदिर में नवरात्र के समय इस प्रकार का सन्नाटा देखने को मिल रहा है। कोरोना के प्रभाव के चलते मां की पूजा अर्चना पूजारी श्याम लाल शर्मा द्वारा की जा रही है परंतु श्रद्धालुओं को मंदिर आने से रोक दिया गया है। मंदिर समिति के प्रधान नरेश सिंगला ने बताया कि मंदिर में तीस फीट ऊंचे गुम्बद व गुलाबी पत्थर से सजावट, धातु के बने सिंह स्थापित करने व हॉल के सौंदर्यकरण का कार्य हाल ही पूर्ण किया गया है। मंदिर में मां दुर्गा के साथ-साथ संतोषी मां, काल भैरव व भगवान शिव परिवार का मंदिर बना हुआ है। ऐसा सन्नाटा सिर्फ चंद्र व सूर्य ग्रहण के चलते लगने वाले सूतक से कपाट बंद होने के कारण ही रहा है। मंदिर स्थापना से पूर्व यहां पांच कुण्डी गायत्री यज्ञ सियाराम पंथ के शत्रुध्र दास महाराज के सानिध्य में किया गया था।
श्रीकरणी माता मंदिर
स्थानीय टीसी मोदी चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा 22 जून 2003 को स्थापित मां करणी के भव्य मंदिर में नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ देखने को मिला करती है परंतु इस वर्ष कोरोना वायरस के कारण प्रशासन के प्रतिबंध के चलते मंदिर में सन्नाटा पसरा हुआ है। पंडित नरेश शर्मा ने बताया कि मंदिर में इस अवसर पर दिन भर श्रद्धालुओं को तांता लगा रहता है परंतु इस बार ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है। श्रीकरणी माता भक्त मंडल द्वारा नियमित आयोजित होने वाला भजन संध्या कार्यक्रम भी स्थगित कर दिया गया है।(नसं.)
श्रीकाली माता मंदिर
रामबाग परिसर में स्थित मां काली का मंदिर संगरिया ही नहीं पूरे उत्तर भारत में अपनी ऊंचाई के लिए जाना जाता है व ऊंचाई के मामले में देश के शीर्ष दस मंदिरों में इसका स्थान होने का दावा किया जाता है। इसमें भी कोरोना वायरस के प्रभाव के चलते अब एकदम शांति बनी हुई है। संत शीतलदास के सानिध्य में बना यह मंदिर अपने विशालकाय घंटों, असंख्या मूर्तियों व निर्माण की अद्भूत कला के लिए अलग पहचान रखता है। मंदिर में मां काली के मंदिर के परिसर का अंदर व बाहर दोनो भाग रमणीक है व बड़ी संख्या में श्रद्धालू सामान्य दिनों में भी यहां पहुंचता करते है परंतु इस बार नवरात्र में भी ऐसा नहीं देखने को नहीं मिल रहा है।(नसं.)

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