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दफा ‘लगाने-हटाने’ में कानून की ‘एक्सीडेंटल डेथ’

locationहनुमानगढ़Published: Jan 05, 2019 12:22:27 pm

Submitted by:

adrish khan

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dhara lagane mein police ki manmarzi

दफा ‘लगाने-हटाने’ में कानून की ‘एक्सीडेंटल डेथ’

दफा ‘लगाने-हटाने’ में कानून की ‘एक्सीडेंटल डेथ’
– सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दरकिनार कर आनन-फानन में चिकित्सकों पर लगाई 304
– धारा लगाने के बाद अब मुश्किल में पुलिस अफसर
– 304 में चिकित्सकों पर नहीं कर सकेंगे चालान पेश
अदरीस खान.हनुमानगढ़. धारा लगाना और हटाना पुलिस का काम है। मगर इस दफा के खेल में खाकी कानून को कितना दफा करती है, यह किसी से छिपा नहीं है। अब एक ऐसा ताजा मामला सामने आया है जिसमें पुलिस की कार्यशैली के चलते कानून की ‘एक्सीडेंटल डेथ’ सरीखी स्थिति हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दरकिनार कर पुलिस ने रावतसर के चार चिकित्सकों पर दफा 304 लगा दी है। पुलिस अधिकारियों ने आनन-फानन और दबाव में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश भुलाकर रोगी की मौत के बाद चिकित्सकों के विरुद्ध आईपीसी की धारा 304 में मुकदमा दर्ज कर लिया। और वह भी पोस्टमार्टम से पहले। जबकि इलाज या ऑपरेशन के दौरान मरीज की मौत पर चिकित्सक के खिलाफ 302 या 304 के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। इसके लिए आईपीसी की धारा 304 ए (एक्सीडेंटल डेथ) व 34 के तहत मामला दर्ज करने का निर्देश है।
अब स्थिति यह है कि पुलिस अफसरों की हालत ‘उगलते बने न निगलते’ जैसी हो गई है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश चलते पुलिस बैकफुट पर है। उसे चिंता है कि धारा 304 में चिकित्सकों के खिलाफ चालान होगा नहीं। यदि धारा हटाने पर हंगामा मचा तो जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। उधर, परिवादी पक्ष भी पुलिस पक्षपात का आरोप लगाएगा। अगर पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की जानबूझकर अनदेखी की है तो सोचिए कि वह अन्य मामलों में भी क्या कुछ करती होगी। पुलिस को यदि गाइडलाइन की जानकारी नहीं है तो फिर यह गंभीर बात है।
क्या है मामला
रावतसर स्थित निजी अस्पताल में 29 दिसम्बर को महिला की ऑपरेशन के दौरान मौत हो गई। परिजनों ने शव अस्पताल के समक्ष रखकर धरना शुरू कर दिया। अगले दिन पुलिस ने परिवाद के आधार पर कालूराम नामक व्यक्ति सहित चार चिकित्सकों के खिलाफ धारा 304 में मामला दर्ज किया।
पहले भी हटी, अब भी तय
सितम्बर 2015 में संगरिया के निजी क्लिनिक में प्रसूता व बच्चे की मौत हो गई थी। हंगामा मचा तो आरोपों के आधार पर पुलिस ने चिकित्सक दंपती पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की अनदेखी कर आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया। बाद में पुलिस को धारा हटानी पड़ी। अब भी चिकित्सकों के खिलाफ रावतसर पुलिस को 304 हटानी पड़ेगी।
क्या है सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय बैंच ने 5 अगस्त 2005 को जैकब मैथ्यू प्रकरण में स्पष्ट निर्देश दिया था कि चिकित्सकीय पेशे से जुड़े किसी प्रकरण में यदि प्रथम दृष्टया जांच में डॉक्टर की कोई लापरवाही सामने आती है तो आईपीसी की धारा 304 ए व 34 के तहत मामला दर्ज किया जाए। ऐसी ही व्यवस्था कुसुम शर्मा व अन्य बनाम बत्तरा हॉस्पीटल एंड मेडिकल रिसर्च से संबंधित मामले में दी थी। कोर्ट के समक्ष आरोपितों को पेश करने से पहले पुलिस विशेषज्ञ चिकित्सकों के बोर्ड से जांच करवाए। जैसी लापरवाही बरतने का आरोप है तो उससे संबंधित विशेषज्ञ चिकित्सक या आरोपित चिकित्सक के समकक्ष विशेषज्ञ बोर्ड में अवश्य शामिल किया जाए। चिकित्सकीय लापरवाही संबंधी मामले में धारा 302 या 304 नहीं लगाई जा सकती। रावतसर पुलिस ने तो 304 पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पहले ही लगा दी।
ऐसी भी क्या जल्दी
ऐसे दर्जनों मामले सामने आते हैं, जब परिवादी के गंभीर आरोपों के बावजूद पुलिस उस तरह की धाराएं लगाकर मामले दर्ज नहीं करती। वैसे भी धाराएं जोडऩा-घटाना पुलिस के लिए बड़ा ‘कार्यक्रम’ है। जांच-पड़ताल के चक्कर में घुमाकर पुलिस धाराओं के कैसे-कैसे खेल रचती है, किसी से छिपा नहीं है।
तो क्या, जांच में देखेंगे
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की अवहेलना को लेकर रावतसर थाना प्रभारी अरविन्द बैरड़ ने कहा कि तो क्या हुआ, परिवाद के आधार पर तो मामला दर्ज करना पड़ता है। आरोपों के आधार पर ही 304 लगाई है। पुलिस तो जैसे आरोप होंगे, उन धाराओं में मामला दर्ज करेगी। जांच में जो आएगा, उसके आधार पर चालान पेश किया जाएगा।
गलत कार्रवाई
जब सर्वोच्च न्यायालय की गाइडलाइन है कि इलाज के दौरान मौत के मामले में चिकित्सक के खिलाफ धारा 302 में मामला दर्ज नहीं किया जा सकता तो ऐसा करना गलत है। इससे स्थिति बिगडऩे की आशंका रहती है। संगठन इसका विरोध करता है। – डॉ. ओपी बेनीवाल, अध्यक्ष, आईएमए।
पत्रिका एक्सपर्ट
पुलिस अधिकारी रहे अपडेट
न्यायालय के आदेश के विपरीत पंजीकृत चिकित्सकों पर धारा 302 या 304 लगाना गलत है। पुलिस इन धाराओं में चालान पेश ही नहीं कर सकती मतलब धारा हटानी पड़ेगी। यह स्थिति पुलिस व कानून के इकबाल के लिए सही नहीं है। जब धारा हटेगी तो परिवादी पक्ष उस पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप भी लगा सकता है। इसलिए जरूरी है कि पुलिस अधिकारी कानूनी बदलाव से पूर्णत: अपडेट रहे। केवल दबाव में आकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना नहीं करे। – अनुज डोडा, वरिष्ठ अधिवक्ता।
धारा में अंतर क्या
धारा 302 (इरादतन हत्या): इसमें अधिकतम उम्र कैद और मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है। जुर्माना न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है।
धारा 304 (गैर इरादतन हत्या): इसमें दस साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है। जुर्माना न्यायाधीश के विवेक पर है।
धारा 304 ए (दुर्घटना मौत) : इसमें अधिकतम दो साल के कारावास का प्रावधान है। जुर्माना न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर है।
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