बेटियों के सरकारी कॉलेज के बिना बेटी पढ़ाओ का नारा मजाक सा
हनुमानगढ़Published: Feb 14, 2019 11:31:00 am
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बेटियों के सरकारी कॉलेज के बिना बेटी पढ़ाओ का नारा मजाक सा
बेटियों के सरकारी कॉलेज के बिना बेटी पढ़ाओ का नारा मजाक सा
– सूचना का अधिकार जागृति मंच ने कन्या कॉलेज की मांग को लेकर सौंपा ज्ञापन
हनुमानगढ़. जिले में सरकारी कन्या कॉलेज खोलने की मांग मुखर होती जा रही है। पत्रिका के अभियान ‘बेटियां मांग रही शिक्षा का हक’ में शामिल होते हुए मंगलवार को सूचना का अधिकार जागृति मंच ने शीघ्र कन्या कॉलेज को मंजूरी देने की मांग को लेकर कलक्टर को ज्ञापन सौंपा। मंच के जिलाध्यक्ष प्रवीण मेहन के नेतृत्व में मुख्यमंत्री के नाम सौंपे गए ज्ञापन में जिले में सरकारी कन्या कॉलेज नहीं होने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया गया। मंच के प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि बेटी पढ़ाओ का नारा तभी सार्थक है जब सरकारी स्तर पर उनकी शिक्षा के पुख्ता प्रबंध हों। सरकार यदि केवल नारें लगाती रहे और बालिका शिक्षा को लेकर पूरे संसाधन मुहैया नहीं करवाए तो बेटी पढ़ाओ का नारा मजाक सा लगेगा। यह मजाक हनुमानगढ़ की बेटियों व उनके अभिभावकों से पिछले 24 बरस से किया जा रहा है। पूरे प्रदेश में हनुमानगढ़ ही ऐसा दूसरा जिला होना जहां कन्याओं के लिए सरकारी कॉलेज नहीं है, बहुत चिंताजनक है। साथ ही जिले की जनता व जिम्मेदार लोगों के लिए भी यह आत्ममंथन का विषय है। सरकार इस ओर शीघ्र ध्यान देकर बेटियों को इस साल राज्य बजट में सरकारी कॉलेज की सौगात दे। प्रतिनिधि मंडल में मंच के उपाध्यक्ष अशोक नारंग, रमेश दरगन, रतनेन्द्र भारद्वाज, गुरसेवक सिंह, हेमराज शर्मा, गिरिश जोशी आदि शामिल रहे।
ऐसे हैं शिक्षा के हालात
गौरतलब है कि प्रदेश के 33 जिलों में से 31 में 47 सरकारी कन्या महाविद्यालय हैं। केवल हनुमानगढ़ व प्रतापगढ़ में कन्या कॉलेज नहीं है। हनुमानगढ़ को जिला बने 24 बरस हो चुके हैं। इसके बावजूद एक भी कन्या कॉलेज नहीं है। आस-पड़ोस के हर जिले में दो-दो और कहीं तो तीन-तीन कन्या महाविद्यालय संचालित हैं। प्रदेश में सबसे कम सरकारी कॉलेज वाले जिलों में भी हनुमानगढ़ शुमार होता है। जिले में महज तीन सरकारी कॉलेज हैं। बेटियों के लिए अलग से एक भी नहीं है। हालांकि वर्ष 2013 में तत्कालीन सरकार ने मीरा कन्या कॉलेज का अधिग्रहण कर सरकारीकरण कर दिया था। लेकिन 13 माह बाद नई सरकार ने इसे डिनोटिफाई करते हुए पुन: निजी घोषित कर दिया। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जहां सरकार का फैसला गलत साबित हुआ।