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नहर के लिए अर्जित की 90 गांवों की 400 एकड़ जमीन अभी भी किसानों के नाम पर दर्ज

locationहरदाPublished: Sep 17, 2020 11:40:18 pm

Submitted by:

gurudatt rajvaidya

कागजों में किसान का रकबा, लेकिन जमीन पर बन गई नहरजल संसाधन विभाग के नाम होना है नामंातरण

नहर के लिए अर्जित की 90 गांवों की 400 एकड़ जमीन अभी भी किसानों के नाम पर दर्ज

नहर के लिए अर्जित की 90 गांवों की 400 एकड़ जमीन अभी भी किसानों के नाम पर दर्ज

राजेश मेहता/खिरकिया. किसानों की खेत सिंचिंत करने के लिए शासन द्वारा जल संसाधन विभाग के माध्यम से विकासखंड में नहरों का निर्माण कराया गया है। इसके लिए किसानों की सैकड़ों एकड़ भूमि को अधिग्रहित की गई है। किसानों की भूमि का भूअर्जन हुए वर्षों बीत गए है। नहरों के माध्यम से सिंचाई कार्य भी प्रारंभ हो गया है, लेकिन अभी तक भू अर्जन की गई भूमि का रकबा किसानों के रकबे से अलग नहीं हो सका है। भूमि का नामांतरण जल संसाधन विभाग को नहीं किया गया। यह एक गंभीर लापरवाही एवं विभागीय अधिकारियों की उदासीनता है। जानकारी के अनुसार करीब 8 से 10 वर्ष पहले विकासखंड में माचक नहर एवं खिरकिया नहर के माध्यम से नहर का विस्तार किया गया। इसके लिए किसानों की सैकड़ों एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था। किसानों को इसका मुआवजा भी दिया जा चुका है। बावजूद इसके अभी तक किसानों के खातों से नहर के लिए अधिग्रहित की गई भूमि को कम नहीं किया है। जो कि बड़ी विसंगति है। ऐसी स्थिति में यदि किसान अपनी भूमि बेचना चाहते है, तो उनकी रिकार्ड में तो भूमि ज्यादा है, लेकिन सीमांकन कराने पर कम निकलती है। इससे विवाद की स्थिति बनती है, वहीं रिकार्ड व नक्शा दुरूस्त कराने के लिए कार्यालयों के चक्कर लगाना पड़ता है।
कागज में किसान उगा रहे फसल, जमीन पर बह रही नहर-
किसानों के भू अधिकार पत्र, खसरा रकबा में अभी भी उतनी ही भूमि दर्ज है, जितनी की भूमि अधिग्रहण के पहले हुआ करती थी, जबकि वास्तविक रूप से उसमें से अधिग्रहित की गई भूमि पर नहर का निर्माण किया जा चुका है। ऐसे में कागजों में दर्ज भूमि के रकबे के अनुसार किसान उस पर फसल का उगा रहे है, जबकि जमीन पर उसमें से कुछ रकबे पर नहर बह रही है। जमीनी स्तर पर नहर बनने के बाद किसानों के रकबे में से उनकी भूमि का हिस्सा कम हो गया है। वह भूमि जल संसाधन विभाग के अधीन होकर उनकी संपत्ति हो गई है, लेकिन कागजों में यह भूमि अभी भी किसान के नाम पर ही दर्ज है। राजस्व विभाग के माध्यम से भूमि के रिकार्ड को दुरूस्त किया जाना चाहिए। इसके लिए जल संसाधन विभाग द्वारा राजस्व विभाग को अभिलेख भी उपलब्ध कराए जा चुके है, लेकिन कोई प्रक्रिया नहीं की गई।
राजस्व विभाग को अवगत कराने के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई-
यह मामला एक दो गांव की कुछ एकड़ जमीन का नहीं है, बल्कि विकासखंड के करीब 90 गांवों की 400 एकड़ जमीन का है। विकासखंड में माचक एवं खिरकिया नहर करीब 90 गांवों में है। इसमें सैकड़ों किसानों की भूमि का अग्रिहण हुआ है। नहर के निर्माण में किसी की 10 तो किसी की 20 डिसमिल और कहीं आधा आधा एकड़ तक जमीन का अधिग्रहण किया गया है। इस भूमि का भूअर्जन व अवार्ड भी किया जा चुका है। यह भूमि जल संसाधन विभाग के आधिपत्य में तो आ गई है, लेकिन अभी तक कागजी तौर पर विभाग के नाम पर दर्ज नहीं हुई है। जल संसाधन विभाग द्वारा इसको लेकर पूर्व में राजस्व विभाग के अधिकारियों को अवगत भी कराया गया, लेकिन इस पर कार्रवाई नहीं हो सकी।
पुराने रकबों पर मिल रहा केसीसी का लाभ
किसानों द्वारा अपनी भूमि पर किसान के्रडिट कार्ड सुविधा का लाभ लिया जा रहा है। इनमें से कई केसीसी धारक किसान ऐसे है, जिनकी पुराने रकबे के आधार पर ही केसीसी बने है। नहर बनने के बाद किसानों का रकबा तो कम हो गया है, लेकिन केसीसी खातो पर भी भू अधिकार पत्र में दर्ज कृषि भूमि का ही लाभ मिल रहा है। उसी के आधार पर किसानों को कृषि कार्य के लिए ऋण मिल रहा है। इसमें किसानों के नाम पर जो भूमि नहीं रही उस पर भी उन्हें लाभ मिल रहा है। किसान भी विभाग की विसंगति का लाभ उठा रहे हैं। हालांकि किसानों को भूमि का रकबा हटाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है, लकिन विभाग इसके लिए पहल ही नहीं कर रहा है। किसान चाहते भी है कि उनकी भूमि समायोजित हो जाए, लेकिन विभागीय प्रक्रियाओं व कचहरी के चक्कर काटने से बचते है। ऐसे में जो जैसा चल रहा है, किसान उसमें खुश है।
इनका कहना है-
राजस्व विभाग को पूर्व में अभिलेख उपलब्ध कराए जा चुके है। यह भूमि किसानों के खातों से कम कर जल संसाधन विभाग के नाम पर दर्ज की जानी चाहिए। राजस्व विभाग को भूमि का नामांतरण किया जाना है।
बीएस चौहान, एसडीओ, जल संसाधन विभाग, खिरकिया
ऑनलाइन व ऑफलाइन प्रक्रिया के चक्कर में कुछ स्थानों पर अंतर आया है। इसका निराकरण करा दिया जाएगा।
कुलदीपसिंह, नायब तहसीलदार, खिरकिया
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