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हरदा

पौने तीन करोड़ की गड़बड़ी का प्रकरण गति पकड़ेगा, नौ महीने बाद सुनवाई कल

जनवरी 2015 में जिला सहकारी बैंक के खजाने से रुपए गायब होने का मामला, विशेष
सत्र न्यायालय में तत्कालीन महाप्रबंधक के खिलाफ भी होगी सुनवाई

हरदाJun 21, 2017 / 10:56 am

gurudatt rajvaidya

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हरदा। जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की मुख्य शाखा के खजाने में ढाई साल पहले करीब पौने तीन करोड़ रुपए कम मिलने के मामले की सुनवाई 9 महीने बाद फिर से गति पकड़ेगी। विशेष सत्र न्यायालय में गुरुवार को इस प्रकरण की सुनवाई होगी। इस बीच सुनवाई की तारीख थीं, लेकिन बैंक की ओर अपील सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन होने से कार्रवाई बंद रही। सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन महाप्रबंधक व प्रकरण के आरोपी आरके दुबे को हाईकोर्ट से मिली राहत संबंधी आदेश निरस्त करने के बाद आगे की सुनवाई का रास्ता साफ हुआ।
ज्ञात हो कि 22 जनवरी 2015 को तत्कालीन अपर कलेक्टर गणेश शंकर मिश्रा ने बैंक पहुंचकर जांच की थी तो रिकार्ड के अनुसार तिजोरी में 2 करोड़ 77 लाख 650 रुपए कम मिले थे। उन्होंने तिजोरी सील कर जांच आगे बढ़ाई और तत्कालीन महाप्रबंधक दुबे को तत्कालीन मैनेजर सुदर्शन जोशी व अकाउंटेंट भावना काले के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के निर्देश दिए थे। पुलिस ने जांच के आधार पर तत्कालीन महाप्रबंधक दुबे के अलावा नोडल अधिकारी एमके अहलाद व सहायक लेखापाल हेमंत व्यास को भी आरोपी बनाया था। काले को छोडक़र सभी आरोपियों को जेल भी जाना पड़ा था। सहकारी बैंक के वकील प्रकाश टांक ने बताया कि विशेष सत्र न्यायालय में प्रकरण की सुनवाई शुरू होने के बाद तत्कालीन महाप्रबंधक आरके दुबे ने हाईकोर्ट की शरण लेकर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण चलाने से राहत मांगी थी। हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था। दुबे की ओर से 9 सितंबर 2016 को विशेष सत्र न्यायालय में आवेदन पेश कर इस संबंध में जानकारी दी गई। इसी दिन शासन की ओर से कोर्ट को बताया गया कि बैंक ने दुबे के संबंध में हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। इसके बाद बीते साल 8 नवंबर व 28 दिसंबर के बाद इस साल 3 फरवरी व 11 अप्रैल को प्रकरण सुनवाई के लिए रखा गया, लेकिन उच्चतम न्यायालय में अपील का निराकरण न होने से कार्रवाई आगे न बढ़ सकी। अधिवक्ता टांक ने बताया कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने बैंक की अपील का निराकरण करते हाईकोर्ट द्वारा दुबे को दी गई राहत संबंधी आदेश निरस्त किया और उन्हें ट्रायल कोर्ट में ही अपना पक्ष रखने को कहा। इस आदेश के बाद उन्होंने २९ मई को कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट का आदेश पेश कर बैंक की ओर से प्रकरण की अर्जेंट हियरिंग की मांग रखी गई। विशेष सत्र न्यायाधीश आरके वर्मा के कोर्र्ट में मामले की अगली सुनवाई 22 जून को है। सभी आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 406, 408, 409, 419, 420, 421, 467, 120 (बी), 489 व 119 के अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) डी व 13 (2) के तहत सुनवाई होगी।
जब्त राशि में निकले थे नकली नोट
मामला सामने आने के बाद सहकारी बैंक के साथ ही राजनीतिक हल्कों में हडक़ंप मच गया था। आमजन यह जानने को इच्छुक रहे कि इतनी बड़ी रकम आखिर किसे दी गई होगी। इसी बीच तत्कालीन प्रबंधक जोशी एक कार में 2 करोड़ 76 लाख 74 हजार 500 रुपए लेकर थाने पहुंचे थे। पुलिस ने यह राशि जब्त की थी। गिनती के दौरान सामने आया था कि जब्त राशि में हजारों रुपए के नकली नोट भी निकले थे। पुलिस ने इन्हें आरबीआई को भेजा था। अधिवक्ता टांक के अनुसार पुलिस जांच में इस बात का उल्लेख है।
दुबे को दोबारा निलंबित कर चुका है संचालक मंडल
खबर है कि हाईकोर्ट से राहत मिलने के बाद सहकारी बैंक के संचालक मंडल ने तत्कालीन महाप्रबंधक दुबे का निलंबन वापस ले लिया था। हालांकि उन्हें बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। इस बीच सुप्रीम कोर्ट का आदेश उनके खिलाफ आया तो संचालक मंडल ने 14 जून 2017 को उन्हें दोबारा निलंबित करने का निर्णय लिया।
ब्याज वसूली की कार्रवाई ठंडे बस्ते में डाली
बैंक में पौने तीन करोड़ रुपए की गड़बड़ी संबंधी मामला सामने आने के बाद अप्रैक्स बैंक के तत्कालीन विशिष्ट अधिकारी समूह श्रेणी 1 पीके परिहार व संयुक्त आयुक्त सहकारी संस्थाएं बीएस बास्केल ने जांच की थी। 11 फरवरी 2015 को दिए जांच प्रतिवेदन में अधिकारियों ने लिखा था कि वित्तीय क्षति का निर्धारण करने के लिए प्रति दिवस सीमा से अधिक रखी नकदी पर पीडीएस व्यवसाय साख पर प्रभावशील ब्याज दर 13.5 प्रतिशत की दर से ब्याज हानि का आंकलन किया गया है। इसके अनुसार बैंक को 17 लाख 72 हजार 798.47 रुपए की ब्याज हानि हुई है। अत: दोषियों के विरुद्ध ब्याज हानि की प्रतिपूर्ति के लिए भी कार्रवाई की जाना चाहिए। जांच कमेटी के इस प्रतिवेदन को बैंक प्रबंधन ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के आदेश हो चुके हैं। हालांकि बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी आरबीएस ठाकुर ने इससे इंकार किया। उनके मुताबिक यह मामला स्टाफ कमेटी में विचाराधीन है। ढाई साल बाद भी इस पर कार्रवाई न होने के सवाल पर ठाकुर ने कहा कि वे कार्यालय से बाहर हैं। लिहाजा बगैर फाइल देखे कुछ नहीं कह सकते।

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