बीते 23 साल से कर रहे सेवादारी
बीते 23 साल से सेवादारी कर रहे समाजसेवी नारायणदास मूंदड़ा ताउम्र प्रिटिंग प्रेस व्यवसाय से जुड़े रहे। इसी दौरान वे महर्षि अरविंदो सोसायटी पुडुचेरी व कुंवरबाई ट्रस्ट से जुड़े और सेवा गतिविधियों में शामिल होते चले गए। बताया जाता है कि खुद की उम्र ८० वर्ष होने पर भी सेवा का उनका यह सिलसिला जारी है। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर वे सुबह जिला अस्पताल पहुंचते हैं। वहां पहले से राह ताक रहे लोग झट उनके पास इकट्ठा हो जाते हैं। इसके बाद मूंदड़ा उन्हें फल, ककड़ी, हरा मल्हम सहित अन्य आवश्यक दवाएं बांटते हैं। हर वार्ड के सामने पहुंचकर वे इसकी आवाज भी लगाते हैं, ताकि कोई जरुरतमंद सामान लेने से छूटे नहीं।
बीते 23 साल से सेवादारी कर रहे समाजसेवी नारायणदास मूंदड़ा ताउम्र प्रिटिंग प्रेस व्यवसाय से जुड़े रहे। इसी दौरान वे महर्षि अरविंदो सोसायटी पुडुचेरी व कुंवरबाई ट्रस्ट से जुड़े और सेवा गतिविधियों में शामिल होते चले गए। बताया जाता है कि खुद की उम्र ८० वर्ष होने पर भी सेवा का उनका यह सिलसिला जारी है। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर वे सुबह जिला अस्पताल पहुंचते हैं। वहां पहले से राह ताक रहे लोग झट उनके पास इकट्ठा हो जाते हैं। इसके बाद मूंदड़ा उन्हें फल, ककड़ी, हरा मल्हम सहित अन्य आवश्यक दवाएं बांटते हैं। हर वार्ड के सामने पहुंचकर वे इसकी आवाज भी लगाते हैं, ताकि कोई जरुरतमंद सामान लेने से छूटे नहीं।
बच्चों को बांटते है पुस्तक व कॉपियां
मंूदड़ा नियमित अपने घर से जरुरतमंदों को रोटियां और अचार बांटते हैं। उन्हें एक युवा समाजसेवी रोज 50 रोटी उपलब्ध कराते हैं। श्री विवेकानंद शिक्षण समिति के अध्यक्ष का पदभार संभालने वाले मंूदड़ा हर साल बच्चों को जरूरी पुस्तक और कॉपियां भी नि:शुल्क बांटते हैं।
मंूदड़ा नियमित अपने घर से जरुरतमंदों को रोटियां और अचार बांटते हैं। उन्हें एक युवा समाजसेवी रोज 50 रोटी उपलब्ध कराते हैं। श्री विवेकानंद शिक्षण समिति के अध्यक्ष का पदभार संभालने वाले मंूदड़ा हर साल बच्चों को जरूरी पुस्तक और कॉपियां भी नि:शुल्क बांटते हैं।
भाव प्रधान होना चाहिए सेवा
खुद के न रहने पर इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी के आगे आने की तलाश में रहने वाले मूंदड़ा कहते हैं कि सेवा हमेशा भाव प्रधान होना चाहिए। दिखावे की सेवा के कोई मायने नहीं। उनके मुताबिक जो सेवा के लिए संकल्पित रहता है उसके पास धन की कमी भी नहीं आती। यह भ्रम है कि पैसे नहीं होंगे तो सेवादारी के कार्य प्रभावित रहेंगे।
खुद के न रहने पर इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी के आगे आने की तलाश में रहने वाले मूंदड़ा कहते हैं कि सेवा हमेशा भाव प्रधान होना चाहिए। दिखावे की सेवा के कोई मायने नहीं। उनके मुताबिक जो सेवा के लिए संकल्पित रहता है उसके पास धन की कमी भी नहीं आती। यह भ्रम है कि पैसे नहीं होंगे तो सेवादारी के कार्य प्रभावित रहेंगे।