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श्री जी की प्रतिमाओं का हुआ अभिषेक

locationहरदाPublished: Sep 16, 2018 11:55:47 am

Submitted by:

sanjeev dubey

पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन मार्दव धर्म का किया पालन

Program of Digambar Jain society

श्री जी की प्रतिमाओं का हुआ अभिषेक

खिरकिया. दिगम्बर जैन समाज के पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन मार्दव धर्म का पालन किया गया। मान, अभिमान और घमंड रहित जीवन को मार्दव कहते हैं। शनिवार को समाज के मंदिर में श्री जी की प्रतिमाओं का अभिषेक हुआ। इस दौरान श्रीजी की प्रतिमा पर शांतिधारा करने का लाभ अजय जैन तथा एससी जैन को, आरती करने का लाभ कैलाशचंद्र जैन तथा रमेशकुमार जैन को प्राप्त हुआ। अतिथि सत्कार का लाभ पूनमचंद जैन को मिला। समाज के अंकित जैन ने बताया कि शाम को मंदिर में सामायिक पाठ, प्रतिक्रमण, आरती के पश्चात हुए व्यख्यान में पंडित धर्मेश शास्त्री ने बताया कि पर्यूषण पर्व का दूसरा दिन मनुष्य को अपने जीवन से मान, अभिमान तथा घमंड को समाप्त करने की शिक्षा देता है। क्रोध तथा मान आदि के अभाव में ही मनुष्य अनंत शक्ति संपन्न अपनी आत्मा के यथार्थ स्वरूप से परिचित हो सकता है।अभिमान या घमंड भयंकर विष के समान है। जिसके कारण मनुष्य को निकृष्ट अवस्था प्राप्त होती है। जबकि विनम्रता अमृत के समान होती है, विनम्र व्यक्ति ही जीवन में सुखी रहता है। मृदुता का भाव मार्दव धर्म है। मृदुता का प्रबल शत्रु मान कशाय है। मान कशाय के कारण आत्मस्वभाव में विद्यमान मृदुता, कोमलता एवं विनम्रता का अभाव हो जाता है, जिससे मानव की वाणी, व्यवहार और चाल चलन में एक अकड़ उत्पन्न हो जाती है, वह अपने आपको सबसे बड़ा समझने लगता है। अन्य को तुच्छ समझता है। मनुष्य की यही अकड़ उसका पतन करती है। मान को अहंकार ,घमंड मद या अभिमान भी कहते है। उन्होंने बताया कि ज्ञान, रूप, धन, तप, बल, ऋद्धि, कुल जाति आदि 8 प्रकार के मद होते है। इस दौरान समाज के लोग मौजूद थे।
पयुर्षण पर्व में सेवाएं देने वाले स्वाध्यायियों का किया बहुमान
खिरकिया. जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ के पयुर्षण पर्व की समाप्ति पर बहुमान कार्यक्रम का आयोजन जैन मांगलिक भवन में किया गया। पर्व के दौरान सेवाएं देने वाले विभिन्न शहरों से आए स्वाध्यायी समाजजनों का सम्मान किया गया। जिसमें इंदौर के स्वाध्यायी लवीश गुरू का बहुमान समाज के संरक्षक नगीनचंद भंडारी, हरीष नागड़ा, अमरचंद मेहता, अमोलकचंद चोपड़ा, रमणलाल चोपड़ा, मंत्री अशोक भंडारी, कोषाध्यक्ष निर्मल विनायक द्वारा किया गया। चित्तौड से आई स्वाध्यायी सुमित्रा मेहता, सरला पोखरना, चंदा सुराना, पुष्पा पोखरना का बहुमान समाज की शांतादेवी चौरडिय़ा, सरला बनवट, रश्मि श्रीश्रीमाल, प्रभा शाह, विमलादेवी रैदासनी, संतोषदेवी मुणोत, उज्जवला बाफना, पुष्पा कोचर द्वारा संघ की ओर से अभिनंदन किया। इस दौरान बताया कि स्वाध्यायी का मतलब स्वयं का अध्ययन करना होता है। जिन स्थानों पर जैन संतों सतियों का चातुर्मास नहीं मिल पाता है, उन स्थानों पर स्वाध्यायी पहुंचकर 8 दिन धर्म, ध्यान, प्रवचन, स्वध्याय, प्रतिक्रमण सहित अन्य अनुष्ठानों से धर्म का बोध कराते है। इस दौरान महावीर महिला मंडल एवं समता महिला मंडल द्वारा भजनों की प्रस्तुती दी गई। संघ की ओर से कोषाध्यक्ष निर्मल विनायक ने आभार माना। धर्मदास गण परिषद की ओर से स्वाध्यायी बनकर चारूवा गए श्रावक अनिल मुणोत, पंकज खिवसरा का श्रीसंघ खिरकिया द्वारा साधुवाद दिया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन मौजूद थें। कार्यक्रम का संचालन आशीष जैन ने किया।
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