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रेलवे टै्रक पर साढ़े तीन साल में 74 शव मिले, 15 की शिनाख्त ही नहीं हो सकी

locationहरदाPublished: Sep 17, 2018 12:35:08 pm

Submitted by:

rakesh malviya

– अधिकतर मामले में ट्रेन में भीड़ की वजह से गिरने के कारण हो रहे हादसे

Railways found 74 bodies in three and a half years

रेलवे टै्रक पर साढ़े तीन साल में 74 शव मिले, 15 की शिनाख्त ही नहीं हो सकी

हरदा. इटारसी-खंडवा रेलखंड के बानापुरा व भिरंगी के बीच करीब 6 0 किमी के दायरे में बीते साढ़े 3 साल में 74 शव मिले। टे्रन से टकराकर या कटकर हुई इन मौतों के अधिकतर मामले गिरने से मौत के बताए जाते हैं। बाकी आत्महत्या या दुर्घटना के हैं। खास बात यह है कि इस अवधि में 15 शवों की पहचान ही नहीं हो सकी। जीआरपी ने छह महीने की कार्रवाई कर इनमें से ज्यादातर की फाइल बंद कर दी है।
ट्रेनों के जनरल कोचों में बढ़ती भीड़ का खामियाजा लंबी दूरी की यात्रा करने वाले यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। बिहार और उप्र की ओर जाने तथा वहां से आने वाली ट्रेनों में भीड़ का दबाव इतना अधिक रहता है कि यात्री गेट के पायदान पर लटकने तक को मजबूर रहते हैं। इस दौरान नींद का झोका आने या अन्य कारण से संतुलन बिगडऩे की वजह से वे चलती ट्रेन से गिर जाते हैं। जीआरपी की स्थानीय चौकी के अधीन आने वाले करीब 6 0 किमी के दायरे में वर्ष 2015 से अब तक रेलवे ट्रैक पर 74 शव मिले। जीआरपी स्टाफ के मुताबिक अधिकतर दुर्घटना चलती ट्रेन से गिरने के कारण होती है। कई यात्रियों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, लेकिन गंभीर रूप से घायल होने के कारण उनकी जान नहीं बच पाती। चौकी क्षेत्र के ऐसे 15 प्रकरण रहे जिनमें शव की पहचान नहीं हो सकी। फोटो, हुलिया आदि का प्रचार-प्रसार करने के बावजूद यह स्थिति बनने के बाद केस डायरी बंद कर दी जाती है।
अवैध वेंडर भी बढ़ाते हैं परेशानी
ट्रेन के जनरल कोच में भीड़ होने के बावजूद अवैध वेंडर इनमें घुसने से नहीं चूकते। इस दौरान वे हठीला रवैया अपनाते हुए सामान बेचते हैं। यात्रियों को धक्का देते हुए आगे बढऩा, और कुछ कहने पर विवाद करना उनकी आदत में शुमार हो चुका है। इस दौरान गेट पर खड़े यात्रियों की जान पर खतरा बना रहता है। जरा सी धक्कामुक्की से उनके गिरने का अंदेशा रहता है। सुरक्षा एजेंसियां इन पर नकेल कसने का दावा जरूर करती हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। ट्रेनों में अवैध वेंडर्स बेरोकटोक सामान बेच रहे हैं।
वर्षवार इतनी हुई मौत
वर्ष मौत शिनाख्त
२०१५ २७ २३
२०१६ २० १६
२०१७ २१ १५
२०१८ ६ ५

यात्रियों को ढूंढे से नहीं मिलती जीआरपी चौकी, रिपोर्ट लिखाने भटकना पड़ता है
रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर तीन के खंडवा छोर की ओर सालों से एक क्वार्टर में संचालित हो रही जीआरपी चौकी यात्रियों को ढंूढे से नहीं मिलती। यहीं आठ लोगों के स्टाफ का बैठना-सोना भी है। यात्री यदि यहां तक पहुंचे भी तो यह सोचते हुए उल्टे पैर लौट आए कि किसी घर में पहुंच गया। अप टै्रक की लूप लाइन पर यदि मालगाड़ी खड़ी हो तो चौकी तक पहुंचना टेढ़ी खीर रहता है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग और महिलाओं का चौकी तक पहुंचना नामुमकिन रहता है। सालभर पहले जीआरपी को प्लेटफार्म नंबर एक पर आरपीएफ थाने के पास एक कक्ष दिया गया, लेकिन कमरा अक्सर बंद रहता है। यानि टे्रन से उतरने वाला यात्री अगर अगर किसी घटना की रिपोर्ट लिखाना चाहे तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चौकी पर लगा बीएसएनएल का लैंडलाइन फोन भी महीनों से बंद पड़ा है। स्टाफ को सरकारी मोबाइल सिम मिलने से उनके पास इसकी उपयोगिता नहीं बची। यानि यात्री अगर लैंडलाइन पर कॉल करें तो रिसीव नहीं होगा।
दस स्टेशन की यात्री सुरक्षा का जिम्मा आठ लोगों पर
करीब 6 0 किमी के कार्यक्षेत्र वाली चौकी में एक एएसआई तैनात है। इनके पास ही चौकी का प्रभार है। इसके अलावा एक प्रधान आरक्षक और छह आरक्षक यहां पदस्थ हैं। सिवनी-बानापुरा से भिरंगी तक के दस स्टेशन पर यात्री सुरक्षा का जिम्मा इन्हीं के जिम्मे है। बल ज्यादातर समय हरदा में ही रहता है। अन्य स्टेशनों पर अपराध घटित होने पर ही पहुंचता है।
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