अवैध वेंडर भी बढ़ाते हैं परेशानी
ट्रेन के जनरल कोच में भीड़ होने के बावजूद अवैध वेंडर इनमें घुसने से नहीं चूकते। इस दौरान वे हठीला रवैया अपनाते हुए सामान बेचते हैं। यात्रियों को धक्का देते हुए आगे बढऩा, और कुछ कहने पर विवाद करना उनकी आदत में शुमार हो चुका है। इस दौरान गेट पर खड़े यात्रियों की जान पर खतरा बना रहता है। जरा सी धक्कामुक्की से उनके गिरने का अंदेशा रहता है। सुरक्षा एजेंसियां इन पर नकेल कसने का दावा जरूर करती हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। ट्रेनों में अवैध वेंडर्स बेरोकटोक सामान बेच रहे हैं।
ट्रेन के जनरल कोच में भीड़ होने के बावजूद अवैध वेंडर इनमें घुसने से नहीं चूकते। इस दौरान वे हठीला रवैया अपनाते हुए सामान बेचते हैं। यात्रियों को धक्का देते हुए आगे बढऩा, और कुछ कहने पर विवाद करना उनकी आदत में शुमार हो चुका है। इस दौरान गेट पर खड़े यात्रियों की जान पर खतरा बना रहता है। जरा सी धक्कामुक्की से उनके गिरने का अंदेशा रहता है। सुरक्षा एजेंसियां इन पर नकेल कसने का दावा जरूर करती हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। ट्रेनों में अवैध वेंडर्स बेरोकटोक सामान बेच रहे हैं।
वर्षवार इतनी हुई मौत
वर्ष मौत शिनाख्त
२०१५ २७ २३
२०१६ २० १६
२०१७ २१ १५
२०१८ ६ ५ यात्रियों को ढूंढे से नहीं मिलती जीआरपी चौकी, रिपोर्ट लिखाने भटकना पड़ता है
रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर तीन के खंडवा छोर की ओर सालों से एक क्वार्टर में संचालित हो रही जीआरपी चौकी यात्रियों को ढंूढे से नहीं मिलती। यहीं आठ लोगों के स्टाफ का बैठना-सोना भी है। यात्री यदि यहां तक पहुंचे भी तो यह सोचते हुए उल्टे पैर लौट आए कि किसी घर में पहुंच गया। अप टै्रक की लूप लाइन पर यदि मालगाड़ी खड़ी हो तो चौकी तक पहुंचना टेढ़ी खीर रहता है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग और महिलाओं का चौकी तक पहुंचना नामुमकिन रहता है। सालभर पहले जीआरपी को प्लेटफार्म नंबर एक पर आरपीएफ थाने के पास एक कक्ष दिया गया, लेकिन कमरा अक्सर बंद रहता है। यानि टे्रन से उतरने वाला यात्री अगर अगर किसी घटना की रिपोर्ट लिखाना चाहे तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चौकी पर लगा बीएसएनएल का लैंडलाइन फोन भी महीनों से बंद पड़ा है। स्टाफ को सरकारी मोबाइल सिम मिलने से उनके पास इसकी उपयोगिता नहीं बची। यानि यात्री अगर लैंडलाइन पर कॉल करें तो रिसीव नहीं होगा।
वर्ष मौत शिनाख्त
२०१५ २७ २३
२०१६ २० १६
२०१७ २१ १५
२०१८ ६ ५ यात्रियों को ढूंढे से नहीं मिलती जीआरपी चौकी, रिपोर्ट लिखाने भटकना पड़ता है
रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर तीन के खंडवा छोर की ओर सालों से एक क्वार्टर में संचालित हो रही जीआरपी चौकी यात्रियों को ढंूढे से नहीं मिलती। यहीं आठ लोगों के स्टाफ का बैठना-सोना भी है। यात्री यदि यहां तक पहुंचे भी तो यह सोचते हुए उल्टे पैर लौट आए कि किसी घर में पहुंच गया। अप टै्रक की लूप लाइन पर यदि मालगाड़ी खड़ी हो तो चौकी तक पहुंचना टेढ़ी खीर रहता है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग और महिलाओं का चौकी तक पहुंचना नामुमकिन रहता है। सालभर पहले जीआरपी को प्लेटफार्म नंबर एक पर आरपीएफ थाने के पास एक कक्ष दिया गया, लेकिन कमरा अक्सर बंद रहता है। यानि टे्रन से उतरने वाला यात्री अगर अगर किसी घटना की रिपोर्ट लिखाना चाहे तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चौकी पर लगा बीएसएनएल का लैंडलाइन फोन भी महीनों से बंद पड़ा है। स्टाफ को सरकारी मोबाइल सिम मिलने से उनके पास इसकी उपयोगिता नहीं बची। यानि यात्री अगर लैंडलाइन पर कॉल करें तो रिसीव नहीं होगा।
दस स्टेशन की यात्री सुरक्षा का जिम्मा आठ लोगों पर
करीब 6 0 किमी के कार्यक्षेत्र वाली चौकी में एक एएसआई तैनात है। इनके पास ही चौकी का प्रभार है। इसके अलावा एक प्रधान आरक्षक और छह आरक्षक यहां पदस्थ हैं। सिवनी-बानापुरा से भिरंगी तक के दस स्टेशन पर यात्री सुरक्षा का जिम्मा इन्हीं के जिम्मे है। बल ज्यादातर समय हरदा में ही रहता है। अन्य स्टेशनों पर अपराध घटित होने पर ही पहुंचता है।
करीब 6 0 किमी के कार्यक्षेत्र वाली चौकी में एक एएसआई तैनात है। इनके पास ही चौकी का प्रभार है। इसके अलावा एक प्रधान आरक्षक और छह आरक्षक यहां पदस्थ हैं। सिवनी-बानापुरा से भिरंगी तक के दस स्टेशन पर यात्री सुरक्षा का जिम्मा इन्हीं के जिम्मे है। बल ज्यादातर समय हरदा में ही रहता है। अन्य स्टेशनों पर अपराध घटित होने पर ही पहुंचता है।