सालों बाद भी नहीं बनी ग्रामीण क्षेत्र की सड़कें, बारिश में फजीहत झेलते हुए निकलते हैं ग्रामीण
हरदाPublished: Aug 08, 2020 10:03:36 pm
– स्कूली छात्र-छात्राओं को होती है परेशानी, बीमार और प्रसूताओं को लेने आसानी से नहीं पहुंच पाती एंबुलेंस
सालों बाद भी नहीं बनी ग्रामीण क्षेत्र की सड़कें, बारिश में फजीहत झेलते हुए निकलते हैं ग्रामीण
हरदा/हंडिया। एक ओर जहां प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाने के दावे कर रही है, वही दूसरी ओर हंडिया तहसील मुख्यालय को गांवों से जोडऩे वाली कई सड़कें पक्की नहीं बन सकी हैं। जो बनी, उनका रखरखाव ठीक ढंग से नहीं होने के कारण बुरे हाल में हैं। रेत परिवहन के लिए निकलने वाले डंपर व टै्रक्टर-ट्रॉलियों ने भी इनका दम निकाल दिया है। हंडिया से महज 8 किमी दूर बसे ग्राम जुगरिया में पंहुच मार्ग पर जाते ही शासन-प्रशासन के दावे की पोल खुलती दिखाई पड़ती है। जुगरिया के निवासियों को हंडिया आने के लिए वर्ष भर सड़क की समस्या से जूझना पड़ता है। आजादी के 70 वर्ष बाद भी ग्रामीणों को सात माह तक जहां दलदल नुमा सड़क से होकर अपने गंतव्य तक पहुंचना पड़ता है। वहीं बरसात के चार महीने में घर जाने के लिए नाला पार कर जाना-आना मजबूरी बन जाता है। ग्रामीणों को इस समस्या की ओर आज तक न तो किसी अधिकारी ने ध्यान दिया, ना ही जनप्रतिनिधियों ने। परिणाम स्वरूप यहां निवासियों को सड़क की समस्या सालभर झेलना पड़ती है। छात्र महेश कुमार बताते हंै कि प्रदेश सरकार द्वारा छात्र-छात्राओं का सायकिल तो दी गई है, लेकिन सड़क नहीं बनवा सके। इसके चलते यह सायकल अधिकतर समय शोपीस बनी रहती है। ग्रामीण कैलाश धनेरिया ने बताया कि गांव के करीब 20 छात्र-छात्राएं हंडिया प्रतिदिन पढ़ाई के लिए जाते हैं। इन्हें कीचड़ में से निकलकर स्कूल पहुंचना पड़ता है। ग्रामीण देवीलाल गोरा कहते हैं कि भमोरी से आदमपुर मार्ग प्रधानमंत्री सड़क में शामिल है। जिसका कार्य विगत 15 वर्षों से अपूर्ण पड़ा है। भमोरी से जुगरिया के मध्य सड़क बुरे हाल में है। चार किमी मार्ग पर जगह-जगह गड्ढों में पानी भरा है। ऐसे में दो पहिया वाहन चालक फिसलकर गिरते हैं।
तेरह साल से अटका निर्माण
ऐसे ही हालात हंडिया-मसनगांव मार्ग के भी हैं। जहां का काम तेरह साल से अधर में लटका है। 18 किमी लंबी सड़क का कार्य 13 साल पहले शुरू हुआ था। खेड़ा से अजनास के बीच करीब चार किमी मार्ग पर ग्रामीणों को वर्ष भर परेशानी झेलते हुए निकलना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि इस मार्ग पर बरसों पहले मुरम डाली गई थी। अब यहां कई स्थानों पर गड्ढे हो चुके हैं। ग्रामीणों को चार किमी की दूरी तय करने में आधा घंटा लगता है। वहीं अजनास, रेलवा आदि गांव से खेड़ा हाई स्कूल पढऩे आने वाले छात्र छात्राओ को भी वर्ष भर परेशानी का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण राजू शर्मा का कहना है कि खेड़ा से अजनास गांव के ग्रामीणों को गंतव्य तक पहुंचने में दो पहिया वाहन से आना जाना करते है। उबड़-खाबड़ सड़क पर वाहन चालक आए दिन दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। जिले के सबसे बड़े वेयर हाउस खेड़ा का पहुंच मार्ग नहीं होने से चार पहिया वाहन चालक आए दिन परेशान होते हैं। उन्हें वाहन के पंचर होने व टायर फटने आदि की समस्या से जूझना पड़ता है।
दस वर्ष में पूर्ण नहीं हो सका निर्माण कार्य
सीगोन से हंडिया 5 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य विगत 10 वर्षों में भी पूरा नहीं हो सका। सीगोन से मेदा तक सीमेंट कांक्रीट कार्य होने के बाद 4 वर्ष तक काम बंद रहा। वहीं ठेकेदार द्वारा 2 वर्ष पूर्व पुन: मैदा से हंडिया मांगरुल मार्ग तक इस कार्य को किए अभी 2 वर्ष गुजरे हैं। ऐसे में ठेकेदार द्वारा घटिया स्तरीय कार्य करने एवं सड़क पर बड़ी संख्या में रेत के वाहनों की आवाजाही के चलते यह सड़क जर्जर हो गई है। ग्रामीण खासे परेशान हैं। इस संबंध में ग्रामीणों द्वारा कलेक्टर, कृषि मंत्री आदि से शिकायत की जा चुकी, लेकिन ध्यान नहीं दिया जा रहा।
पुनर्वास स्थल कलेक्टर नगर पहुंच मार्ग भी नहीं बन सका
इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर से डूब में आए कांकरदा गांव के लोगों को १५ साल पहले यहां से करीब 2 किमी दूर ५४०० वर्गफीट के प्लॉट बेचे गए। तत्कालीन जिलाधीश रहे प्रशासनिक अधिकारी ने इस गांव को गोद लेकर कलेक्टर नगर नाम दिया। वाद किया कि यहां समुचित व्यवस्थाएं कराई जाएंगी, लेकिन ऐसा आज तक नहीं हो सका। करीब ८०० की आबादी वाले गांव की सूरत नहीं बदली। साल्याखेड़ी से गांव तक पहुंचने के लिए ५ किमी सड़क का पक्का निर्माण कराने के लिए ग्रामीण कई बार अफसरों से गुहार लगा चुके। वोट मांगने के लिए आदिवासी बाहुल्य गांव पहुंचे नेताओं ने हर बार पक्की सड़क बनवाने का आश्वासन दिया, लेकिन इसकी हालत में सुधार नहीं आया। जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूर बसे डूब क्षेत्र के इस गांव तक पहुंचना खासा मुश्किल है। एनएचडीसी द्वारा सालों पहले गिट्टी-मुरम से बनवाई गई सड़क पर दचकों की भरमार है। बारिश होने पर यहां से निकलना खतरे से खाली नहीं। बाइक कब फिसल जाए, कोई भरोसा नहीं रहता। कोई बीमार पड़े तो एंबुलेंस भी गांव तक नहीं पहुंचती। ग्रामीण अपने स्तर पर मरीज को साल्याखेड़ी तक लेकर आते हैं।