सीजन में खाद नहीं मिलने की आशंका से बाजार में यूरिया डीएपी की बढ़ी मांग
हरदाPublished: May 21, 2020 08:16:10 pm
किसान अभी से कर रहे जरूरत से ज्यादा खाद का स्टॉक
किसान अभी से कर रहे खाद का स्टॉक
खिरकिया. कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए लागू किए लॉकडाउन से आगामी सीजन में खाद उपलब्ध नहीं होने की आशंका के चलते बाजार में इन दिनों खाद की मांग अचानक बढ़ गई है। किसानों द्वारा भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए यूरिया एवं डीएपी की खरीदारी में जुट गए है। रबी की उपज बेचने के बाद मिली राशि से किसान सबसे पहले आगामी रबी सीजन के लिए खाद खरीद रहे हैं। किसानों में भ्रांति है कि लॉकडाउन के चलले फैक्ट्रियां बंद हो गई है, मजदूर अपने घर लौट गए है। ऐसे में समय पर खाद उपलब्ध नही हो पाएगा। सामान्यत: रबी की फसलों में यूरिया एवं डीएपी की आवश्यकता होती है, लेकिन किसान अभी से स्टॉक कर रख रहे हंै।
6 माह बाद होना है यूरिया डीएपी का उपयोग-
यूरिया का अधिकांश उपयोग रबी की फसल गेहूं एवं चना में किया जाता है। लेकिन किसानों को खाद की चिंता अभी से सता रही है। ऐसे में जो सीजन ६ माह बाद आएगा उसके लिए किसान अभी से खाद खरीदकर रख रहे हंै। इससे बाजार में व्यवस्था भी बिगड़ रही है। किसान अपनी आवश्यकता से भी अधिक खाद खरीद रहे हंै। जिन किसानों को 30 से 50 बोरी यूरिया की आवश्यकता है, वे 100 बोरी तक यूरिया ले जा रहे हैं।
किसानों में भ्रांति – फैक्ट्रियां बंद, मजदूर गए घर,कैसे होगी आपूर्ति-
लॉकडाउन के चलते किसानों में समय पर खाद नहीं मिलने की भ्रांति फैल गई है। किसानों में चर्चा है कि लॉकडाउन के कारण सभी फैक्ट्रियां बंद हो गई है। मजदूर शहरों से अपने घर चले गए है। ऐसे में खाद की आपूर्ति नहीं हो पाएगी। ऐसी स्थिति में यदि खाद नहीं मिलेगा तो उपज की पैदावार प्रभावित होगी। गत वर्ष भी किसानों को यूरिया खाद के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। मांग के अनुसार यूरिया उपलब्ध नहीं होने से किसानों को जमीन का रकबा देखकर यूरिया दिया गया था।
स्टॉक कर सीजन पर अधिक कीमत में बेचा जाता है खाद-
यूरिया एवं डीएपी खाद की मांग व अनुपलब्धता के नाम पर कुछ किसानों द्वारा आदिवासी क्षेत्र में इसका फायदा उठाया जाता है। यदि आगामी सीजन के दौरान खाद की अनुपलब्धता होती है, तो इसका फायदा कुछ बड़े किसानों द्वारा उठाया जाएगा। आदिवासी अंचलों में सक्षम किसानों द्वारा यूरिया एवं डीएपी का बड़ी मात्रा में स्टॉक कर लिया जाता है, फिर सीजन में क्षेत्र के सीमांत किसानों को ऊंचे दामों पर बेचकर मुनाफा कमाया जाता है। आदिवासी अंचल में यह धंधा काफी फल फूल रहा है। आदिवासी अचंल में किसानों से 3 बोरी यूरिया के बदले में 1 बोरा गेहूं तक लिया जाता है। तीन बोरी यूरिया की कीमत 800 रुपए होती है, इसका किसानों को 2 हजार रुपए क्विंटल के गेहूं से चुकानी पड़ती है। जबकि अभी से खाद का स्टॉक करने से उपयोग के समय तक उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
इनका कहना है-
अफवाह के चलते किसान यूरिया एवं डीएपी की मांग कर रहे है। किसान अभी से अनावश्यक रूप से स्टॉक कर रहे है। रखरखाव के अभाव में खाद की गुणवत्ता भी प्रभावित होती
भरत हेड़ा, व्यवसायी, खिरकिया
कारखाने बंद होने के कारण खाद की कमी होने की अफवाह चल रही है, जो कि गलत है। यूरिया एवं डीएपी की पर्याप्त उपलब्धता है। खाद की किसी प्रकार कोई कमी नहीं आएगी।
संजय जैन, वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी, खिरकिया