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इस सीट पर पार्टियों ने चला बड़ा दांव, भाजपा के लिए सीट बचाने की चुनौती, सपा-बसपा की दोस्ती की होगी परीक्षा

locationहरदोईPublished: Apr 04, 2019 04:17:30 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

लोकसभा चुनाव के लिए चौथे चरण में शामिल यूपी के इस जिले में 29 अप्रैल को मतदान संपन्न होगा।

mayawati Akhilesh yadav

mayawati Akhilesh yadav

हरदोई. लोकसभा चुनाव के लिए चौथे चरण में शामिल यूपी के हरदोई जिले में 29 अप्रैल को मतदान संपन्न होगा। चुनाव के लिए नामांकन प्रकिया 2 अप्रैल से शुरू हो चुकी है। हरदोई सुरक्षित सीट से कमोवेश सभी प्रमुख दलों ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। दलबदल का सिलसिला भी शायद अब अंतिम पड़ाव पर है। ऐसे में चुनाव को लेकर जनता के बीच जाने वाले प्रमुख दलों के लिए अपने-अपने सपने, अपने तराने और बेगाने हुए लोगों के बीच जूझने की चुनौतियां हैं। अब किसका बेड़ा पार, किसका खिसकेगा आधार और कौन बनाएगा इस सीट से सरकार, इसको लेकर लोगों के मन में जिज्ञासा है।
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संबंधों की दुहाई देने से लेकर अपना-अपना प्रचार-

लोकसभा सीट 31 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। उत्तर प्रदेश के हरदोई लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा हैं, जिन्होंने टिकट कटने से नाराज होकर बीजेपी से अपना इस्तीफा देकर सपा का दामन थाम लिया है। भाजपा ने यहां से पूर्व सांसद जय प्रकाश को टिकट दिया है। जाहिर है कि भाजपा के लिए यहाँ अपनी सीट बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है। इस सीट पर 30 वर्षों से जीत की आस में लगातार प्रयास करने के बाद विफल रही कांग्रेस ने इस बार नया दांव लगाया है। कांग्रेस ने पहली बार इस सीट पर ऐनवक्त में किसी दलबदल कर आने वाले को टिकट दिया है। बसपा से विधायक रह चुके वीरेंद्र वर्मा को कांग्रेस ने टिकट देकर नया दांव चला है, हालांकि कांग्रेस के इस दांव से जिला स्तर पर संगठन में आपसी मतभेद से लेकर तरह-तरह की बातें चल रही हैं। फिलहाल संगठन में एकता और एकजुटता कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती है।
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सपा प्रत्याशी तीसरे व बसपा प्रत्याशी दसरे नंबर पर रहे थे-

गत लोकसभा चुनाव में इस सीट से सपा प्रत्याशी पूर्व सांसद ऊषा वर्मा तीसरे नंबर पर और बसपा प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के चलते दोनों दलों की दोस्ती की बड़ी परीक्षा भी है। गठबंधन की ओर से सपा प्रत्याशी ऊषा वर्मा चुनाव मैदान में हैं। भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हुए इस सीट के मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा भी ऊषा वर्मा के साथ हैं।
ऐसे में साफ तौर पर कहा जा सकता है कि चुनाव के बन रहे परिदृश्य में अभी धुंधली दिख रही तस्वीर के साफ होने में ज्यादा समय नहीं लगने वाला है। नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव प्रचार और तेजी पकड़ेगा, तो मतदाताओं का रुझान भी समझ आने लगेगा और 29 अप्रैल को होने वाले मतदान में मतदाता तस्वीर और तकदीर दोनों ही तय कर देंगे।
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