दरअसल हरदोई लोकसभा सीट पर सियासत लाल और प्रकाश के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। इस सीट के गठन के बाद से लेकर अब तक हुए इस सीट के लोकसभा चुनावों पर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो ज्यादातर यह जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशियों के नाम में लाल और प्रकाश नाम शामिल रहा है। दिलचस्प आंकड़ों के लिहाज से बताते हैं कि क्यों हरदोई सीट को लाल और प्रकाश के लिए लकी मानते हैं। लाल और प्रकाश का नाम में शामिल होना इस सीट पर जलवे से लेकर के सियासत के रंगों को बिखेरने के आंकड़ों से जोड़कर देखा जाता है।
अब तक के चुनावी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो हरदोई लोकसभा सीट में आजादी के बाद पड़ोसी जनपद फर्रुखाबाद का भी कुछ हिस्सा शामिल था। पहली बार 1952 में कांग्रेस के बुलाकीराम फिर 1957 में जनसंघ के शिवदीन ने जीत दर्ज की थी। उपचुनाव 1957 में इस सीट से कांग्रेस के बाबू छेदा लाल गुप्ता ने जीत दर्ज की थी। बाबू छेदा लाल नरेश अग्रवाल के बाबा थे।
इसके बाद परिसीमन में यह सीट पुनर्गठित होकर सुरक्षित श्रेणी में हो गई और पड़ोसी जनपद का जुड़ा इलाका भी इससे अलग हो गया और फिर हुए 1962 व 1967, 1971 के चुनावों में कांग्रेस के किंदर लाल ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की। 1977 में परमाई लाल ने भारतीय लोकदल की टिकट से यहां जीत दर्ज की थी हालांकि 1980 में हुए चुनाव में फिर कांग्रेस प्रत्याशी मन्नीलाल और 1984 में किंदर लाल कांग्रेस ने यहां से जीत दर्ज की 1989 के चुनाव में परमाई लाल ने फिर इस सीट पर वापसी करते हुए जनता दल के प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। परमाई लाल पूर्व सांसद ऊषा वर्मा के ससुर और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी मित्र थे। 1991 और 1996 तथा 1999 में यहां भाजपा के जय प्रकाश ने जीत दर्ज की। 1999 में जय प्रकाश लोकतांत्रिक कांग्रेस से भाजपा के गठबंधन प्रत्याशी थे। 1998, 2004, 2009 में यहां से परमाई लाल की बहू ऊषा वर्मा ने जीत दर्ज की। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के अंशुल वर्मा ने जीत दर्ज की। इस तरह से अब तक हुए लोकसभा चुनावों में आंकड़ों और नामों पर नजर डाला जाए तो साफ पता चलता है कि इस सीट पर लाल और प्रकाश की सियासत का जादू खूब चला है।