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प्रयागराज कुंभः अध्यात्म के महाकुम्भ में हाथरस की आध्यात्मिक भूमिका

locationहाथरसPublished: Feb 02, 2019 10:48:34 am

Submitted by:

Bhanu Pratap

महाकुम्भ 2019 में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व, ‘सबका मालिक एक है’ को आत्मसात करने का आह्वान

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प्रयागराज कुंभः अध्यात्म के महाकुम्भ में हाथरस की आध्यात्मिक भूमिका

हाथरस। पुण्य सलिला गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम ‘तीर्थों के राजा प्रयागराज’ की राग, द्वेष रहित पावन नगरी के रेती में कुंभ चल रहा है। भारतवर्ष के हर प्रान्त से लोग बिना कोई चिट्ठी पाती, बिना निमंत्रण मात्र कलैण्डर और पुरोहितों द्वारा बताई गई तिथियों के आधार पर लाखों की तादात में इन दो पवित्र नदियों के मिलन को देखने और ईश्वरत्व की अनुभूति करने के लिए रास्ते के कष्टों को झलते हुए पहुँचते हैं। मीलों दूर तक फैली गंगा-यमुना की रेतीली भूमि के विशाल प्रांगण में स्थित ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के पांडाल में से एक मण्डप ‘‘परमसत्ता परमपिता परमात्मा’’ और धर्मोत्थान का लगा है। इस अविरल यात्रा को संचालित करने का अवसर हाथरस के प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के आनन्दपुरी केन्द्र राजयोग शिक्षिका बीके शान्ता बहन के सानिध्य में बीके वंदना बहन, बीके मनोज कुमार, बीके केशवदेव को मिल रहा है।
 </figure> Kumbh , <a  href=Kumbh 2019 , prayagraj , brahma kumaris , Brahma Kumaris, World Spiritual University, Religion , spirituality , Hindu , rebellion , spirit , Kalpa , Paramatma, ganga , Yamuna , saraswati , sangam , Ganges River , pilgrims , Indians , foreigners” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/02/02/br1_4070496-m.jpg”>कल्प क्या है
मनोहारी सुप्रभात से पूर्व और संध्या से रात्रि तक सरिस सलिला में स्नान का क्रम चलता रहता है। कल्पवास के रूप में भिन्न-भिन्न शिविरों में एकत्रित श्रद्धालु भी देखने में आ रहे हैं। कल्प क्या है, कल्पवास की लम्बी चौड़ी परिभाषाओं से अधिकांश अनभिज्ञ हैं। सिर्फ यह मालूम है कि एक वक़्त का भोजन करना है और गंगा स्नान, सैकड़ों पाण्डालों में होने वाले भजन-कीर्तन, भक्ति स्मरण आदि, ध्यान, हवन और भ्रमण, किसी को दुःख आदि नहीं देना, यही दिनचर्या रखने का प्रयास।
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विदेशी यात्रियों में भी श्रद्धा
हर-हर गंगे और हर-हर महादेव की गूंज के मध्य भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों, अखाड़ों की सवारियाँ गंगा स्नान, संगम स्नान के लिए धूमधाम से निकलती नजर आती हैं। पृथक ढंग और पृथक पहनावा, वेश भूषा, कोई केश बढ़ाये हुए, कोई इतने बढ़ाये हुए कि बरगद की तरह जटायें बढ़ गई हैं और कोई पूरा सिर मुण्डन, कोई मूछों को ऐंठ रहा है तो किसी की दाढ़ी पर बाल तक नहीं। उद्देश्य एक गंगा स्नान और भजन, श्रवण इत्यादि। विदेशी यात्रियों में भी वही श्रद्धा और भक्ति नजर आती है जो देशी यात्रियों में होती है। चारों ओर जैसे कि आनन्द पसरा नजर आता है।
दर्शक रोमांचित
देवी दुर्गा से सम्बन्धित स्त्रोत या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिताः आदि अनेक मंत्रों के उच्चारण के साथ भिन्न भिन्न देवियों के चैतन्य झाँकी जब खुलती हैं तो दर्शक रोमांचित नजर आते हैं। आत्मा पर जमी हुई पुराने दूषित संस्कारों और पापकर्मों की कालिख को मांजने का कार्य इस प्रकार के ज्ञानयुक्त और योगयुक्त शिविर ही कर सकते हैं। इस मण्डप में उपस्थित ब्रह्मावत्स प्रातःकाल 9 बजे से रात्रि 9 बजे तक निरन्तर देने के लिए तत्पर रहते हैं।

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