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बताया जा रहा है कि झामुमो से आने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में काम कर रही सरकार के काम करने के तरीके से 9 विधायक नाराज हैं। इनमें से तीन विधायकों इरफान अंसारी, उमाशंकर अकेला और राजेश कच्छप ने राज्यसभा सांसद धीरज प्रसाद साहू के साथ दो दिन से दिल्ली में डेरा डाल रखा है। आलाकमान तक बात पहुंचाने के लिए इन्होंने ऐसा किया है।
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नाराज विधायकों का कहना है कि वे सरकार का हिस्सा जरूर हैं, लेकिन इलाके में चल रहे विकास कार्यों और योजनाओं में उनके सुझाव को दरकिनार किया जा रहा है। कई विधायक इस बात से खफा हैं कि जिले-प्रखंडों में पुलिस अधीक्षक, उपायुक्त, प्रखंड विकास पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, समेत अन्य अधिकारियों की नियुक्ति में भी उनकी नहीं सुनी जा रही है।
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ऐसा नहीं है कि केवल सरकार की कार्यशैली की वजह से यह विरोध का स्वर उपजा है। वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने भी इसमें भूमिका निभाई है। विधायकों की सरकार में शामिल कांग्रेस कोटे के चारों मंत्रियों डॉ. रामेश्वर उरांव, आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता और बादल से भी नाराजगी है। कांग्रेस विधायकों कहते हैं कि पार्टी के कोटे से मंत्री बने नेता भी हमारे क्षेत्रों पर कोई खासा ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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बताया जा रहा है कि कांग्रेस विधायक पार्टी के प्रदेश प्रभारी आरपी सिंह से भी नाराज हैं। इनका मानना है कि विधायक सरकार और मंत्रियों पर दबाव बनाने की जो भी कोशिश करते हैं उन्हें प्रभारी आरपी सिंह विफल कर देते हैं। इस नाराजगी का असर भी साफ नजर आने लगा है। इसी वजह से दिल्ली पहुंचे विधायकों ने आरपी सिंह की जगह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेता अहमद पटेल से मुलाकात की। वहीं कांग्रेस पार्टी में लागू एक व्यक्ति एक पद का फॉर्मूला को नजरअंदाज करते हुए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव के संगठन के पद के साथ ही मंत्री बनने से भी विधायक नाराज हैं।
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कांग्रेस की नाराजगी से क्या होगा असर
गौरतलब है कि झारखंड में झामुमो-आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन वाली सरकार है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 हैं, कांग्रेस के 16, आरजेडी का एक विधायक है। जबकि बीजेपी के पास 25 सीटें हैं। 81 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 42 हैं। यहां की महागठबंधन सरकार फिलहाल किसी संकट में नहीं है लेकिन कांग्रेसी विधायकों को रोष को कम करना बेहद जरूरी है, नहीं तो हालात बिगड़ सकते हैं।