अर्थराइटिस पर किए गए एक विश्लेषण में पाया गया है कि देश में पुरुषों की तुलना में महिलाएं रूमेटोइड अर्थराइटिस से अधिक पीडि़त हैं। विश्लेषण में यह भी पता चला है कि उत्तरी जोन की तुलना में पूर्वी जोन में अर्थराइटिस के मरीजों में ईएसआर और सीआरपी स्तर (जो जोड़ों की सूजन दर्शाते हैं) का उच्च होना तथा जोड़ों में सूजन आम है। वहीं, यूरिक एसिड का स्तर उत्तरी क्षेत्र में पूर्वी जोन की तुलना में अधिक पाया गया है। यूरिक एसिड का असामान्य स्तर गठिया को दर्शाता है।
चालीस की उम्र के बाद मरीजों में ईएसआर (56.71 फीसदी, 61-85 वर्ष), सीआरपी (80.13 फीसदी, 85 से अधिक उम्र), आरएफ (12.77 फीसदी, 61-85 वर्ष) और यूए (34.76 फीसदी, 85 से अधिक उम्र) के स्तर असामान्य पाए गए हैं। ये आंकड़े जनवरी 2014 से पिछले साढ़े तीन सालों के दौरान अर्थराइटिस की जांच हेतु लिए गए 64 लाख नमूनों पर आधारित हैं।
हड्डी एवं जोड़ों के रोगों के निदान के लिए आमतौर पर एक्स-रे, सीटी-स्कैन, एमआरआई और डेक्सा स्कैन का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं रोग की स्क्रीनिंग एवं मॉनिटरिंग के लिए कई अन्य प्रयोगशाला परीक्षण काम में लिए जाते हैं।
अर्थराइटिस का सबसे प्रचलित रूप ऑस्टियो अर्थराइटिस हर साल भारत में 1.5 करोड़ वयस्कों को प्रभावित करता है। इस तरह इसकी प्रसार दर 22 फीसदी से 39 फीसदी है। इसके अलावा भारतीय आबादी में गठिया और रूमेटोइड अर्थराइटिस भी आमतौर पर पाए जाते हैं। ऑस्टियो अर्थराइटिस ज्यादातर महिलाओं में पाया जाता है और उम्र बढऩे के साथ इसकी संभावना बढ़ जाती है।
अध्ययन में पाया गया है कि 65 साल से अधिक उम्र की तकरीबन 45 फीसदी महिलाओं में इसके लक्षण मौजूद हैं, जबकि 65 साल से अधिक उम्र की 70 फीसदी महिलाओं में इसके रेडियोलोजिकल प्रमाण पाए गए हैं।
अध्ययन के अनुसार, रूमेटोइड अर्थराइटिस आमतौर पर जोड़ों के आस-पास मौजूद उतकों को प्रभावित करता है। आमतौर पर वयस्कों में पाया जाने वाला यह रोग भारत की 0.5 फीसदी-एक फीसदी आबादी को प्रभावित करता है। महिलाओं में इसके मामले तीन-चार गुना अधिक पाए जाते हैं। इसकी शुरुआत अक्सर 35-55 आयुवर्ग में होती है। बयान में कहा गया है कि इन्फ्लामेटरी अर्थराइटिस के सबसे आम रूप गठिया की सम्भावना पुरुषों में तीन-चार गुना अधिक होती है और यह 50 वर्ष या अधिक उम्र में होती है।