शोध को मिलेगी गति इस तकनीक की मदद से ऐसे तमाम शोधकर्ताओं की जरूरतों को भी पूरा किया जा सकता है, जिन्हें अपने शोध के लिए भ्रूण की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी उन्हें मानव भ्रूण के लिए आईवीएफ क्लीनिक में दान किए गए शुक्राणु व अंडाणुओं का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिनकी आपूर्ति कम होती है।
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर मैग्डालेना जरनिका गोएज का कहना है कि इस उपलब्धि से मानव जीवन के विकास के विभिन्न चरणों को समझने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि जब हम यह समझ लेंगे कि सामान्य विकास का क्रम क्या होता है, तो हमें यह समझने में आसानी होगी कि कुछ मामलों में यह बिगड़ क्यों जाता है। सबसे जटिल मामला है भ्रूण के गर्भाशय में स्थापित होने की प्रक्रिया में कहां बाधा आने पर शुरुआती चरण में गर्भपात हो जाता है, जिसे समझने में इस शोध से मदद मिलेगी।
अभी और अध्ययन की जरूरत हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यूं तो यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि इससे पहले शोधकर्ता इस अवस्था तक भी नहीं पहुंच पाए थे। मगर अभी इसमें और अध्ययन की जरूरत है। जैसे कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि लैब में निर्मित यह भ्रूण स्वस्थ भ्रूण के रूप में विकसित नहीं होंगे, क्योंकि ऐसा होने के लिए एक तीसरे और अंतिम प्रकार के स्टेम सेल की जरूरत होगी।