2045 तक बढ़ सकते हैं स्तन कैंसर के मामले Breast cancer cases may increase by 2045
एक हालिया ICMR अध्ययन के अनुसार, 2045 तक भारत में स्तन कैंसर (Breast cancer) के मामलों और इससे होने वाली मौतों में वृद्धि की आशंका जताई गई है। हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि कैंसर का प्रारंभिक चरण में पता लगाने से इलाज के परिणामों में सुधार और रोगियों की जीवन प्रत्याशा बढ़ाई जा सकती है। AIIMS, दिल्ली के डॉ. अभिषेक शंकर के अनुसार, “स्तन कैंसर (Breast cancer) के सामान्य लक्षणों में स्तन में गांठ के अलावा, कांख या कॉलरबोन के पास सूजन, निप्पल से स्राव (साफ़, खून भरा, या पीला), और त्वचा में बदलाव (गड्ढेदार, मोटी या संतरे के छिलके जैसी) भी हो सकते हैं।”
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डॉ. शंकर ने बताया, “त्वचा या निप्पल पर लालिमा, निप्पल का अंदर की ओर मुड़ना, स्तन के आकार में बदलाव, और स्तन में दर्द भी स्तन कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।”
ICMR के अनुसार, 2022 में स्तन कैंसर (Breast cancer) के मामले भारत में कुल महिला कैंसर का 28.2 प्रतिशत थे। स्तन कैंसर के मरीजों की 5 साल की जीवित रहने की दर 66.4 प्रतिशत है।
मामोग्राफी से समय पर स्क्रीनिंग की अहमियत
स्तन कैंसर (Breast cancer) का प्रारंभिक चरण में निदान और पता लगाने के लिए मामोग्राफी सबसे मानक परीक्षण है, जो मृत्यु दर को कम करने में मदद करती है। 2024 में अमेरिकी गाइडलाइन्स के अनुसार, 40 वर्ष की आयु से हर 2 साल बाद मामोग्राफी की सलाह दी जाती है। कई बार स्तन कैंसर (Breast cancer) के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते, इसलिए मामोग्राफी या स्तन MRI के माध्यम से नियमित स्क्रीनिंग जरूरी है। इससे मृत्यु दर में 30 प्रतिशत से अधिक की कमी होती है।”
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स्तन की स्व-जांच और क्लिनिकल जांच भी स्तन कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं। क्लिनिकल जांच को राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NP-NCD) के तहत सामुदायिक स्तर पर अपनाया जा रहा है।
स्तन कैंसर के जोखिम को कैसे कम करें?
स्तन कैंसर (Breast cancer) के जोखिम को कम करना संभव है यदि कुछ जोखिम कारकों में बदलाव किया जाए। इनमें देर से शादी, देर से बच्चे का जन्म, संतान न होना, और मौखिक गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग शामिल हैं। उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए हार्मोनल टैबलेट्स के साथ रसायन-निवारण (Chemoprophylaxis) मददगार हो सकता है, लेकिन इसे सामान्य रूप से सलाह नहीं दी जाती क्योंकि इसके साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।”
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जीवनशैली में बदलाव से जोखिम घटाया जा सकता है
डॉक्टरों ने पारिवारिक इतिहास होने पर आनुवांशिक परीक्षण कराने की भी सिफारिश की है। अन्य जोखिम कम करने के उपायों में स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार लेना, शराब और रेड मीट से परहेज करना शामिल है।