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पूरी तरह से ठीक होने के बाद फिर हो सकता है कैंसर

Published: Oct 01, 2017 02:44:35 pm

शरीर की इम्युनिटी कमजोर होने से दोबारा कैंसर का खतरा,50 फीसदी आशंका कैंसर के दोबारा उभरकर आने की होती है जिसे कैंसर रिलैप्स की स्थिति कहते हैं।

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शरीर की इम्युनिटी कमजोर होने से दोबारा कैंसर का खतरा,50 फीसदी आशंका कैंसर के दोबारा उभरकर आने की होती है जिसे कैंसर रिलैप्स की स्थिति कहते हैं।

कैंसर शरीर की अनियंत्रित कोशिकाओं से फैलता है। इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि एक बार यदि किसी को कैंसर हुआ और वो ठीक हो गया तो उसे दोबारा नहीं होगा। 50 फीसदी आशंका कैंसर के दोबारा उभरकर आने की होती है जिसे कैंसर रिलैप्स की स्थिति कहते हैं। इसके कई कारण हैं जिसमें से प्रमुख वजह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना है।

शरीर का हर अंग अलग-अलग कोशिकाओं के रूप में विभाजित है। इनमें खराबी आने से शरीर के उस भाग की कोशिकाएं पूरी तरह अनियंत्रित हो जाती हैं जिनपर शरीर का कोई नियंत्रण नहीं रहता और वहां कैंसर कोशिकाएं बनने लगती हैं। ये कोशिकाएं सिर के बाल से लेकर पैरों के नाखून तक होती हैं।

दो तरह का होता कैंसर
कैंसर दो तरह का होता है एक सॉलिड मेलिग्नेंसी और दूसरा लिक्विड फॉर्म कैंसर। दिमाग, हड्डी, आंख, स्तन समेत अन्य भागों में गांठ बने तो सॉलिड मेलिग्नेंसी है। वहीं लिक्विड कैंसर रक्त में होता है। भारत में केवल 20 फीसदी कैंसर मरीजों का जीवन बचा पाने में सफलता प्राप्त होती है। जबकि 80 फीसदी कैंसर रोगियों की मृत्यु का कारण समय पर इलाज न लेना या उपचार के लिए पर्याप्त पैसा न होना सामने आया है। वहीं अमरीका जैसे देश कैंसर से होने वाली मौतों को समय पर इलाज कर रोक रहे हैं। यहां करीब 80 फीसदी कैंसर रोगियों का जीवन बचा लिया जाता है। इसलिए जरूरी है कि समय रहते लक्षणों को पहचानकर इलाज लिया जाए।
लक्षण
बार-बार बुखार होना।
थोड़ा-सा चलने या काम करने पर थकान होना। शरीर के किसी भाग में तेज व असहनीय दर्द होना।
त्वचा का रंग अचानक बदलना।
भूख न लगना व वजन घटना।
अपच की समस्या और नींद न आने की दिक्कत।

धीरे-धीरे दूसरे अंगों में फैलता है
शरीर के किसी एक भाग में सेल्स अनियंत्रित हों तो दूसरे अंग पर भी असर छोड़ती हैं। जैसे प्रोस्टेट की खराब कोशिकाएं खून में फैलती हैं। जिससे मल में या खांसते समय मुंह से खून आता है। भोजननली में इन कोशिकाओं के जाने से खाने में तकलीफ व कब्ज रहती है। फेफड़ों में इनके फैलने से ट्रेकिया पर दबाव पड़ता है जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। धूम्रपान व शराब पीने वालों में रोग का खतरा 10 गुना रहता है।

40 की उम्र के बाद जरूरी जांचें
40 की उम्र में पहुंचने के साथ महिलाओं को सर्विक्स, दर्द रहित गांठ की मेमोग्राम और पैपस्मीयर टैस्ट कराने चाहिए। धूम्रपान करने वालों के मुंह में सफेद धब्बा कैंसर की शुरुआत हो सकता है। वहीं कफ के साथ खून आए तो जांच करवाएं। 40 साल के बाद हर दस साल में कोलोनोस्कोपी, सीटी स्कैन या एमआरआई जांच और ब्लड की बायोकैमेस्ट्री जांच करानी चाहिए।

इलाज
एलोपैथी
कैंसर का बेहतर इलाज शुरूआती लक्षणों की पहचान होने पर संभव है। लेकिन एक बार रोग का इलाज होने पर यदि यह दोबारा हो तो रोगी की हिस्ट्री जानने के बाद इलाज तय करते हैं। क्योंकि ऐसे मामलों में उस भाग की दोबारा सर्जरी करना मुश्किल होता है। जरूरी जांचों की रिपोर्ट के बाद यह निर्णय लेते हैं।
आयुर्वेद
कीमोथैरेपी से पहले आयुर्वेदिक दवाएं लेने से लक्षणों में कमी आती है। इसमें मुख्य रूप से कैंसर रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उसे हीरक भस्म के साथ गिलोय, अश्वगंधा, हल्दी, आंवला, शतावरी और त्रिफला समेत अन्य आयुर्वेदिक औषधियां दी जाती हैं। सुपाच्य और साफ-सुथरा भोजन लें।
होम्योपैथी
कैंसर के इलाज के साथ होम्योपैथी दवाएं रोगी को दी जाएं तो उसकी इम्युनिटी बढ़ सकती है। जिससे रोग की पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है। कैंसर से उबर चुके रोगी का आहार पौष्टिक होना चाहिए। किसी तरह का तनाव उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं। इम्युनिटी कमजोर होने पर ही कैंसर रिलैप्स का खतरा होता है।

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