स्वास्थ्य

प्रसव के बाद मसल्स कमजोर होने से रहती है कब्ज

कब्ज का एक प्रकार है ओडीएस यानी ऑब्स्ट्रक्टिव डिफिकेट्री सिंड्रोम। महिलाओं में ऐसा ज्यादा होता है। कारण प्रसव के बाद कूल्हे व आसपास की नसों का कमजोर होना अहम है।

Oct 24, 2018 / 06:27 pm

Ramesh Singh

प्रसव के बाद मसल्स कमजोर होने से रहती है कब्ज

जयपुर। कब्ज का एक प्रकार है ओडीएस यानी ऑब्स्ट्रक्टिव डिफिकेट्री सिंड्रोम। इसमें व्यक्ति को मोशन करने की इच्छा तो होती है लेकिन वह कर नहीं पाता। क्षमता से ज्यादा जोर लगाने के बावजूद स्टूल पास नहीं कर पाता। महिलाओं में ऐसा ज्यादा होता है। कारण प्रसव के बाद कूल्हे व आसपास की नसों का कमजोर होना अहम है। अक्सर व्यक्ति समस्या को साक्षा करने में हिचकिचाता है।
बे समय से कब्ज की समस्या और गुदा मार्ग की मांसपेशियों के कमजोर होने से अक्सर व्यक्ति को ओडीएस के शिकायत रहती है। तकलीफ के गंभीर रूप लेने का एक कारण समस्या को छिपाना भी है। ज्यादातर मरीज तकलीफ के बढऩे पर जब विशेषज्ञ के पास जाते हैं तो बार-बार पूछने पर हिचकिचाते हुए बताते हैं कि उन्हें कई बार अंगुली के सहारे स्टूल निकालना पड़ता है। ओडीएस की दिक्कत होने पर मोशन करने की सोच से व्यक्ति बार-बार शौचालय जाता है लेकिन पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पाता। भोजन में फाइबर व प्रोटीन युक्त चीजें लें। जैसे मौसमी, हरी सब्जियां, सोयाबीन, दालें, दानामेथी, अलसी के बीज आदि। मार्केट की चीजों से जितना हो सके परहेज करें। शाकाहारी भोजन लें।
इन लक्षणों से होती पहचान
मरीज को गुदा व इसके आसपास हल्का दर्द महसूस होता है। साथ ही प्रभावित भाग पर व चारों तरफ घाव या कई बार खून आने की शिकायत। कई बार इस समस्या की पहचान पाइल्स के रूप में उभरकर आती है। इंफेक्शन भी एक लक्षण है।
परेशानी को नजरअंदाज न करें
अक्सर बुजुर्गों में देखा गया है कि वे पेट या मोशन संबंधी किसी भी परेशानी के लिए चूर्ण या आयुर्वेदिक उपचार अपनाते लेते हैं। हालांकि इनसे फर्क भी पड़ता है। लेकिन बिना आयुर्वेदाचार्य के निर्देश से लिया गया चूर्ण भी स्थिति को धीरे-धीरे गंभीर कर देता है। परेशानी को नजरअंदाज करने से महिलाओं में भविष्य में यूरिनरी इन्कॉन्टिनेंस और मोशन संबंधी दिक्कतें हो सकती हैं।
पहचान के लिए ये जांचें कराते
प्रॉक्टोस्कोपी, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई आदि के माध्यम से रोग की स्थिति पता करते हैं। मुख्य रूप से एमआरडी (मैग्नेटिक रिसोनेंस डिटेक्टर) को अपनाते हैं। इसमें परेशानी वाले हिस्से की वीडियो बनाते हैं व स्टडी कर इलाज तय करते हैं।
दिनचर्या व खानपान में बदलाव
रोग की गंभीरता और स्थिति के आधार पर दवाएं देते हैं और दिनचर्या व खानपान में बदलाव किया जाता है। एडवांस्ड स्टेज में स्ट्रक्चरल डिफैक्ट्स को देखकर सर्जरी करते हैं। प्रमुख रूप से स्टेपल्ड ट्रांसेनल रेक्टल रिसेक्शन (स्टार) करते हैं। दिनचर्या में योग और एक्सरसाइज को कम से कम 20 मिनट जरूर करें। वहीं महिलाओं को पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज करनी चाहिए।
– डॉ. जया माहेश्वरी, गुदा रोग विशेषज्ञ, जयपुर

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