डायबिटिक न्यूरोपैथी
मरीज के हाथों-पैरों में सुन्नपन, जलन, दर्द और झुनझुनी होती है, दर्द नहीं होता है। चोट लगने पर पता नहीं चलता है। ब्लड में ग्लूकोज अधिक होने पर सेल्स खराब होते हैं जिससे कुछ अहसास नहीं हो पाता है।
पैरालिसिस अटैक
ब्लड में शुगर की मात्रा बढऩे से ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। दिमाग की नसों में थक्का जमने से हाथों व पैरों के काम करने की क्षमता खत्म होती है। पैरालिसिस अटैक से बचने के लिए ब्लड शुगर को नियंत्रित करें।
डायबिटिक नेफ्रोपैथी
अनियंत्रित ब्लड ग्लूकोज से गुर्दों पर बुरा असर पड़ता है। किडनी इंफेक्शन के बाद क्रॉनिक किडनी डिजिज होती है। रोगी का ब्लड प्रेशर भी असंतुलित रहता है। किडनी के मरीजों का डायलिसिस होता है।
हार्ट प्राब्लम
हार्ट अटैक का खतरा रहता है। मधुमेह पीडि़त हृदय रोगी की स्थिति बहुत गंभीर होती है। रोगी को बीपी चेक कराते रहना चाहिए। दो से तीन महीने में एक बार हृदय रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए।
डायबिटिक रेटीनोपैथी
डायबिटीज के मरीजों में मोतियाबिंद और आंख के पर्दे पर सूजन व इससे अंधेपन की आशंका रहती है। समय पर इलाज न मिलने से आंखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है। जांच कराते रहें।
इन्होंने की थी इंसुलिन की खोज
कनाडा के वैज्ञानिक सर फ्रेडरिक ग्रांट बैंटिंग ने 1921 में इंसुलिन की खोज कर पहली बार इसका परीक्षण डॉग्स में किया था। दवा के इस्तेमाल के बाद इन्होंने पाया कि रक्त में ग्लूकोज लेवल कम हो गया। 1922 में पहली बार 14 साल के बच्चे लियोनार्ड थॉम्पसन (टाइप-वन डायबिटीज से पीडि़त था) को प्रयोग के तौर पर लगातार इंसुलिन दिया। 1923 में इंसुलिन की खोज के लिए इन्हें दो श्रेणियों (फिजियोलॉजी और मेडिसिन) में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
डॉ. बलराम शर्मा, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट