बॉडी एंड सॉल

शिशु की परवरिश को लेकर बने डर को अनदेखा न करें, मां के लिए कुछ खास बातें

बच्चे का पालन-पोषण ठीक से कर पाउंगी या नहीं, प्रसव के बाद फैमिली सपोर्ट मिलेगा या नहीं, शिशु की परवरिश के लिए शारीरिक रूप से सक्षम हूं या नहीं…

Sep 30, 2017 / 12:04 am

विकास गुप्ता

बच्चे का पालन-पोषण ठीक से कर पाउंगी या नहीं, प्रसव के बाद फैमिली सपोर्ट मिलेगा या नहीं, शिशु की परवरिश के लिए शारीरिक रूप से सक्षम हूं या नहीं…

प्रसव के बाद २०-२५ फीसदी महिलाओं के दिमाग में कई भ्रम पैदा होने लगते हैं जिस कारण वे न तो शिशु की सही देखभाल कर पाती हैं और न ही पालन-पोषण और परिवार की जिम्मेदारी निभाने में तालमेल बैठा पाती हैं। यह स्थिति पोस्टनेटल डिप्रेशन की होती है जो बच्चे से ज्यादा मां को प्रभावित करती है।

ऐसे भ्रम पैदा होते
बच्चे का पालन-पोषण ठीक से कर पाउंगी या नहीं, प्रसव के बाद फैमिली सपोर्ट मिलेगा या नहीं, शिशु की परवरिश के लिए शारीरिक रूप से सक्षम हूं या नहीं… ये भ्रम प्रसव के बाद महिला के मन में रहते हैं। ऐसा लगभग ६ हफ्तों तक होना सामान्य है लेकिन इससे ज्यादा समय तक ऐसे खयाल गंभीर डिप्रेशन की ओर इशारा करते हैं। कई बार लंबे समय तक इस समस्या से पोस्टपार्टम साइकोसिस हो सकता है जो दुर्लभ बीमारी के रूप में सामने आता है।

ये हैं वजह
हार्मोन्स में बदलाव होना प्रमुख है। कई बार किसी बीमारी, परेशानी या पोषक तत्त्वों की कमी के चलते गर्भावस्था के दौरान दवाओं का कोर्स पूरा ना लेने या इनके दुष्प्रभाव से भी महिला का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। घर की जिम्मेदारी के साथ यदि व्यवसायिक रूप से व्यस्त हैं तो भी दोनों के बीच तालमेल बनाने का तनाव भी मानसिक और व्यवहारिक रूप से असर करता है।

लक्षण
इस समस्या के लक्षण अलग-अलग महिला में भिन्न हो सकते है। साथ ही दिन-ब-दिन इनकी गंभीरता कम होने लगती है। बिना कारण उदास रहना और रोना, थकान होने के बावजूद नींद न आना या जरूरत से ज्यादा देर तक सोते रहना, बच्चे की परवरिश, परिवार के सहयोग व जिम्मेदारी और समाज के साथ से जुड़े नकारात्मक विचार आना प्रमुख हैं। कई बार मां खुद को नुकसान पहुंचाने जैसा गंभीर कदम तक उठा लेती है।

ऐसे होगा इलाज
मनोरोग फैमिली हिस्ट्री जानकर, बातचीत कर समस्या को समझते हैं। इसके बाद रोग और इसकी गंभीरता को जानने के बाद इलाज तय करते हैं। प्राथमिक उपचार के तौर पर काउंसलिंग की मदद ली जाती है। लेकिन कई बार एंटीडिप्रेसेंट दवाओं से भी लक्षणों को धीरे-धीरे कम किया जाता है। हार्मोन्स का स्तर बेहद कम होने पर कई बार हार्मोनल थैरेपी भी चलाई जाती है। महिला को फैमिली सपोर्ट देने की सलाह देते हैं।

30 की उम्र में प्रेग्नेंसी, बढ़ती आयु !
पुर्तगाल कोइम्ब्रा यूनिवर्सिटी में हाल ही हुए एक शोध में सामने आया कि जो महिलाएं ३० की उम्र के आसपास या इसके बाद प्रेग्नेंसी प्लान करती हैं उनकी उम्र २० साल या इससे कम उम्र की मां बनने वाली महिलाओं से लंबी होती है। शोध के अनुसार ३० की उम्र में मां बनने वाली महिलाओं के डीएनए में लंबी उम्र के लक्षण तीन गुना अधिक थे। हालांकि भारत में खानपान और रहन-सहन पर ऐसा निर्भर करता है।

Home / Health / Body & Soul / शिशु की परवरिश को लेकर बने डर को अनदेखा न करें, मां के लिए कुछ खास बातें

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.