मुंह बंद करना
अक्सर लोग बच्चे को खर्राटे लेता देख उसका मुंह बंद कर देते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि वह सांस लेने के लिए मुंह खोलकर सो रहा होता है, मुंह बंद करने पर उसका दम घुटेगा और वह नींद से जाग जाएगा।
इलाज
खर्राटे लेने वाले बच्चों की नींद आमतौर पर पूरी नहीं होती जिस वजह से वे चिड़चिड़े हो जाते हैं और किसी भी काम में उनका मन नहीं लगता। इसलिए जरूरी है कि बच्चे पर पडऩे वाले शारीरिक और मानसिक दबाव को दूर करें। एलर्जी की वजह से बच्चा खर्राटे लेता है तो नाक में डालने के लिए स्प्रे या ओरल दवाइयां दी जाती हैं। टॉन्सिल होने पर मेडिसिन दी जाती हैं, ठीक न होने पर ऑपरेशन किया जाता है। इसी तरह नाक की हड्डी बढऩे पर भी ऑपरेशन कराना पड़ता है।
आठ घंटे सोना जरूरी
एक सामान्य बच्चे के लिए जरूरी है कि वह आठ घंटे की नींद ले तभी वह पूरी तरह से फ्रेश होकर उठेगा।
2-8 साल के बच्चों में समस्या ज्यादा
दो से आठ साल की उम्र के लगभग 10 फीसदी बच्चे खर्राटे लेते हैं, इनमें से करीब 3-4 फीसदी स्लीप एप्नीया के शिकार होते हैं। इस रोग की जांच के लिए बच्चे की हैल्थ हिस्ट्री की बारीक जानकारी लेना जरूरी है। साथ ही उसके सोने की आदतें, गर्दन के सॉफ्ट टीशूज का एक्सरे और फिजिकल चेकअप आदि जरूरी होता है।
पांच कारणों से होती है यह दिक्कत
बच्चों में खर्राटों की वजह टॉन्सिल या नाक के पिछले हिस्से में स्थित एडिनॉएड ग्रंथि का बढऩा है। कई बार जब बच्चों की नाक बंद होती है तो उन्हें मुंह से सांस लेनी पड़ती है, सांस की यही आवाज खर्राटे बन जाती है। इसके अलावा सांस की एलर्जी से भी बच्चों की नाक बंद हो जाती है जिससे खर्राटे आते हैं। अगर बच्चा थका हुआ होता है तो भी वह सोते हुए खर्राटे लेता है क्योंकि इस दौरान सांस नली की मांसपेशियां कमजोर होने से नली में रुकावट आ जाती है। नाक की हड्डी टेढ़ी होने पर भी बच्चों में खर्राटों की समस्या हो जाती है।