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इस बीमारी में कभी भी आ जाता पेशाब और पॉटी

locationजयपुरPublished: Mar 20, 2018 02:16:06 pm

Submitted by:

manish singh

गलत ढंग से योग करने से रीढ़ की हड्डी में खिंचाव होता है। इससे मांसपेशी में कमजोरी होती है।

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योग के गलत आसन और तेजी से खराब हो रही लाइफ स्टाइल रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) को नुकसान पहुंचा रही है। गलत ढंग से योगासन करने से रीढ़ की हड्डी में खिंचाव होता है जिसकी वजह से मांसपेशी में कमजोरी आने के साथ तनाव होता है। लंबे समय तक तकलीफ रहने पर पीठ व गर्दन में दर्द होता है जिसे स्लीपडिस्क कहा जाता है। स्लीपडिस्क की समस्या 30 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों में अधिक होती है। हालांकि पुरूषों की तुलना में महिलओं में रीढ़ की हड्डी में तकलीफ के मामले दो गुना अधिक होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक दो महिलाओं को स्लीपडिस्क की समस्या होती है तब एक पुरूष इस तकलीफ की चपेट में आता है।

रीढ़ की हड्डी में होती 33 हड्डियां

रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) में 33 हड्डियां होती हैं जिसे वर्टीब्रल बॉडीज कहते हैं। इनके बीच में रबर के छल्ले की तरह जैली होती है जो रीढ़ की हड्डी के मूवमेंट में मदद करती है। चोट या बीमारी के कारण ये अपनी जगह से खिसक जाती है। इससे स्पाइनल कॉर्ड और उससे निकलने वाली नसों पर दबाव बनता है जिससे कमर दर्द, गर्दन दर्द, सुन्नपन के साथ हाथ और पैरों में कमजोरी होने लगती है। में कहां दिक्कत हुई है इसी आधार पर परेशानी होती है। स्लिप डिस्क्स की समस्या अधिक गंभीर है तो दोनों हाथ-पैर में कमजोरी के साथ पेशाब और स्टूल से नियंत्रण खत्म हो जाता है।

रीढ़ की हड्डी में तकलीफ के इन लक्षणों को पहचानें

ऑपरेशन से दूर होता रीढ़ का दर्द

स्पाइन में दर्द शुरू होने पर व्यक्ति को सावधानी के तौर पर पहले दो दिन आराम करना चाहिए। हीट और कोल्ड थेरेपी के साथ दवाईयां, लोशन, स्प्रे दर्द की जगह लगाने से आराम मिलता है। इसके बाद भी न्यूरो और ऑर्थो स्पेशलिस्ट से सलाह जरूर लेनी चाहिए।

ऑपरेशन में नहीं होता कोई रिस्क

स्पाइन के असहनीय दर्द से आराम के लिए ऑपरेशन बहुत कारगर तरीका है। हालांकि इसको लेकर लोगों में गलत धारणा है कि रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन से लकवा हो जाता है। ऐसा कुछ भी नहीं है। हकीकत ये है कि ऑपरेशन के बाद वर्षो से हो रहे दर्द में 70 से 90 फीसदी आराम मिल जाता है और बीमारी आगे नहीं बढ़ती है। फिजियोथेरेपी तभी तक कारगर है जब तक स्पाइनल कॉर्ड व नसों पर दबाव कम होता है। दर्द से राहत के लिए डॉक्टरी सलाह के बाद ही एक्पर्ट फिजियोथेरेपिस्ट से फिजियोथेरेपी करानी चाहिए।

डॉ. दीपक वाधवा, न्यूरो स्पाइन सर्जन

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