मिचली-उल्टी यह गर्भावस्था में 60-70 फीसदी महिलाओं को होती है। इस दौरान दर्द निवारक दवा न लें। कब : प्रेग्नेंसी के पहले महीने के अंत में शुरू होकर तीसरे माह के खत्म होते-होते अधिक होती है।
लक्षण : बार-बार उल्टी की स्थिति को हाइपरमेसिस गे्रविडेरम कहते हैं। डिहाइडे्रशन भी हो सकता है। इलाज : डॉक्टरी सलाह से दवा लें। खाली पेट न रहें, थोड़ा-थोड़ा आहार लेते रहें। तेल, मसाले युक्तआहार न लें। भोजन, गंध, तनाव एवं उल्टी का कारण बनने वाली काम, चीजों से बचें।
चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें यदि – उल्टी के अलावा पेटदर्द, दस्त, कमजोरी, बुखार व बेहोशी छा रही हो। वजन 2.5 किलो कम हो गया हो या उल्टी में खून आ रहा हो।
एसिडिटी (रिफलक्स) 50-80 फीसदी महिलाएं यह दिक्कत महसूस करती हैं। कब : गर्भावस्था के छठे माह के बाद अधिक। लक्षण : पेट के ऊपरी हिस्से व छाती में जलन, खाना मुंह में आना, खांसी होना व मिचली महसूस होना।
इलाज : एसिडिटी बढऩे पर बिस्तर का तकिए वाला हिस्सा थोड़ा ऊपर कर लें। अधिक वसा व मिर्च वाला खाना न लें। अधिक चाय, कॉफी से बचें। खाने के एक घंटे बाद पानी पीएं। दर्द निवारक दवा न लें, ये पेट के रोगों को बढ़ा सकती हैं।
चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें यदि – खानपान में परहेज के बावजूद दिक्कत बढ़े। लंबे समय तक ऐसा रहने से पोषक तत्त्वों की कमी होने पर बच्चे पर असर पड़ सकता है। पेप्टिक अल्सर
ऐसा प्रेग्नेंसी के दौरान कम होता है। इसके मामले कुछ लेकिन गंभीर हो सकते हैं। कब : इसका कोई निश्चित समय नहीं। लक्षण : पेटदर्द, उल्टी, भूख कम लगना या वजन कम होना।
इलाज : दर्द निवारक दवाओं को लेने से बचें। खानें में फल और हरी सब्जियां आदि को शामिल करें। चिकित्सक की सलाह से एंटीएसिड या प्रोटोन पंप इंहीबिटर दवाएं लें। ये एसिडिटी व पेप्टिक अल्सर का प्रभाव कम करती हैं।
चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें यदि – खून की उल्टी होना, आंतों में रुकावट, कुछ खाने की इच्छा न होने पर डॉक्टरी सलाह लें। एंडोस्कोपी से स्थिति स्पष्ट की जा सकती है। डॉ. सुधीर महर्षि, गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, जयपुर
वीमन : प्रेग्नेंसी केयर