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यह है लाइलाज बीमारी…सेफ्टी ही बचाव है

Published: May 06, 2015 12:49:00 pm

Submitted by:

sangita chaturvedi

इसे लाइलाज बीमारी माना जाता है। बिना चोट लगे भी कोहनी, घुटना या कूल्हे आदि में आंतरिक रक्तस्राव से जोड़ सूज जाते हैं जिससे असहनीय पीड़ा होती है और विकलांगता का खतरा बढ़ जाता है। चोट या दुर्घटना की स्थिति में यह बीमारी जानलेवा साबित होती है।


हीमोफीलिया ज्यादातर पुरुषों में होने वाला आनुवांशिक रोग है जिसमें शरीर से रक्त का बहना बंद नहीं होता। इसे लाइलाज बीमारी माना जाता है। बिना चोट लगे भी कोहनी, घुटना या कूल्हे आदि में आंतरिक रक्तस्राव से जोड़ सूज जाते हैं जिससे असहनीय पीड़ा होती है और विकलांगता का खतरा बढ़ जाता है। चोट या दुर्घटना की स्थिति में यह बीमारी जानलेवा साबित होती है।


इन्हें रहता है खतरा
यह रोग किसी को भी हो सकता है अगर खून बहने पर थक्का जमाने वाले प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में न हो।

प्रमुख प्रकार


हीमोफीलिया ए में थक्का जमाने वाले क्लोटिंग फैक्टर 8 की कमी होती है।
हीमोफीलिया ए
(फैक्टर-8) प्रति 10 हजार लड़कों में से किसी एक को जन्म के समय होता है।

हीमोफीलिया बी
में थक्का जमाने वाले क्लोटिंग फैक्टर 9 की कमी होती है।
हीमोफीलिया बी का मामला प्रति 50 हजार लड़कों में से किसी एक को जन्म के समय होता है।

हीमोफीलिया सी
इसके बहुत कम मामले सामने आते हैं। यह क्रोमोजोम की कार्यप्रणाली बिगडऩे से होता है। इसमें रक्तस्राव बहुत तेज होता है।

दुनियाभर में हीमोफीलिया
उपचार लेने वाले 4 लाख से ज्यादा लोगों में रिकॉर्ड किया गया है।
इनमें से 1 लाख 60 हजार लोगों में हीमोफीलिया ए या बी प्रकार पाया गया है।

प्रतिरोधक क्षमता में कमी
15 से 25 हीमोफीलिया के मरीजों में उनके उपचार के दौरान शरीर की रक्षा करने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
नतीजा
ऐसा होने पर रोगी पर दवाइयों का कोई असर नहीं होता और धीरे-धीरे स्थिति गंभीर होने पर जानलेवा हो सकती है।

मनोवैज्ञानिक असर
29 प्रतिशत माता-पिता, बच्चे को हीमोफीलिया होने पर प्र्रोफेशन बदलने पर मजबूर हो जाते हैं।
36 प्रतिशत के मुताबिक हीमोफीलिया के कारण उनके दूसरे लोगों से संबंधों पर असर पड़ता है।
49 प्रतिशत को हीमोफीलिया के कारण आर्थराइटिस हो सकता है।
59 प्रतिशत घर में कैद होकर रह जाते हैं और उन्हें चोटों के प्रति बेहद सावधान रहना पड़ता है।
50 प्रतिशत को हमेशा दर्द का अनुभव होता है।
59 प्रतिशत माता-पिता बताते हैं कि अगर बच्चे को हीमोफीलिया की बीमारी है तो दूसरे बच्चों का उसके प्रति व्यवहार बदल जाता है।

थैरेपी और लाभ
पीढिय़ों तक खतरा
हीमोफीलिया से ग्रसित बच्चे में इसके लक्षण जन्म के समय ही नहीं दिखते। ये लक्षण तब दिखने शुरू होते हैं जब वह चलना-फिरना शुरू करता है। हीमोफीलिया के रोगी की उम्र सामान्य व्यक्ति की तुलना में कम से कम 10 साल कम होती है। ऐसे रोगी के मुंह और मसूड़े से रक्तस्राव होता है व दांत गिर जाते हैं। नाक और पेशाब के रास्ते से भी खून निकल सकता है। पाचन संबंधी समस्या भी होती है। यह रोग चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है। यह एक ऐसी बीमारी है जिससे संक्रमित होने के बाद खतरा पीढिय़ों तक बना रहता है।
फिजिकल थैरेपी
हीमोफीलिया रोगियों को योग और फिजिकल थैरेपी से मदद मिलती है। पहले चरण में इसमें मरीज को पहले योग व प्राणायाम सिखाया जाता है और फिर दूसरे चरण में कुछ खास फिजिकल एक्टिविटीज कराई जाती हैं जिससे हड्डियां एवं मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। तीसरे चरण में आंख बंद कर ध्यान लगाते हुए संतुलन बनाना सिखाया जाता है।

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