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स्वास्थ्य

उम्र के हिसाब से हार्ट को ऐसे रखें हैल्दी

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4 months ago
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भागदौड़ भरी जिंदगी में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, गड़बड़ लिपिड प्रोफाइल, बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल, अधिक वजन की समस्या से जूझ रहे हैं, तो अभी से अलर्ट होने की जरूरत है। ये सभी परेशानियां हार्ट की बीमारियों के खतरे को बढ़ाती हैं। आज के समय में 30-40 साल की उम्र में हार्ट अटैक के मामले देखने को मिल रहे हैं, इनका मुख्य कारण हमारी खराब लाइफस्टाइल है। अगर समय रहते स्थिति को नहीं संभालते हैं तो कम उम्र में हार्ट से जुड़ी बीमारियों की आशंका बढ़ जाती हैं। जानते है कि किस उम्र में किन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है।

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लक्षणों का विशेष ध्यान रखें

चक्कर आना, सीने में दर्द होना, सांस फूलना, बेहोशी छाना, अचानक तेज पसीने आना आदि गंभीर बीमारी के संकेत हो सकते हैं, इन्हें नजरअंदाज न करें। अक्सर देखा जाता है कि बुजुर्ग, महिलाओं या डायबिटिक मरीजों को चलते समय सांस फूलने की समस्या होती है, वो जल्दी थक जाते हैं। इन स्थितियों में भी डॉक्टरी सलाह लें। उनकी राय पर ध्यान दें। ये हार्ट से जुड़ी समस्याओं के संकेत भी हो सकते हैं।

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हर बार सीने में दर्द हमेशा गैस की वजह से नहीं होता

अक्सर लोगों को जब सीने में दर्द होता है, तो वो मान लेते हैं कि ये गैस की वजह से है। लेकिन ये अनुमान कई बार खतरनाक हो जाता है। अगर बार-बार सीने में दर्द होता है तो गैस मानकर खुद इलाज न करें। पहले अपने डॉक्टर को दिखाएं क्योंकि जितने भी कम उम्र में हार्ट अटैक के मामले आते हैं उसमें पहले से कुछ न कुछ लक्षण जरूर दिखते हैं जिनकी अनदेखी मरीज करता रहता था।

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30 की उम्र में ध्यान रखें
यही उम्र है जबसे आपको हैल्थ को लेकर ध्यान देना शुरू करना चाहिए। ऐसा कोई भी काम न करें जो लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों को बढ़ाए। साथ ही अपनी फैमिली हिस्ट्री की जानकारी भी होनी चाहिए। अगर हार्ट से जुड़ी बीमरियों की हिस्ट्री है तो आपको इसी उम्र से स्क्रीनिंग भी शुरू करवानी चाहिए।

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40 उम्र है तो क्या करें
इस उम्र से बीपी, शुगर आदि के भी लक्षण भी दिखने लगते हैं। देश में आधे से ज्यादा लोगों को उन्हें बीमारियों के बारे जानकारी नहीं होती है। स्क्रिनिंग करवाएं। अधिक नमक, फैटी फूड, चीनी से परहेज करें। सप्ताह में 5 पांच दिन व्यायाम करें। नशा छोड़ दें। नाश्ता जरूर करें। रोज मौसमी फल-सब्जियां खाएं।

50 उम्र है तो क्या करें
अपने डॉक्टर के संपर्क में रहें। हर छह माह में जांच करवाएं। अगर बीमारी है तो उसे नियंत्रित रखें। दवाइयां न छोड़ें।

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