स्वास्थ्य

शुुरुआती तीन महीनों में गर्भवर्ती की सोनोग्राफी से पहचानी जा सकती है शिशु की किडनी की तकलीफ

गर्भस्थ शिशु की किडनी में फ्ल्यूड भरने से फूल जाती है, इसे एंटीनेंटल फीटल हाइड्रोनेफ्रोसिस कहते हैं। यह समस्या फीमेल चाइल्ड की तुलना में मेल चाइल्ड में दो गुनी होती है। कई मामलों में ये समस्या अपने आप ही ठीक हो जाती है और डिलेवरी के पहले किसी तरह की चिकित्सीय सहायता की जरूरत नहीं पड़ती है।

Nov 05, 2018 / 06:38 pm

Ramesh Singh

शुुरुआती तीन महीनों में गर्भवर्ती की सोनोग्राफी से पहचानी जा सकती है शिशु की किडनी की तकलीफ

जयपुर. गर्भस्थ शिशु की किडनी में फ्ल्यूड भरने से फूल जाती है, इसे एंटीनेंटल फीटल हाइड्रोनेफ्रोसिस कहते हैं। इस कारण गर्भवती महिला को उत्तेजना, तनाव जैसी दिक्कतें होती हैं। यह समस्या फीमेल चाइल्ड की तुलना में मेल चाइल्ड में दो गुनी होती है।
शुरुआती तीन माह महत्वपूर्ण

इसकी पहचान गर्भावस्था के शुरूआती तीन महीनों में हो सकती है। स्त्रीरोग विशेषज्ञ 16-20 वें सप्ताह में लेवल 2 अल्ट्रा साउंड का सुझाव देते हैं, जिससे इसकी पुष्टि हो जाती है। कई मामलों में ये समस्या अपने आप ही ठीक हो जाती है और डिलेवरी के पहले किसी तरह की चिकित्सीय सहायता की जरूरत नहीं पड़ती है। स्थिति गंभीर हो या इसके कारण दूसरे तंत्र भी प्रभावित हों तो माता-पिता को जेनेटिक काउंसलिंग की जाती है।

20-30 साल की उम्र में किडनी रीनल फेलियर हो सकता

बच्चे के जन्म के पश्चात पीडियाट्रिक सर्जन बच्चे की पूरी तरह जांच करेगा कि मूत्रमार्ग में रुकावट किस स्तर पर है। माता-पिता के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि नवजात शिशुओं में इनके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे बच्चों को 20-30 साल की उम्र में रीनल फेलियर हो सकता है।

की-होल सर्जरी

पारंपरिक रूप से किडनी सर्जरी में बड़े-बड़े चीरे लगाए जाते हैं, अस्पताल में भी अधिक रूकना पड़ता है और रिकवरी में समय भी अधिक लगता है। की-होल सर्जरी में पेट के निचले हिस्से की दीवार में छोटे-छोटे छेद किए जाते हैं, इनका आकार कुछ मिलि मीटर से बड़े नहीं होता। इन छेदों से एब्डामिनल कैविटी (पेट की गुहा) में सर्जिकल इंस्ट्रुमेंट्स और लैप्रोस्कोप डाला जाता है जिसमें किडनी तक पहुंचने के लिए लाइट और कैमरा भी होता है। की-होल सर्जरी में सामान्य उतकों और आसपास के अंगों को अधिक नुकसान नहीं पहुंचता है। खून भी कम निकलता है और जटिलताएं होने की आशंका भी कम होती है। इसमें मरीज जल्दी रिकवर हो जाता है और उसे अस्पताल में अधिक नहीं रूकना पड़ता है। इस सर्जरी के पश्चात चीरे और टांकों के निशान भी नहीं दिखते इसीलिए इसे स्कारलेस सर्जरी भी कहते हैं।

-डॉ. संदीप कुमार सिन्हा, सीनियर कंसल्टेट पीडियाट्रिक सर्जरी, नई दिल्ली

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