उन्होंने कहा कि पटाखों से निकलने वाले धुएं से हमारे स्वास्थ्य पर असर तो पड़ ही रहा है, लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि पटाखों के तेज शोर से समय पूर्व प्रसव पीड़ा शुरू हो सकती है। गर्भवती महिलाओं को पटाखे जलाने से परहेज करना चाहिए। पटाखों के तेज शोर के प्रभाव को कम करने, जहरीले धुएं के जोखिम से बचनेके लिए घर के अंदर ही रहना चाहिए। पटाखों का धुआं विषैला होता है। इसमें भारी धातुएं सीसा, कैडमियम, मैगनीज, नाइट्रेट््स, तांबा सल्फर ऑक्साइड भी होते हैं। यदि प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है तो प्रसव के बाद नवजात में तंत्रिका विकास में देरी और बहरापन भी हो सकता है।
पूरे देश में पटाखों पर लगे प्रतिबंध
डॉ. यादव का कहना है कि पटाखों के जलने से प्रर्यावरण को होने वाले नुकसान के मद्देनजर पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की खरीद पर प्रतिबंध लगाया गया था। उन्होंने कहा कि केवल एक क्षेत्र में पटाखों की खरीद पर प्रतिबंध लगाने से समस्या का हल नहीं होगा। अब बगैर समय गंवाए पूरे देश में पटाखों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
खास सावधानी बरतने की जरूरत
उन्होंने कहा कि परम्परा के अनुसार दिवाली प्रकाश का पर्व है। दिए जलाए जाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में पटाखों की अंधी होड़ ने प्रकाश पर्व के स्वरूप को ही बदलकर रख दिया। पटाखों के जलने से वायु प्रदूषण के साथ-साथ जल और ध्वनि प्रदूषण हो रहा है जिससे आम लोगों विशेषकर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी होती है। उन्होंने कहा कि पटाखों से अस्थमा, गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे और बुजुर्गों को खतरा हो सकता है। इसलिए उनकी सुरक्षा को लेकर खास सावधानी बरतने की जरूरत है।
बच्चों के कानों के लिए होता है हानिकारक
उन्होंने कहा कि दिवाली पर जलने वाले पटाखों से आग लगने की घटनाओं का खतरा तो रहता ही है साथ ही बड़ी संख्या में बच्चे घायल होते हैं। पटाखों के जलाते समय जान जाने का भी खतरा रहता है। धुआं और बारूद त्वचा और बालों के लिए भी नुकसानदायक है। पटाखों के धुएं से बाल रुखे और बेजान हो जाते हैं। डॉ यादव ने बताया 120 डेसिबल से अधिक का शोर स्तर बच्चों के कानों के पर्दों के लिए हानिकारक होता है। छोटी सी गलती या लापरवाही आंखों की रोशनी आंशिक या पूर्ण रूप से ले सकती है। मानकों के अनुसार आवासीय इलाके में अधिकतम 55 डेसीबल तक ध्वनि होनी चाहिए। जबकि व्यावसायिक इलाके में 65 और इंडस्ट्रियल इलाके में अधिकतम 75 डेसीबल तक ध्वनि होनी चाहिए।
रिहायशी इलाकों में होतर है सबसे अधिक प्रदूषण
उन्होंने कहा कि दिवाली के दिन सामान्य दिनों के मुकाबले ध्वनि प्रदूषण का स्तर डेढ़ गुना अधिक हो जाता है। पटाखों की वजह से सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण रिहायशी इलाकों में होता है औैर यहीं सबसे ज्यादा नुकसान भी होता है। उन्होंने कहा कि 125 डेसिबल से अधिक आवाज वाले पटाखों पर प्रतिबंध है, लेकिन शहर में अभी भी चोरी-छिपे ये पटाखे बिक रहे हैं। इन पटाखों से सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण होता है। ऐसे पटाखों से ही अधिकतर दुर्घटनाएं होती हैं।
फट सकता है कान का पर्दा
डॉ. यादव ने कहा कि जिला प्रशासन इन पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए तमाम कवायद तो कर रहा है, लेकिन ये कवायद कारगर साबित नहीं हो पा रही है। उन्होंने बताया कि बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण सिरदर्द, थकान, अनिद्रा, श्रवण क्षमता में कमी और चिड़चिड़ापन जैसी बीमारी हो सकती है। अधिक शोर से कान का पर्दा फटने की संभावना रहती है। खासकर छोटे बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा रहता है।
उन्होंने बताया कि ध्वनि प्रदूषण के कारण मेटाबॉलिक प्रक्रिया प्रभावी होती हैं। इस प्रदूषण से एड्रीनल हार्मोन का स्त्राव भी बढऩे की संभावना रहती है। जिससे धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है। इससे प्रजनन क्षमता कम होने का खतरा रहता है। अत्यधिक तेज ध्वनि से मकानों की दीवारों में दरार आने की संभावना भी बढ़ जाती है। कई बार सीसे भी टूट जाते हैं।
कितनी ध्वनि से है खतरा
30 डेसीबल ध्वनि तक कोई नुकसान नहीं होता है। 60 डेसीबल ध्वनि दो व्यक्तियों के बातचीत जितनी होती है। इससे नुकसान नहीं है। 90 डेसीबल ध्वनि से नुकसान होता है। कान में दर्द हो सकता है। 100 डेसीबल से अधिक ध्वनि की वजह से कान का पर्दा तक फट सकता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पिछले साल के जारी आंकड़ों के अनुसार 110 डेसीबल तक ध्वनि को बर्दाश्त किया जा सकता है। उससे अधिक ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। हमेशा तेज आवाज के पटाखों से दूर रहना चाहिए। पटाखों से बढ़ा ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ जाता है।