टोरंटो विश्वविद्यालय में दंत चिकित्सा के संकाय में सहायक प्रोफेसर टारो मोरियार्टी कहते हैं कि जो लोग इस रोग से पीड़ित हैं वे वास्तव में इस बीमारी के वाहक है। अत्यधिक संक्रामक होने के कारण लाइम रोग एक व्यक्ति से किसी दूसरे में बहुत ही जल्दी फैलता है। यदि कोई व्यक्ति लाइम रोग से पीड़ित हो तो लक्षणों के आधार पर भी आसानी से पता नहीं लग पाता जिसके कारण सही समय पर सही चिकित्सा नहीं मिल पाती और पीड़ित व्यक्ति अन्य लोगों के लिए भी खतरा बन जाता है।
कनाड़ा जैसे देश जहां लाइम रोग बहुत ही आम रोग की तरह है, वहां यह मुद्दा और भी जटिल और पेचीदा हो जाता है। कनाडा लाइम डिजीज फाउंडेशन के अनुसार कई मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति के अंदर लाइम वायरस प्रवेश करने के बाद कई सालों तक खामोश पड़ा रहता है और बाद में अचानक एक्टिव हो उठता है, ऐसे में रोग का पता नहीं चलता और न ही उसका उपचार हो पाता है। नतीजे के रूप में बीमारी पर रोकथाम करने के सभी उपाय नाकाम हो जाते हैं।
वर्तमान में कनाडा में नैचुरोपैथी फिजीशियन भी इस बीमारी से निपटने में समुचित सहयोग दे रहा है। हालांकि उनके पास अभी लाइसेंस नहीं है लेकिन फिर भी वो आवश्यक टेस्ट करके लाइम रोग को बढ़ने से रोक रहे हैं। फिलहाल एंटी-बॉयोटिक दवाईयों के प्रयोग से इस बीमारी को फैलने से रोका जा रहा है। लेकिन चिकित्सकों के अनुसार कुछ सावधानियां बरत कर तथा समय-समय पर टेस्ट करवा कर भी इस बीमारी को फैलने से रोक सकते हैं।