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malaria से बचाएगी नेचुरोपैथी, जानें गिलोय-तुलसी का नुस्खा

Published: Apr 25, 2016 02:52:00 pm

Submitted by:

sangita chaturvedi

#World Malaria Day 2016 (25 अप्रेल) पर जानिए इससे बचने के नेचुरोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक उपचार, जो हैं बेहद कारगर…


गर्मी तेवर दिखा रही है। अब बारिश के साथ मलेरिया फैलने का समय भी करीब है। यह रोग प्लाजमोडियम समूह के प्रोटोजोआ परजीवी से फैलता है। इसका वाहक मादा एनाफिलीज मच्छर होता है। स्वच्छता ही इसे रोकने का एकमात्र उपाय है। मलेरिया, प्लाजमोडियम परजीवी की पांच प्रजातियों (प्ला. वाइवेक्स, प्ला. फैल्सीपैरम, प्ला. मलेरी, प्ला. ओवेल व प्ला. नोलेसी) से फैलता है। इनमें सबसे खतरनाक वाइवेक्स और फैल्सीपैरम हैं जो फेफड़ों और किडनी को प्रभावित करने के अलावा रक्त में प्लेटलेट्स की मात्रा घटाकर जानलेवा तक हो सकते हैं।


तीन तरह का होता मलेरिया : कई अंगों को करता प्रभावित
सामान्य मलेरिया : इसमें मच्छर के काटने के 10-21 दिनों में लक्षण दिखने लगते हैं। मरीज को अत्यधिक सर्दी लगना, कंपकंपी, सिरदर्द, उल्टी, बदनदर्द व तेज बुखार के साथ पसीना आता है। दवा देने पर 5-10 दिन में मरीज ठीक हो जाता है। लेकिन यदि परजीवी की वाइवेक्स या मलेरी प्रजाति शरीर में फैल रही है तो ठीक होने के बाद लक्षण दोबारा दिखने लगते हैं।
गंभीर मलेरिया : शरीर में परजीवी की संख्या बढऩे से लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम होने लगती है। इससे प्लेटलेट्स की संख्या 50 हजार से भी कम हो जाती है। कई बार विभिन्न अंग प्रभावित होते हैं। दिमाग पर असर होने से बेहोशी, कोमा, दौरे या न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर हो सकते हैं। किडनी को नुकसान होने से पेशाब न बन पाना और किडनी फेल होने से शरीर में गंदगी इकट्ठी होने लगती है। फेफड़ों में पानी भरने व इस अंग में संक्रमण की आशंका बढ़ती है जिसे पल्मोनरी एडीमा कहते हैं। सांस लेने में तकलीफ होती है और लिवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने से लिवर एंजाइम्स नहीं बन पाते व पीलिया की शिकायत रहती है। मरीज को भर्ती कर बुखार उतारने के बाद रेडिकल केयर के रूप में 14 दिन तक प्राइमाक्यूनीन दवा देते हैं ताकि यह दोबारा न हो।

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क्रॉनिक मलेरिया : अफ्रीका व दक्षिण पूर्वी इलाकों में मलेरिया के परजीवियों का घनत्व ज्यादा होने के साथ सालभर प्रकोप रहता है। यहां क्रॉनिक मलेरिया के मरीज ज्यादा होते हैं, इन्हें तिल्ली के बढऩे व एनीमिया की दिक्कत रहती है।
ऐसे फैलता संक्रमण
सबसे पहले लिवर पर असर

मलेरिया से पीडि़त व्यक्तिको काटने से उसके शरीर में मौजूद प्लाजमोडियम परजीवी मच्छर की लार में आ जाता है और स्वस्थ व्यक्तिको काटने पर यह उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है। रक्त में लार के प्रवेश करने के 48-72 घंटे बाद लिवर को नुकसान होता है।
प्लाजमोडियम परजीवी लिवर के बाद दोबारा रक्त वाहिकाओं में फैलने लगता है।
परजीवी लाल रक्त कणिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट कर अपनी संख्या बढ़ाते हैं।
संख्या के बढ़ऩे से शरीर के अन्य अंग जैसे किडनी, फेफड़े व दिमाग पर असर दिखने लगता है।
जांच व इलाज
जांच : मलेरिया का पता लगाने के लिए पहले रेपिड एंटीजन टैस्ट करते हैं। फिर पैरिफेरल ब्लड फिल्म (पीबीएफ) टैस्ट होता है जिसमें परजीवी के प्रकार की पहचान होती है।
इलाज : आर्टिसुनेट, क्लोरोक्यूनीन, आर्टिमीथीर व क्यूनीन दवा देते हैं। यदि मरीज दवा न खा सके तो इन्ट्रावीनस (आईवीएम) या इन्ट्रामस्कुलर इंजेक्शन से दवा देते हैं।
प्रिवेंटिव डोज : डॉक्टरी सलाह के बाद ही कीमोप्रोफाइलेक्सिस दवा दी जाती है। एंटीमलेरियल वैक्सीन क्रञ्जस्,स्/्रस्01 का प्रायोगिक स्तर पर शोध जारी है।
खानपान: मरीज को लिक्विड डाइट के अलावा मौसमी फल, दलिया या खिचड़ी दें। तली-भुनी, मसालेदार व ठंडी चीजें न दें।

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होम्योपैथी में प्रिवेंटिव डोज की सलाह

जिस समय मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप ज्यादा हो या व्यक्ति को सर्दी लगने के साथ कंपकंपी व हल्का बुखार जैसा महसूस हो तो विशेषज्ञ मलेरिया ऑफिसिनेलिस और आर्स एल्ब दवा प्रिवेंटिव रूप से लेने की सलाह देते हैं। दोनों में किसी एक दवा को हफ्ते में एक बार 200 पोटेंसी में ले सकते हैं।

ऐसे करें रोकथाम
मच्छरदानी का प्रयोग, आसपास गंदा पानी जमा न होने देना मलेरिया से बचाता है। इसके अलावा प्राकृतिक तरीकों से मच्छरों से बचाव के साथ इनके प्रभाव को सावधानी बरतकर कम कर सकते हैं।
धुआं करें : कर्पूर, जटामासी, नीम, तुलसी व जामुन की पत्तियों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में मिलाकर जला लें व घर में सूर्यादय/सूर्यास्त के समय धुआं करें। मच्छर दूर भागेंगे।
मालिश : नीम व नारियल का तेल और कर्पूर को मिलाकर त्वचा के खुले हिस्सों पर मालिश करें।
चटनी के रूप में : आधा चम्मच कलौंजी के पाउडर को एक चम्मच शहद के साथ दिन में 3-4 बार चाटें।
फिटकरी : अत्यधिक ठंड व बुखार लगे तो फूली हुई फिटकरी की 1/4 चम्मच की मात्रा को एक चम्मच चीनी के साथ खा लें। इसके लिए फिटकरी को पीसकर तवे पर सेकें। इससे लिवर व आंतों की कार्यप्रणाली में सुधार होने के साथ कोई संक्रमण है भी तो उसका असर कम होगा। आंतों में घाव या अल्सर वाले इसे न खाएं।

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नैचुरोपैथी : उपाय
काढ़ा : गिलोय (10 ग्राम), तुलसी (5-10 पत्ते), कुटकी, चिरायता, हल्दी व सौंठ (चुटकीभर) व 5 कालीमिर्च को दो गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। आधा बचने पर इसे गुनगुना पिलाएं। रोजाना दिन में 3-4 बार करें।
गर्मपादस्नान : इसे हॉट फुट बाथ भी कहते हैं। एक बाल्टी में सहने योग्य गर्म पानी में एक चम्मच फिटकरी मिलाकर रोगी को घुटनों से नीचे के हिस्से को डुबाने के लिए कहें। इस दौरान शरीर का ऊपरी हिस्सा अच्छे से ढका होना चाहिए।


आयुर्वेदिक उपचार
अक्सर इस्तेमाल होने वाले रेपलेंट क्रीम, कॉइल, लिक्विड फिलर व कीटनाशक का छिड़काव मच्छरों से बचाव तो करते हैं। लेकिन इनके लंबे समय तक प्रयोग से इनमें मौजूद कैमिकल शरीर के साथ दिमाग की कोशिकाओं पर भी बुरा असर डालते हैं। इस असर को रोकने के लिए सरसों, नीम व नमक को बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बना लें। एक लोहे के बर्तन में कोयला/गोबर के कंडे जलाकर उस पर यह पाउडर छिड़क कर धुआं करने से मच्छर भाग जाएंगे। जिन्हें इन चीजों से एलर्जी हो, वे सावधानी से इन्हें उपयोग में लें। घर में तुलसी, लेमनग्रास, लेवेंडर आदि पौधे मच्छरों से बचाव करते हैं।
– डॉ. प्रताप चौहान, आयुर्वेद विशेषज्ञ
– डॉ. एम. एल. जैन मणि, होम्योपैथी विशेषज्ञ
– वैद्य भानु प्रकाश शर्मा, नेचुरोपैथी विशेषज्ञ
– डॉ. रामजी शर्मा, सहायक आचार्य, मेडिसिन विभाग, एसएमएस अस्पताल, जयपुर


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