छोटी-छोटी बातों पर झगड़े को उतारू
संस्था के निदेशक और सेवानिवृत्त मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ. एल.के. सिंह के मुताबिक, उच्च बौद्धिक क्षमता वाले 60 फीसदी बच्चों की सोच डिस्ट्रक्टिव (हानिकारक, विनाशकारी) पाई गई। ये अपने माता-पिता का कहना ही नहीं मान रहे हैं। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा और मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। दोपहर 12 बजे या बाद तक सोते रहते हैं। इनके पास से मोबाइल कोई नहीं हटा सकता। इसके बाद केवल नेट सर्फिंग करते हैं। गलत चीजें सीखते हैं।
संस्था के निदेशक और सेवानिवृत्त मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ. एल.के. सिंह के मुताबिक, उच्च बौद्धिक क्षमता वाले 60 फीसदी बच्चों की सोच डिस्ट्रक्टिव (हानिकारक, विनाशकारी) पाई गई। ये अपने माता-पिता का कहना ही नहीं मान रहे हैं। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा और मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। दोपहर 12 बजे या बाद तक सोते रहते हैं। इनके पास से मोबाइल कोई नहीं हटा सकता। इसके बाद केवल नेट सर्फिंग करते हैं। गलत चीजें सीखते हैं।
खुद संभाले, बाद में मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएं
माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों के बीच ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। इनकी मनोरंजन में हिस्सेदारी बढ़ाएं। वीडियो गेम्स की जगह सीरियल देखने को कहें। इनका उत्साहवर्धन करते रहें। कोरोना से डराएं नहीं, बल्कि कहें कि जल्द खत्म हो जाएगा। दोस्तों के पास जाने की छूट दें। दोस्तों को आने से न रोकें। इन पर निगाह रखें। खुद रिश्तेदारों या परिचितों के यहां साथ लेकर जाएं। मौका मिलने पर मोबाइल की हिस्ट्री में झांकते रहें। यदि बच्चा अकेलेपन में जीना जा रहा है तो यह एक संकेत है। इसे भांपते ही मनोवैज्ञानिकों के पास ले जाएं और उसकी काउंसिलिंग कराएं।
माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चों के बीच ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। इनकी मनोरंजन में हिस्सेदारी बढ़ाएं। वीडियो गेम्स की जगह सीरियल देखने को कहें। इनका उत्साहवर्धन करते रहें। कोरोना से डराएं नहीं, बल्कि कहें कि जल्द खत्म हो जाएगा। दोस्तों के पास जाने की छूट दें। दोस्तों को आने से न रोकें। इन पर निगाह रखें। खुद रिश्तेदारों या परिचितों के यहां साथ लेकर जाएं। मौका मिलने पर मोबाइल की हिस्ट्री में झांकते रहें। यदि बच्चा अकेलेपन में जीना जा रहा है तो यह एक संकेत है। इसे भांपते ही मनोवैज्ञानिकों के पास ले जाएं और उसकी काउंसिलिंग कराएं।