धूम्रपान, रसोई गैस व परफ्यूम-डियो स्प्रे आदि से घरों के अंदर होने वाला वायु प्रदूषण (इंडोर एयर पॉल्यूशन) लोगों को अस्थमा, फेफड़ों संबंधी बीमारी, हृदय रोग जैसी समस्याओं की चपेट में ला रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में इंडोर एयर पॉल्यूशन के कारण प्रतिवर्ष करीब 43 लाख लोगों को जान गंवानी पड़ती है। यह समस्या सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी देखी जा रही है।
प्रदूषण का खतरा घर के भीतर भी है। शोध बताते हैं कि बंद घरों या कमरों (बहुमंजिला इमारतें या फ्लैट) में लगातार रहने से कई बीमारियों का खतरा बढ़ता है। धूम्रपान, रसोई गैस व परफ्यूम-डियो स्प्रे आदि से घरों के अंदर होने वाला वायु प्रदूषण (इंडोर एयर पॉल्यूशन) लोगों को अस्थमा, फेफड़ों संबंधी बीमारी, हृदय रोग जैसी समस्याओं की चपेट में ला रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में इंडोर एयर पॉल्यूशन के कारण प्रतिवर्ष करीब 43 लाख लोगों को जान गंवानी पड़ती है। यह समस्या सिर्फ शहरों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी देखी जा रही है। जानते हैं इसके बारे में-
यूं होता है प्रदूषण
शहरों में : रसोई गैस व ओवन आदि से निकलने वाली गैसों से। घरों के अंदर धूम्रपान व साफ-सफाई के दौरान। डिओ, स्प्रे व परफ्यूम आदि से।
गांवों में : कंडे, लकड़ी व कोयले आदि के धुएं से। अनाज की सफाई के दौरान।
ऐसे फैलती है बीमारियां
छोटे व बंद फ्लैटों में झाड़ू लगाते समय कीटाणुओं के आंख-नाक-मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करने, वहीं गांवों में घर के अंदर ही अनाज के रखरखाव व सफाई के दौरान एलर्जी, अस्थमा आदि की समस्या हो सकती है। बंद घरों में वेंटीलेशन के अभाव में रसोई गैस, ओवन से निकलने वाली हानिकारक गैस घरों में ही रहने से, वहीं गांवों में रसोई में ही चूल्हे, अंगीठी आदि के प्रयोग से निकलने वाले धुएं से फेफड़ों की समस्या बढ़ सकती है। घरों में बीड़ी, सिगरेट का धुआं, डिओ, परफ्यूम आदि सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचकर सिकुडऩ व हृदय संबंधी रोगों को बढ़ाते हंै।
रोगों का खतरा
लंग कैंसर, हृदय व सांस संबंधी तकलीफ, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, आर्थराइटिस, स्ट्रोक आदि।
बचाव
दिन में घर के खिड़की-दरवाजे खोलकर रखें। रसोई लिविंग रूम से अलग व हवादार हो। गांवों में चूल्हे, अंगीठी आदि का प्रयोग खुले स्थान पर करें। अनाज रखने की व्यवस्था घर से अलग किसी एेसे स्थान पर करें जहां हवा का उचित प्रबंध हो। डिओ, स्प्रे आदि का सीमित प्रयोग करें। रोजाना कम से कम दस मिनट बाहरी वातावरण में टहलें। बच्चों को बाहरी गतिविधियों के लिए प्रेरित करें।