डॉ. निष्ठा बताती हैं कि लंबी सिटिंग से कई बार पैरों की नसों में खून के थक्के जमने लगते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकते हैं। थक्के जमने की इस समस्या को डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) कहते हैं। ये थक्के कई बार ब्लड के प्रवाह के साथ बहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी चले जाते हैं। यदि ये पल्मोनरी आर्टरी में चले जाएं तो डीवीटी की समस्या पल्मोनरी एम्बोलिज्म का रूप ले सकती है।
पल्मोनरी एम्बोलिज्म को समझें कई बार ये थक्के खून के साथ मिलकर पल्मोनरी आर्टरी में चले जाते हैं, ऐसे में उस धमनी में रक्त संचार अवरुद्ध होने के साथ शरीर में आॅक्सीजन की कमी हो सकती है। यह स्थिति पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहलाती है। चूंकि पल्मोनरी आर्टरी हृदय से फेफड़ों तक जाती है, इसलिए फेफड़ों के साथ यह हृदय को भी नुकसान पहुंचा सकती है। इसके अलावा कई बार ये ब्रेन में पहुंच जाती है जिससे व्यक्ति को ब्रेन हेमरेज हो सकता है। इसलिए क्लॉट को समय रहते हटाना जरूरी होता है। क्लॉट बड़ा हो या एक से ज्यादा हो और मरीज को सही इलाज समय पर न मिल सके, तो उसकी जान भी जा सकती है। समय रहते इलाज न मिलने के कारण करीब एक तिहाई मरीज जान गवां बैठते हैं।
ये हैं प्रमुख लक्षण अन्य बीमारियों की तरह इसके विशेष लक्षण नहीं होते इसलिए इसे समय रहते पहचान पाना मुश्किल होता है। आमतौर पर सांस लेने में दिक्कत को इसका प्रमुख लक्षण माना जाता है। इसके अलावा हृदय गति अनियमित होना, सांस में आवाज, अत्यधिक पसीना, घबराहट, त्वचा में पीली या नीली पड़ना छाती के मध्य में तेज दर्द होना, पेट में दर्द जो कि कंधे तक फैल सकता है, गर्दन, जबड़ों और कमर में दर्द होना आदि लक्षण दिख सकते हैं।
ऐसे होती है पहचान क्लॉटिंग देखने के लिए डी—डायमर टेस्ट कराया जाता है। इसके बाद छाती के सीटी स्कैन और सीटी एंजियोग्राफी के जरिए पता किया जाता है कि पल्मोनरी एम्बोलिज्म की स्थिति है या नहीं। उसके आधार पर इलाज होता है।
इनको रिस्क ज्यादा पल्मोनरी एम्बोलिज्म की फैमिली हिस्ट्री हो, पैर या हिप में फ्रेक्चर, मेजर सर्जरी हुई हो, लंबी सिटिंग, या फिर किसी अन्य कारण से लंबे समय तक पैरों का मूवमेंट न कराया हो, इन स्थितियों में पल्मोनरी एम्बोलिज्म का रिस्क काफी बढ़ जाता है।
ये है इलाज एंटीक्वाग्युलेंट दवाएं देकर क्लॉट हटाया जाता है। यदि किसी कारण से दवाओं से स्थिति नियंत्रित न हो तो सर्जरी भी की जा सकती है। ऐसे करें बचाव इस तरह की समस्या से बच सकें या फिर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए लगातार लंबी सिटिंग न करें। बीच—बीच में थोड़ा चल लें। यदि बेड पर हैं तो पैरों के टखनों को आगे—पीछे घुमाकर दिन में पांच या छह बार एक्सरसाइज करें। लंबी यात्रा के दौरान अपनी स्थिति को बदलते रहें। घुटने के नीचे तकिए का इस्तेमाल न करें। नियमित योग व व्यायाम करें। खाने में ज्यादा नमक न खाएं।