केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार नींद बच्चों के मस्तिष्क के विकास में प्रमुख भूमिका निभाती है। माता-पिता की बदलती जीवन शैली के कारण बच्चों के स्लीपिंग ऑवर्स भी काफी कम हो गए हैं। स्कूल जाने वाले 6 से 12 साल तक के बच्चों के लिए 9-12 घंटे की नींद जरूरी है और 13 से 18 साल के किशोरों को 8 से 10 घंटे की नींद लेनी ही चाहिए। बच्चे देर रात तक जागते हैं और सुबह 6-7 बजे स्कूल के लिए उठ नहीं पाते।
जो बच्चे पर्याप्त नींद नहीं ले पाते उनकी कल्पना शक्ति दूसरे बच्चों की तुलना में कम होती है। कक्षा में वे चीजें समझ नहीं पाते। सोचने-समझने की शक्ति कम हो जाती है। बच्चों के सोने का एक निर्धारित समय होना चाहिए। जिससे बच्चों का स्लीप टाइम टेबल बन सके। कम नींद लेने वाले बच्चे क्रोधित और अति सक्रिय हो सकते हैं। कम नींद लेने से ध्यान देने की क्षमता भी कम होती है।
वैसे तो सबसे अच्छा समाधान हैं पैरेंट्स भी जल्दी सोने की आदत डालें, लेकिन यदि पैरेंट्स ऐसा नहीं कर पा रहे हैं,तो कम से कम बच्चों को जल्दी सुलाने की आदत डालनी चाहिए। बच्चों का टाइम टेबल सेट करें। इससे भी काफी सुधार देखने को मिलेगा।