गौरतलब है कि साल 1988 से पहले बनी एफडीसी पर प्रतिबंध के आदेश के खिलाफ प्रभावित फार्मा कंपनियों की याचिका पर न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा की खंडपीठ ने मामला निपटने तक इन दवाइयों पर से प्रतिबंध हटाते हुए केंद्र से जवाब मांगा था। खंडपीठ एफडीसी दवाइयों के लाइसेंसों की वैधता के मामले की सुनवाई कर रही है।
प्रतिबंध पर सवाल करते हुए कंपनियों ने इससे पहले कहा था कि सरकार की अधिसूचना में सिर्फ यही कारण था कि दवाइयों के संयोजन में कोई उपचारात्मक तत्व नहीं था। 328 एफडीसी दवाइयों को प्रतिबंधित करने के केंद्र के फैसले से सामान्य दवाइयों सहित लगभग 6,000 दवाइयों को निशाने पर ला दिया था।
इस सूची में पिरामल की दर्द निवारक सेरीडॉन, मैक्लीओड्स फार्मा की पैंडर्म प्लस क्रीम, एल्केम लैबोरेटरीज की जीवाणुरोधी टैक्सिम एजेड और मधुमेह की दवाई ग्लूकोनोर्म पीजी हैं। ‘ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क’ ने हालांकि सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा करते हुए कहा था कि सरकार ने सही निर्णय लिया है, क्योंकि प्रतिबंधित दवाएं वास्तव में हानिकारक थीं और चिकित्सीय किताबों में इन्हें नहीं बताया गया है।