गोमुखासन
गोमुखासन के लिए बैठकर पैरों को आगे फैलाएं। हाथों को बगल में रखें। बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं कूल्हे के पास रखें। दाहिने पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर एक-दूसरे से स्पर्श करते हुए रखें। फि र सांस भरते हुए दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर दाहिने कंधे को ऊपर खींचते हुए हाथ पीठ की ओर ले जाएं। बाएं हाथ को पेट के पास से पीठ के पीछे से लेकर दाहिने हाथ के पंजें को पकड़ें। गर्दन, कमर सीधी रखें। यह आधा चक्रहुआ। अब पांवों व हाथों की स्थिति बदलते हुए इसे दोहराएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
लाभ : हाथ-पैरों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। कंधे, गर्दन की अकडऩ, कमर व पीठ दर्द, फेफड़ों, कब्ज, मधुमेह, तनाव में आराम मिलता है। सांस की तकलीफ में आराम मिलता है। हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डी की परेशानी में यह आसन न करें।
अनुलोम-विलोम
इस प्राणायाम को करने के लिए शांत जगह बैठ जाएं। दाएं हाथ के अंगूठे से दाएं हाथ की नाक को बंद करें। अब बाएं नाक के छिद्र से सांस को अंदर की ओर लें। इसके बाद दायीं नाक से अंगूठा हटाकर सांस को बाहर की ओर छोड़ें। यह प्रक्रिया प्रतिदिन चार-पांच बार कर सकते हैं।
लाभ : इस प्राणायाम से सांस की प्रक्रिया सामान्य होती है। दिमाग शांत रहता है। अनिद्रा, आंखों की रोशनी, हृदय और फेफ ड़ों संबंधी समस्या में फायदेमंद है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह के मरीज व गर्भवती महिलाएं चिकित्सक की परामर्श से अनुलोम-विलोम प्राणायाम का अभ्यास करें।
पदधीरासन
पदधीरासन करने के लिए पहले वज्रासन मुद्रा में बैठ जाएं। घुटनों को पीछे की ओर मोड़कर बैठें। चित्रानुसार हाथ के अंगूठे को बाहर की ओर रखते हुए दायीं हथेली को बायीं ओर बगल में और बाईं हथेली को दाईं ओर बगल में रखें। आंखें बंद कर ध्यान सांस की तरफ केंद्रित करें। दाईं नाक बंद होने पर दाईं हथेली से बाईं बगल में दबाएं। बाईं नाक बंद हो तो बाईं हथेली से दाईं बगल में दबाएं। इस क्रिया को नियमित पांच-दस मिनट दोहराएं।
लाभ : इस आसन के अभ्यास से बंद नाक खुलती है। दोनों स्वर एक साथ चलने पर मानसिक स्थिरता आती है। जब एक नाक बंद हो या एक ही स्वर चल रहा हो तब पदाधीरासन का अभ्यास करना चाहिए। आर्थराइटिस, घुटनों के दर्द में इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
जल नेति
जल नेति के लिए तांबें का नली वाला लौटा लें। हल्के गुनगुने पानी में नमक मिलाकर डाल लें। अब नाक के एक छेद में नली से धीरे-धीरे पानी डालें और मुंह से सांस लें। साथ ही यह पानी नाक के दूसरे छेद से लगातार निकलना चाहिए। इस दौरान मुंह खुला रखें। इसके बाद इस प्रक्रिया को नाक के दूसरे छेद से दोहराएं। शुरुआत में इसे विशेषज्ञ की निगरानी में करें। नियमित तीन से चार बार इस प्रक्रिया को दोहरा सकते हैं।
लाभ : साइनस, याददाश्त, माइग्रेन, असमय सफेद हो रहे बालों, अनिद्रा आंख में दिक्कत, सांस संबंधी तकलीफ में आराम मिलता है। जल नेति क्रिया प्रयुक्त पानी में नमक की मात्रा ज्यादा होने से चक्कर आ सकता है।
डॉ. रवि कुमार,
योग विशेषज्ञ,
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर