ऐसा पाया गया है कि विभिन्न बीमारियों जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हृदय संबंधी रोग, पुरानी सांस की बीमारी और पुराने किडनी रोग के वृद्ध अगर कोविड-19 से संक्रमित हो जाते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ जाए तो उन्हें अधिक खतरा होता है। नोवेल कोरोना वायरस शरीर की रेनिन-एंजियोटेंसिन-एल्डोस्टेरॉन धुरी पर असर डालता है और उसे मानव शरीर की कोशिका में प्रवेश करने के लिए एंजियोटेंसिन से बनने वाले एंजाइम पर निर्भर रहना पड़ता है। इसकी सटीक प्रक्रिया पर अभी भी खोज जारी है और उसका विश्लेषण चल रहा है। इस रोग में हाइपरटेंशन की दवाओं के इस्तेमाल के बारे अभी भी विचार चल रहा है और इस बात के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिनकी बदौलत एसीई-इनहिबिटर या एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर दवाओं के इस्तेमाल के बारे में कोई समझ बन पाए। कोविड-19 के संक्रमण का असर शरीर के ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म पर भी पड़ता है। पहले से डायबिटीज रोग से पीडि़त मरीजों के लिए जरूरी है कि उनके शुगर लेवल पर सख्त नियंत्रण रखा जाए।
किसी व्यक्ति में संक्रमण के खतरे को कम करने के लिए बहुत जरूरी है सोशल डिस्टेंसिंग या शारीरिक दूरी और साफ-सफाई के अलावा हाथों को धोना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावाए दूसरों से बात करते समय हमेशा मास्क पहनना भी आवश्यक है। एन-95 मास्क ही नहीं बल्कि संक्रमण को रोकने के लिए किसी भी तरह के मास्क को पहनना बेहतर हैं बजाय इसके कि मास्क पहना ही न जाए। यह भी जरूरी है कि जितना अधिक संभव हो सके, घर के अंदर ही रहा जाए और बाहर जितना कम से कम हो सके जाया जाए। संक्रमण के फैलाव को रोकने और स्वास्थ्य सेवाओं को ढहने से बचाने के लिए भी ऐसा जरूरी है। ऐसी भी खबरें हैं जिनमें दावा किया गया है कि आमतौर पर डायबिटीज और हाइपरटेंशन के मरीजों के कुछ तरह के इलाज जैसे कि एसीई इनहिबिटर्स से वे कोरोना वायरस को लेकर और संवेदनशील हो जाते हैं। लेकिन एसीई इनहिबिटर्स और एंजियोटेंसिन रिसेप्टर ब्लॉकर्स को लेकर किए जा रहे इन दावों के बारे में निर्णायक तौर पर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
वैक्सीन को विकसित करना एक धीमी प्रक्रिया है और उस पर अमल बहुत ही सावधानी के साथ योजनाबद्ध तरीके से किया जाता है। इसमें कोई दोराय नहीं कि हाल के समय में संभावित वैक्सीन को विकसित करने के उद्देश्य से काफी कुछ किया जा रहा है। लेकिन, महामारी के इस पहले दौर में इसकी रोकथाम के लिए किसी वैक्सीन की उम्मीद पालना अव्यावहारिक होगा। पिछले दशकों में वैक्सीन के विकास की प्रगति के बावजूद मानव शरीर के लिए कोविड-19 जैसे एकदम नए वायरस के लिए जो वैक्सीन बनेगीए उसमें सुरक्षाए उसके प्रभाव और लगातार एंटीबॉडीज की उपलब्धता का ध्यान रखना होगा और मानव पर इस्तेमाल से पहले उसका जानवरों पर परीक्षण करना होगा।
हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि नोवेल कोरोनावायरस शरीर में लिंफोसाइट पर असर डालता है। वायरस से निपटने के लिए जिन विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोणों पर काम चल रहा हैए उनमें शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने वाली थैरेपी में रोग से उबर रहे मरीजों के शरीर से निकाली गई एंटीबॉडीज के इस्तेमाल और पहले से स्थापित कीमोथेरोपी के इस्तेमाल पर निगाह रखी जा रही है। ऐसी भी खबरें हैं जिसमें विटामिन डी की भूमिका को भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है और वैकल्पिक और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में कई तरह के नजरिए पेश किए गए हैं। लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नही हैं कि इसमें से कोई भी तरीका मानव शरीर में इस वायरस को रोकने में पक्के तौर पर कारगर कहा जा सके। कोविड-19 रोगियों को सूंघने की शक्ति के अभाव या स्वाद की क्षमता को खो देने के लक्षणों से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। सहज तौर पर देखें तो इसकी वजह से भूख कम हो सकती है और मामूली संक्रमण के मामलों में भी मरीज खाना कम कर सकता है। ऐसे में स्वस्थ, पौष्टिक और संतुलित आहार लेना, पर्याप्त नींद लेना, तनाव कम करना, प्रतिदिन व्यायाम और दिनचर्या का पालन करना लाभदायक होता है।