पांच सौ वर्ष पूर्व लोग अपने पशुओं को चराने एवं पशु चारा लेने के लिए यहां आते थे। मंदिर को लेकर प्रचलित दंत कथा के अनुसार एक दिन एक महिला जब घास खोदने लगी तो उसका खुरपा एक पत्थर से जा टकराया और पत्थर से खून बहने लगा। यह देख वह घबरा गई। उसने गांव जाकर लोगों को यह बात बताई। तब ग्रामीण उस स्थल पर गए और पत्थर को निकालने के लिए खुदाई शुरू कर दी। लेकिन ग्रामवासी जितना भी खुदाई करते पत्थर उतना ही नीचे धसता गया। इस पहेली को सुलझाने के लिए ग्रामीणों ने उस समय के विद्वान पंडित हुकुमचंद वत्स को बुलाया। पंडितजी ने सारी बात सुनकर कहा की यह तो स्वयंभू प्रकट महादेव हैं। लिंगरूप में विराजमान हैं। उनके निर्देश पर शिवलिंग की पूजा अर्चना करके एक मंदिर की स्थापना की गई। उस समय सूखा पड़ा हुआ था। मंदिर स्थापना के बाद भारी वर्षा हुई तो लोगों की आस्था ओर बढ़ गई। समय समय पर अनेक चमत्कार हुए जिससे मंदिर के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती ही गई।
प्राचीन शिवमंदिर में अनेक राज्यों से लोग यहां आकर पूरे श्रावण मास जल चढ़ा कर धर्म लाभ प्राप्त करते है। ईंछापुरी रेलवे स्टेशन के नजदीक होने से दिल्ली- गुरुग्राम, रेवाड़ी, राजस्थान व उत्तरप्रदेश राज्यों के श्रद्धालु ट्रेन के द्वारा पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। प्रत्येक सोमवार को यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है।
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प्राचीन शिवमंदिर में अनेक राज्यों से लोग यहां आकर पूरे श्रावण मास जल चढ़ा कर धर्म लाभ प्राप्त करते है। ईंछापुरी रेलवे स्टेशन के नजदीक होने से दिल्ली- गुरुग्राम, रेवाड़ी, राजस्थान व उत्तरप्रदेश राज्यों के श्रद्धालु ट्रेन के द्वारा पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। प्रत्येक सोमवार को यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है।
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