शमी शमयते पापं शमी लोहितकंटका। धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।।
इन दोनों श्लोकों के उच्चारण के साथ ही मानसिक रूप से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि “शमी सभी पापों को नष्ट करती है। शत्रुओं का समूल विनाश करती है। शमी के कांटे हत्या इत्यादि के पापों से भी रक्षा करती है। अर्जुन के धनुष को धारण करने वाली और श्रीराम की प्रिय शमी मेरा कल्याण करे।” हमारी संस्कृति में शमी को पवित्रतम वृक्ष माना गया है, कदाचित यही कारण रहा था कि हनुमानजी ने माता सीता को शमी वृक्ष के समान पवित्र कहा था। इसी कारण शमी वृक्ष का पूजन करने से पतिव्रता स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उनके परिवार में खुशियां आती हैं। लिहाजा महिलाओं को दशहरे को शमी पूजन जरूर करना ही चाहिए।
इस दिन मनाएं यात्रा पर्व
आश्विन शुक्ल दशमी को शास्त्रों ने विजय दशमी के रूप में मान्यता प्रदान की है। ज्योतिष शास्त्र में इस तिथि का ग्रहण सूर्योदय के पहले की तारों की छांव में ही माना गया है। इसका मतलब है कि सूर्योदय से पहले ही जिस समय दशमी तिथि प्रारंभ हो जाए, उसी दिन विजय दशमी मानी जाती है।
विजय दशमी किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए यात्रा प्रारंभ करने में सर्वाधिक प्रशस्त है। परंतु विजय यात्रा के लिए दिन के “ग्यारहवें मुहूर्त” में ही प्रस्थान करना चाहिए। एक मुहूर्त का समय शास्त्रों में दो घटी यानी 48 मिनट माना गया है। इस ग्यारहवें मुहूर्त का नाम ही “विजय” है। इस “विजय” नामक मुहूर्त से युक्त होने के कारण ही आश्विन शुक्ल दशमी को “विजय दशमी” कहा जाता है। यदि दशमी तिथि क्षय तिथि के रूप में आ जाए तो श्रवण नक्षत्र से विजय दशमी तिथि को ग्रहण करना चाहिए।
विजय दशमी को समस्त कामनाओं की पूर्ति, खासकर विजय प्राप्ति के लिए भगवान श्रीराम के ध्यान के साथ ही “रामरक्षास्तोत्र” के पाठ करने या करवाने चाहिए।
संस्कार से जुड़े कार्यो जैसे नामकरण, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत आदि के अलावा सभी मांगलिक कार्य इस दिन संपन्न किए जा सकते हैं। शास्त्रों में इसे शुभ माना गया है।
परन्तु इस दिन “अबूझ” होने पर भी इस दिन विवाह संस्कार नहीं करना चाहिए।
सिद्धिदायक है दशहरा
मूलेनावाहयेद्देवीं पूर्वाषाढ़ासु पूजयेत्।
उत्तरासु बलिं दद्यात् श्रवणेन विसर्जयेत्।।
यानी मूल नक्षत्र में देवी का आह्वान कर मां की सुंदर प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में विधिवत षोडशोपचार पूजन, उत्तराषाढ़ा में मां के प्रीतिकर “कूष्मांड” (कद्दू) की बलि दें। तीन दिन इस पूजा के बाद स्वत: ही दशमी को श्रवण नक्षत्र आता है। इसी दिन सिद्धि करने वाला दशहरा होता है, जो मनोवांछित फल देता है।