माना जाता है कि इसी दिन
भगवान श्रीराम ने अधर्म के सबसे बड़े प्रतीक रावण का वध करने के लिए किष्किंधा से लंका की ओर प्रस्थान किया था। नवरात्र के इस पवित्र काल के तत्काल बाद सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली महातिथि “विजय दशमी” मनाई जाएगी।
एक ओर दशहरे के दिन क्षत्रिय-क्षत्रपों के यहां अस्त्र-शस्त्रों के पूजन की शास्त्रीय राजपरंपरा है तो दूसरी ओर अपराजिता देवी के रूप में शमी वृक्ष (खेजड़ी) में अग्नि देवता की आराधना। नवरात्र के नौ दिनों में शक्ति संग्रह के बाद मन में बसे काम, क्रोध, मद व लोभ के प्रतीक व मानवता के महानाशक दुराचारी रावण को मन से सदा के लिए मारने का पवित्र दिन है-विजय दशमी। यानी मन के अवगुणों को दहन करने का है यह शुभ दिन।
सर्वश्रेष्ठ पर्व है विजय दशमीदशहरा यानी विजय दशमी अनेक मांगलिक कार्यो के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसे ज्योतिष शास्त्र में “अबूझ” भी माना गया है। संस्कार युक्त कार्य यथा-नामकरण, अन्नप्राशन, चौलकर्म संस्कार अर्थात मुंडन संस्कार, कर्णवेध, यज्ञोपवीत व वेदारंभ आदि संस्कार करने के लिए अत्यंत श्रेष्ठ दिन माना जाता है। यह जरूर ध्यान रखने की बात है कि “अबूझ” होने पर भी इस दिन विवाह संस्कार भूलकर भी नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में भी विजय दशमी को श्रेष्ठ तिथि माना गया है।
शमी वृक्ष का पूजन है शुभइस दिन धार्मिक अनुष्ठान करने की परंपरा शास्त्रों में हूबहू वर्णित है। इस दिन परिवार के साथ अपने घर से पूर्व दिशा की ओर जाकर शमी वृक्ष अर्थात खेजड़ी का पूजन करना चाहिए। खेजड़ी वृक्ष की पूजा करने के बाद उसकी टहनी घर में लाकर मुख्य चौक के अंदर प्रतिष्ठित करनी चाहिए। शमी को प्रतिष्ठित करने के बाद परिवारजनों को पूर्वाभिमुख खडे होकर उसके संमुख इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए-